कुंजापुरी मेले का 45 साल पुराना इतिहास


||कुंजापुरी मेले का 45 साल पुराना इतिहास||


1973 में मुनस्यारी के आईएएस अधिकारी श्री सुरेन्द्र सिंह पांगती नरेंद्रनगर में डीएम थे। तब जिला मुख्यालय नरेंद्रनगर ही था। यह बात बहुत कम लोगों को पता हैं कि, पांगती जी की संतान नहीं हो रही थीं। उन्होंने नवरात्रि में कुंजापुरी मंदिर जा कर, देवी से मन्नते मांगी कि उन्हें संतान प्राप्त हो जाये। अगले साल ही पांगती जी को पुत्र रत्न प्राप्त हो गया। फिर क्या था उनकी आस्था देवी के प्रति बढ़ गई। और उन्होंने ने 1974 में कुंजापुरी मंदिर से करीब 10 किलोमीटर दूर नरेंद्रनगर में मेला का शुभारंभ करवाया था।फिर यह प्रशासनिक स्तर पर और मान्य हो गया।


इस मेले का नाम दिया गया, कुंजापुरी पर्यटन विकास मेला। इसमें दिन में स्कूलों के खेल- कूद कार्यक्रम, प्रतियोगिताये, रात्रि के समय मे कल्चरल प्रोग्राम होते हैं। अब इसमें राज्य स्तरीय टीमें आने लगी हैं। शुरुआत में शिवा नंद आश्रम ने मेले के आयोजन के लिए सहयोग किया था। शुरू शुरू में आश्रम की टीम रात भर मंदिर में जागरण करती थीं। इस जागरण में बहुत लोग शामिल होते थे। उत्तराखंड राज्य बन जाने के बाद, इसका बड़ा स्वरूप देखने को मिला। कुंजापुरी मंदिर के लिये अब अलग लिंक पक्की सड़क जा रही है। पहले लोग ऋषिकेश - चम्बा रोड़ के बीच के स्थान से पैदल मंदिर तक जाते थे। अब यहाँ हर नव रात्रि के दिन 200, 300 गाड़िया होती हैं। भक्तों की भारी भीड़ है।


श्रीमती इंदिरा गांधी के टाइम में देश मे एक बार अकाल पड़ गया था। तब एक स्कीम आई थीं *फ़ूड फ़ॉर वर्क* मतलब काम करो , और सरकारी गोदामों से अनाज लो। यह एक किस्म से सरकार के द्वारा गगरीब लोगो की भरपाई थीं। टिहरी गढ़वाल जिले में पांगती जी ने नरेंद्र नगर जिला चयनित किया। जिसमें कुंजापुरी तक 9 किलोमीटर घोड़ों की शरुआत में सड़क बनी। लोग घोड़ों से गये। फिर बाद में वहीं सड़क बनी। घोड़ो की सड़क बन जाने के बाद कुंजापुरी बहुत प्रचलित हुवा। यह रमणीक स्थल है। यहाँ से गंगा, राजभवन, दून घाटी, राजाजी पार्क, स्वर्गआश्रम, यमकेश्वर, साफ दिखाई देता है।


1974 में इस मेले में वीर शिरोमणि माधो सिंह भंडारी की *मलेथा का छेना * के नाम का जोरदार मंचन हुआ था। श्री इंद्र मणि बडोनी,श्री खुशहाल सिंह रांगड़ , इसके पात्र थे। ढोल पर हिमालय के मशहूर ढोल वादक श्री शिवजनी थे। उसके बाद काफी लोगो को माधो सिंह भंडारी का पता चला। मलेथा जिस कूल नहर को लोग भूल गए थे। ध्यान दिए जाने लगा। खुद मलेथा की साफ सफाई ढूढ़ हुई।


1974 में दिन में बहुत अच्छे स्पोर्ट्स कार्यक्रम होते थे। डीएम पांगती ने बास्केटबॉल खुद सिखाया था। नतीजतन नरेंद्रनगर की टीम मंडल में स्थान पा गई थीं। नरेंद्रनगर गढ़वाल मंडल की टीम ने झांसी को बास्केटबॉल में हराया था।


1962 बैच के यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी सुरेन्द्र सिंह पांगती दो बार गढ़वाल मंडल आयुक्त रहे। 1987 से चार साल कार्यकाल रहा। डीजी पर्यटन बन कर गए तो, उत्तरकाशी में भूकंप आ गया। फिर उन्हें 1991 में कमिश्नर पद पर भेजा। वह 8 माह बाद स्वयं इस पद से हटे। कमिश्नर मुख्यालय पौड़ी से उन्होंने नरेंद्र नगर आना नहीं छोड़ा। उन्होंने तब 40 -40 किलोमीटर पैदल यात्रा की। घुत्तू पंवाली कांठा पर्यटन ट्रैक उनकी देन है। उनके खून में पैदल चलना रहा। उन्होंने बतौर कमिश्नर, डीजी पर्यटन कुंजापुरी और नरेंद्रनगर को आगे बढ़ाया। दरअसल किसी का किसी विशेष जगह में लगाव हो जाता है। इस मेले की इतिहास की नींव में सुरेन्द्र सिंह पांगती जरूर रहेंगे। आज कुंजापुरी मेले की शुरुआत है। जो 9 दिनों तक चलेगा है।