कवन गंगा (भ्यूंडार गंगा)

कवन गंगा (भ्यूंडार गंगा)


हिमालय क्षेत्र के तिलिस्मों को समेटे हुए भ्यूंडार घाटी में समुद्रतल से 16800 फीट की ऊँचाई पर एक विशाल जलाशय है, जिसका नाम कागभुसण्डी ताल है। इस स्थान के बारे में मान्यता है कि कौवे यहां अपने शरीर को त्यागने के लिए पहुंचते हैं। लोकश्रुति है कि- अयोध्या में एक विद्वान ब्राह्मण रहा करते थे। वे परम राम भक्त थे।


एक बार उनकी भेंट एक सत्संग में ऋषि लोमश से हो गयी। ऋषि लोमश ब्रह्म शब्द की व्याख्या कर रहे थे। विद्वान ब्राह्मण, ऋषि के ज्ञान से बहुत प्रभावित हुए, किन्तु ऋषि के कुछ विचारों से ब्राह्मण सहमत नहीं थे। उन्होंने नम्रतापूर्वक ऋषि के विचारों का खंडन कियाऋषि लोमश को एक साधारण ब्राह्मण से इस तरह के विरोध की आशा नहीं थी। क्रुद्ध होकर उन्होंने उन्हें शाप दिया कि ऋषियों के विचार में जो सत्य निहित है उस पर संदेह करना पाप है। तुमने सत्य को झुठलाया है। इसके दंडस्वरूप तुम कौवा बन जाओगे ऋषि के शाप से अयोध्या का वह ब्राह्मण कौवा बन गया और वे कागभुसण्डी कहलाये। इस शाप से भी कागभुसण्डी के मन में कोई कटुता नहीं आयी। श्रीराम के प्रति उनकी अनन्य आस्था पूर्ववत बनी रही। कौवे के रूप में कागभुसण्डी हिमालय के सुमेरु पर्वत पर जा पहुंचे। एक सुरम्य सरोवर के किनारे कल्पवृक्ष पर उन्होंने आसन जमायावे इस मनोरम झील में स्नान करते और कल्पवृक्ष पर बैठकर श्रीराम कथा का वर्णन करते। पशु-पक्षी, मानव-देवता सभी उनके अमृत वचनों को सुनते व तृप्त हो जाते थे।


भ्यूडार गांव में लक्ष्मण गंगा, भ्यूंडार गंगा (कवन गंगा) से मिलती है। राजखर्क ग्लेशियर की जल धाराओं से कागभुसण्डी ताल में जल भरता है। घाटी का प्राकृतिक सौन्दर्य अद्भुत है।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल निशंक की किताब ''विश्व धरोहर गंगा''