कश्मीर का प्रमाणिक इतिहास

|| कश्मीर का प्रमाणिक इतिहास || 


कश्मीर के इतिहास के बारे में बात करते हैं तो सब से पहले राजतरंगणी सामने आती है या यों कहें कि अगर कश्मीरी इतिहास का जिक्र न भी करें और घाटी से जुड़े किसी भी अन्य विषय पर बात करें तो भी राजतरंगणी का हवाला देना अनिवार्य बन जाता है। राजतरंगणी के बगैर कश्मीर पर कुछ भी कहना एक नामुकम्मल बयान हो सकता है। अगरचि और भी कई प्राचीन इतिहास मौजूद हैं लेकिन उन में राजतरंगणी को ही प्राथमिकता दी जाती है। हालांकि यह भी एक सत्य है कि नीलमतपुराण राजतरंगणी से भी बहुत पहले समय का इतिहास है जो अपनी जगह प्रमाणिक और विश्वसनीय है मगर यह इतिहास से कहीं ज्यादा भौगोलिक, सामाजिक एवं धार्मिक मामलों पर बात करता है जबकि राजतरंगणी ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डालता है। इन दो प्राचीन इतिहासों के अलावा भगेश संहिता, शारदा महातम और वित्सता महातम आदि इतिहास भी कश्मीर के प्राचीनकाल के बारे में एक अच्छी खासी जानकारी देते हैंपरन्तु नीलमतपुराण और राजतरंगणी सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक ग्रंथ हैं । राजतरंगणी कश्मीर के इतिहास की एक जीती जागती तस्वीर है।


यह उल्लेखनीय बात है कि भारतवर्ष का मुकुट कहलाए जाने वाले कश्मीर को यह विशेषता और गर्व हासिल है कि नीलमतपुराण और राजतरंगणी जैसे इतिहास इसके अपने जिंदाजावेद इतिहास हैं और शैव दर्शन इसका अपना दर्शन है। यह खुशनसीबी कश्मीर को ही हासिल है कि जहां की पवित्र और पावन धरती ने ऐसा कमाल का इतिहास और दर्शन पैदा किया होनीलमतपुराण की ही तरह राजतरंगणी के बारे में यह बात काबिले जिक्र है कि यह एक प्राचीन उपलब्ध इतिहास है।


प्राचीन काल से कश्मीर में शिव की पूजा का चलन आम था जो आज तक जारी है। इस का उदाहरण वे मंदिर (प्राचीन) हैं जो इतने साल गुजर जाने के बाद भी कश्मीर की घाटी में जगह-जगह देखने को मिलते हैंइन में ज्यादा संख्या शिव मंदिरों की है । महाराजा अशोक से पहले भी यहां शिव के मंदिर थे जिन में विजेश्वर मंदिर भी शामिल है। इस से साफ जाहिर होता है कि कश्मीर में शिव दर्शन की रिवायत काफी पुरानी है। पंडित कलहण पर इस शैवी वातावरण का असर पड़ना कुदरती बात थी और वैसे भी कलहण शिव के भक्त और बड़े उपासक थे। कलहण के पिता का नाम चमपक था। जो राजा हर्ष के मंत्री थे। उनके पिता अपनी कार्यकशलता और ईमानदारी की बदोलत मंत्री बने थे । कलहण के चाचा का नाम कनक था और इनका खानदान ऐतिहासिक गांवों परिहासपुरा में वाका था । यह गांव श्रीनगर से बारामुला जाते हुए रास्ते में मिलता है । अगरचि कलहण की तारीखे पैदाईश के बारे में सही जानकारी मौजूद नहीं है फिर भी यह बात विश्वास और दृढ़ता के साथ कही जा सकती है कि वे 12वीं शताब्दी के आरंभ में पैदा हुए होंगे । बहरहाल कलहण 12वीं शताब्दी के एक अजीम संस् त पंडित और ज्ञानवान व्यक्ति थे। उनकी जो विशेषता थी वो थी उनका एक ईमानदार इंसान होना और यह ईमानदारी उनके लेखों और व्यक्तित्व से झलकती है। वे न सिर्फ एक कामयाब इतिहासकार थे बल्कि एक सुप्रसिद्ध कवि भी थे। कलहण, एक ब्राह्मण घराने के चश्मु-चिराग होने के नाते शुरू से ही चीजों को बारीकी से देखते थे और यह परख आगे चलकर उनको एक अद्वितीय इतिहासकार बनाने में सफल हुई।


कलहण ने जो इतिहास लिखा वह राजतरंगणी के रूप में विश्व के सामने आया। यह इतिहास पंडित कलहण ने 12वीं शताब्दी में लिखा । कलहण खुद कहतेहैं कि उन्होंने यह कार्य 1148 ई. में शुरू किया और 1149 ई. में खत्म कियायहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि कलहण ने राजतरंगणी लिखने से पहले काफी शोध कार्य किया। उन्होंने पहले सारा मुवाद जमा किया। जो भी जानकारी मिली इसे कलमबद्ध किया। लोगों से मुफीद बातें सुनी और सलाह व मश्वरा हासिल किया। लिखित में जो भी सामग्री मिली उसका अध्ययन कियाबेशुमार पुस्तकों और इतिहासों का मुताला किया जहां से भी जो कुछ हाथ लग गया उसका भी भरपूर फायदा उठायाकलहण के बारे में यह तक भी कहा जाता है कि उन्होंने शिलाओं (पत्थरों) पर कंदाह किए गए मंत्रों एवं लेखों का भी बगोर मुशाहिदा किया और इन कुतबों (शिलालेखों) की इबारत को इतिहास के पन्नों की जीन्त बनाया । इन शिलालेखों की खोज में वे जगह-जगह पहुंचे और इन शिलालेखों की इबारत का संजीदगी से जायजा लिया।


राजतरंगणी दो शब्दों का मुरक्कब है राज+तरंग। राज से मुराद है राजाओं से संबंधित और तरंग का मतलब लहर हैइस का अर्थ "राजाओं का दरिया' भी माना जाता है । यानि कि इस में बादशाहों के हालात ओ वाकात के साथ-साथ दूसरे अन्य विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है। राजतरंगणी की मूल भाषा संस्- त है और यह काव्य की सूरत में प्रस्तुत की गई है। करीब 8000 हज़ार श्लोकों में इसके 8 खंड हैं। जिन्हें 8 लहरें भी कहते हैं। जहां इस में राजाओं का वर्णन है वहीं इसमें कश्मीर के सामाजिक और राजनैतिक आदि मुद्दों पर भी खूब चर्चा की गई है। यह बेमिसाल इतिहास कश्मीर की एक जीती जागती तस्वीर पेश करता है और एक मुकम्मल ऐतिहासिक दस्तावेज समझा जाता है मगर मारूफ (प्रसिद्ध) कलमकार ओतार किशन रहबर लिखते हैं "कश्मीर का सबसे पुराना इतिहास जो आज मौजूद है वो है राजतरंगणी। कलहण ने इस पूरी किताब में कहीं भी कश्मीरी भाषा या साहित्य का वर्णन नहीं किया है।" जैसा कि मैंने पहले कहा है कि कलहण ने राजतरंगणी लिखने से पहले बहुत सारे मुवाद का मंथन किया। जिनमें पुराने कई इतिहास भी शामिल हैं परंतु नीलमतपुराण का बारीक बीनी से मुताला किया। पंडित कलहण ने जिस समय यह इतिहास लिखा उस समय राजा जयसिंह की हुकूमत थी और हर तरफ संस् त का ही बोल बाला था। कलहण खुद एक रोशन जिहन थे और संस् त पर काफी अबूर थाअपने गहरे और वस्सी मुताले की बदोलत किसी भी विषय पर प्रमाणिकता के साथ बोल एवं लिख सकते थे। यही एक विशेषता है कि जिससे कलहण और भी लोकप्रिय हो गए और उनके लेखन पर ज्यादा से ज्यादा विश्वास होने लगा । कलहण ने कहीं भी तंग नज़रिये नहीं अपनाये । बल्कि वाकियात को अपने सही संदर्भ में पेश किया। राजतरंगणी को एक बेहतरीन समालोचनात्मक कार्य भी माना जाता है । इनकी नजरें उस वक्त के राजा के कामकाज करने के तरीके आदि पर पूरी तरह से टिकी रहती थीं और अपनी तहरीरों में सेहतमंद आलोचना करने से पीछे नहीं रहते थेकलहण दरअसल एक कवि थे और कवि जो महसूस करता है, देखता है उसे अपनी कलम से जबान देता है। कवि कलहण कभी एक खास स्थिति को नजरअंदाज नहीं करते फिर भी उनके इस महान योगदान में कमियों की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता हैं। लेकिन यह बात गौरतलब है कि यदि राजतरंगणी जैसा अजीम कारनामा हमारे समकक्ष नहीं होता तो आज हम कश्मीर के प्राचीन इतिहास से बड़े हद तक वंचित रहते।


संस्कृत भाषा के एक महान साहित्यकार कवि और आलोचक 'बदरीनाथ कल्ला' लिखते हैं, "यह सौभाग्य है कि हमें कलहण की राजतरंगणी मिली । कलहण अपभ्रंश भाषा का नाम है, जिसका संस् त रूप कल्याण है। कलहण ने यह इतिहास 1148–1149 ईस्वी में शुरू किया और इसे साल के भीतर मुकम्मल किया । कलहण में एक मशहूर भारतीय इतिहासकार है इनकी नज़र काफी दूर तक पहुंच चुकी थी। शिवमत पर गहरा विश्वास रखने के बावजूद इन के दिल में बोधमत के लिये एक अच्छी जगह थी" आगे लिखते हैं. "राजतरंगणी में हमें विवेक और अपने देश प्रेम का ज्ञान मिलता है। यही कारण है कि कलहण की राजतरंगणी ने हिन्दुस्तान के साहित्य में ऊंचा स्थान प्राप्त किया है'' कलहण में कोई तासुब नहीं था। वे किसी भी पक्षपात से आज़ाद थे एक उदारवादी इतिहासकार, कलहण सच्चे कलमकार की तरजुमानी करते थे यही कारण है कि करीब आठ सौ वर्षों के बाद भी कलहण और उनकी राजतरंगणी की प्रसिद्धि और प्रामाणिकता में कोई कमी नहीं आई है।


कलहण की राजतरंगणी महज़ एक इतिहास नहीं बल्कि यह कश्मीर की एक बहुमूल्य और बेशकीमती विरासत और अज़मत की भी निशानदेही करती हैयह ना सिर्फ राजाओं की दास्तान सुनाती है बल्कि एक ऐसा खज़ाना है जहां सियासी, समाजी, आर्थिक और दूसरे विषयों के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलती है। कश्मीर के अपने समय के एक सरकरदा पत्रकार गाश लाल कौल ने राजतरंगणी को कलहण का एक यादगार कारनामा करार दिया है जो विश्व के इतिहासकारों के लिए बड़ी दिलचस्पी का एक स्रोत बना रहेगायह पुस्तक दुनिया के साहित्य में एक बेमिसाल काम हैराजतरंगणी का अनुवाद कई भाषाओं में किया गया। इतना ही नहीं, कलहण ने बाजापिता इतिहास लिखने की एक मजबत नींव रखी और एक सेहतमंद रिवायत कायम की। इस तरह उन्होंने तारीख साज़ी के क्षेत्र में आने वाले नए-नए इतिहासकारों में रूचि रखने वालों के लिए एक हमवार रास्ता बनाया। आगे चलकर इतिहासकारों ने यह सिलसिला जारी रखा। पंडित जूनराज ने भी राजतरंगणी लिखीजैनुल-अब्दीन बादशाह आर मुगल बादशाह अकबर के जमाने में राजतरंगणी का फारसी भाषा में अनुवाद कराया गया।


अंग्रेज़ी और उर्दू भाषा में भी इसका अनुवाद हुआ। सर औरल स्टेन ने भी राजतरंगणी का अंग्रेज़ी में तरजुमा किया। एशियाटिक सोसाइटी बंगाल, कलकत्ता की तरफ से भी राजतरंगणी का अंग्रेजी जुबान में तरजुमा छपा । फ्रेंच में भी इसका तर्जुमा छपा। इन तर्जुमों से ना सिर्फ राजतरंगणी दूसरी जुबानों में भी आम होने लगी बल्कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसकी असल रूह जानने का अवसर मिल गया ताकि आने वाले कल में वह इस पुस्तक को एक सही तनाजुर में पेश कर सकें और कश्मीर के इतिहास को लेकर कोई कन्फ्यूजन न रह सके । महान कवि और लेखक मोती लाल साकी लिखते हैं, "अपने हुजम और तफसीलात के एतबार से कलहण की राजतरंगणी असातीर और रिवायात का मजमुआ होने के बावजूद ना सिर्फ कश्मीर बल्कि गिरदोपेश के इलाके की पहली मुसतंद तारीख है । महाकाव्य होने के बावजूद भी इस में तारीख का रंग और रूप हर तरफ नज़र आता है। मजीद लिखते हैं कि मुखतलिफ़ मजहबी तामीरात के अलावा राजतरंगणी में कश्मीर की सियासी, समाजी और तमादुनी जिंदगी की अकासी मिलती हैकश्मीर में रवादारी की जो रिवायात आज भी कायम है राजतरंगणी के मुताला से पता चलता है कि वो शम्मा हमारे यहां दौरे कदीम से फरोज़ा रही है। कश्मीर में मुरवज इंतिज़ामिया और खवातीन के रूत्वे के बारे में राजतरंगणी एक मुअतबर दस्तावेज़ का दरजा रखती ।


स्रोत - समाचार भारती, समाचार सेवा प्रभाग, आकाशवाणी