खेती किसानी के महावीर

||खेती किसानी के महावीर||


महावीर सिंह चंद जब आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था, तभी घरवालों ने उन्हें फरमान सुना दिया कि वे स्कूल छोड़कर खेतीबाड़ी में हाथ बटाये व अपने छोटे भाईयों को पढ़ाने में पिता की मदद करे। 


पहाड़ की मडुवा, झंगोरा व अनाज की परंपरागत खेती को छोड़कर महावीर ने जब अपने खेत में मटर की खेती करने की बात की तो उसे घरवालों के विरोध का सामना करना पड़ा, वो इसे उल्टा काम समझते थे। 
मटर की फसल तैयार हुई तो महावीर ने मटर की फलियां थैले में भरी और उसे कर्मचारियों के घर-घर ले जाकर बेचा। लोगों को ताजी मटर की सब्जी रास आने लगी और देखते ही देखते उसके खेत की सारी मटर कुछ ही दिन में बिक गई। एक खेत जिसमें परंपरागत अनाज मात्र 50-60 रूपये का निकलता था उसी खेत नेे पहली बार  महावीर को पूरे सात सौ की कमाई करवा दी।


बस, उसी के बाद महीवार ने मटर की खेती की ओर अपने कदम बढ़ाये। यह 1988 की बात है तब इस इलाके में कोई मटर की खेती नहीं करता था।


महावीर अपने सेब बेचने सहारनपुर मंडी जाते थे। उसने वहां से करीब दो क्विंटल मटर का बीज खरीदा तथा उसे अपने गांव नैणी (उत्तरकाशी) व पड़ोस के गांव के किसानों में यह बीज इस शर्त पर बांटा कि वे मटर की फसल तैयार होने के बाद उसकी कीमत लेंगे साथ ही वे इसकी बिक्री की भी जिम्मेदारी लेंगे।


गांवों के लोगों ने मटर तैयार की और उन्हें पहले ही साल अच्छा मुनाफा हुआ। उसके बाद महावीर ने शिमला मिर्च व टमाटर के उत्पादन में हाथ आजमाये और उसमें भी सफल रहा। उसके बाद सब्जियों में शिमला मिर्च, टमाटर तथा फलों में सेब व अनार आदि की पौधशाला तैयार करके उनसे हर साल लाखों की आमदनी करने लगा। महावीर ने अपने गांव के अलावा आसपास के गांव के किसानों को भी गैर मौसमी सब्जियों के उत्पादन के लिए प्रेरित किया।


आज यहां के टमाटर व मटर की पहुंच मदर डेयरी दिल्ली सहित देश की नामी मंडियों तक  हो गई है।
महावीर नौगांव में बीज व पैाध आदि की अपनी दुकान चलाते हैं गांव में नर्सरी व गैर मौसमी सब्जियों की खेती करते हैं और ऊंचाई वाले खेतों में दूसरा सेब का बाग है। ये इन सभी कामों का प्रबंधन बड़ी कुशलता से करते हैं। वह हंसते हुए कहते हैं इतने काम के बावजूद वे हमेशा सुबह नहाते हैं, शेव करते हैं और समय पर तैयार होते हैं लेकिन जो दिनभर ताश खेलते हैं और कुछ नहीं करते वे ना हमेशा नहाते हैं और ना ही शेव करते हैं!


उनका कहना है कि जितना आप अधिक परिश्रम करेंगे आपका जीवन भी उतना ही अधिक सुव्यवस्थित होगा।


आज बागवानी विशेषज्ञ भी महावीर के व्यवहारिक ज्ञान के सामने पानी भरते हैं, ऐसा समय कई बार आया जब उनके सवालों का जवाब बागवानी विशेषज्ञों के लिए भी गले की फांस बना। सिर्फ आठवीं तक की स्कूली शिक्षा पाए महावीर ने अपने शिक्षक पिता के साथ मिलकर अपने दो छोटे भाईयों को डॉक्टर बनाया तथा उनकी दोनों बहुएं भी डॉक्टर हैं। पर बागवानी की मदद से आज भी वह डॉक्टर भाइयों की कमाई से आगे है। यही कारण है कि जब उनके डॉक्टर भाई ने विकासनगर में अपना नर्सिंग होम खोला तो महावीर ने उसकी वित्तीय मदद की।


यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी कम पढ़ाई उनके काम में कभी आड़े आई? महावीर बताते हैं कि कुछ नया करने व सीखने की ललक से उन्हें कभी नहीं लगा कि उनकी कम पढ़ाई कभी बाधक बनी है। वे हिमाचल प्रदेश से रेडियो में आने वाले बागवानी के कार्यक्रमों को नियमित सुनते थे। धीरे- धीरे वे वहां के बागवानी विशेषज्ञों से सलाह लेने लगे और उसी के अनुरुप बागवानी करने लगे। वे कृषि क्षेत्र में काम करने वाली संस्था “हार्क“ को भी अपनी प्रगति का सहयोगी मानते हैं जिसके निदेशक महेंद्र कुंवर ने समय-समय पर उनकी मदद की और उन्हें वाई एस परमार बागवानी विश्वविद्यालय नौणी हिमाचल प्रदेश सहित देश के नामी कृषि व बागवानी प्रशिक्षण संस्थानों के प्रशिक्षण दौरे करवाये। जिससे उन्होंने नई तकनीकी के बारे में सीखा। महावीर ने गोबर व गौमूत्र से पौधों में लगी कई बीमारियों का इलाज किया उसने साबित किया कि अनार की पौध किसी भी मौसम में लगाई जा सकती है।


प्रदेश में बागवानी के भविष्य को लेकर महावीर दो टूक जवाब देते हैं। जिस दिन बागवानी के विशेषज्ञ अपने कार्यालयों से बाहर निकलेंगे और किसानों के खेतों में पहुंचकर बागवानों की मदद करेंगे उस दिन उत्तराखंड में बागवानी का चहुंमुखी विकास शुरु हो जाएगा।