केदार नाथ सिंह -1932-2018

||केदार नाथ सिंह -1932-2018||


केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई, 1932 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में हुआ था। वर्ष 1956 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी और वर्ष 1964 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। गोरखपुर में उन्होंने कुछ दिन हिंदी पढ़ाई और जवाहरलाल विश्वविद्यालय से हिंदी भाषा विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए और वे हिन्दी के 10 वें लेखक में जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।


केदारनाथ सिंह की कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैंउनकी कविताओं में मानवता, पर्यावरण, प्र. ति, भूमंडलीकरण आदि पर विचार व्यक्त होते हैं। उनकी कविताओं में अनेक शेड्स हैं क्योंकि वह बहुरंगी कवि हैंवे अपने पूर्ववर्तियों से अलग हैं, यहां तक की परवर्तियों से भी।


वे अपनी रचनाओं में ठेठ देसी जुमलों और शब्दों का इस्तेमाल करते हैंजटिल विषयों पर सरल और आम भाषा में लेखन उनकी रचनाओं की विशेषता है। उनकी कविताओं में गांव की प्रा, तिक आभा की अनेक छवियां दिखाई देती हैं। उनका कहना है "मैं गांव का आदमी हूं और दिल्ली में रहते हुए भी मैं एक क्षण के लिए नहीं भूलता कि मैं गांव का आदमी हूं।


कवि केदारनाथ सिंह की विशिष्टता रही कि वे कम शब्दों में महान कथन कहते थे और सहजता से मनुष्यता को उसके लक्ष्यों की पहचान कराते हैं। उनकी इसी विशेषता के कारण उनकी कविताएं मुहावरों की तरह लोकप्रिय हुई । ऐसे ही एक कविता है -



जाऊंगा कहाँ


रहूँगा यहीं


किसी किवाड़ पर


पड़ा रहूँगा


किसी पुराने ताखे


या सन्दूक की गंध में


छिपा रहूँगा मैं


दबा रहूँगा किसी रजिस्टर में


अपने स्थायी पते के


अक्षरों के नीचे


या बन सका तो


ऊंची ढलानों पर


नमक ढोते खच्चरों की


घंटी बन जाऊंगा


या फिर माँझी के पुल की


कोई कील


जाऊंगा कहाँ


देखना


रहेगा सब जस का तस


सिर्फ मेरी दिनचर्या बदल जाएगी


साँझ को जब लौटेंगे पक्षी


लौट आऊँगा मैं भी


सुबह जब उड़ेंगे


उड़ जाऊंगा उनके संग ...



उनकी मुख्य कृतियां हैं -


कविता संग्रह-अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहां से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएं, टॉलस्टाय और साइकिल, सृष्टि पर पहरा


आलोचना- कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान, मेरे समय के शब्द, मेरे साक्षात्कार।


संपादन- तानाबाना, समकालीन रूसी कविताएं, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)


पुरस्कार- ज्ञानपीठ पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार और व्यास सम्मान।


-- स्रोत - समाचार भारती, समाचार सेवा प्रभाग, आकाशवाणी