लखन लाल के शिल्पकला के मुरीद होते लोग

||लखन लाल के शिल्पकला के मुरीद होते लोग||


उत्तरकाशी जिले के भाटिया गांव का लखनलाल अनुसूचित जाति के बेहद ही गरीब परिवार से आता है। मेहनत मजदूरी करके परिवार का पेट भरता है। एक दिन गांव से लगे देवदार  के जंगल में आग लगी, उसने जाकर देखा तो देवदार के छोटे-छोटे असंख्य पौधे जलकर खाक हो चुके थे। यहीं से लखनलाल के मन में देवदार को सुरक्षित व संरक्षित करने के प्रति ललक जगी। 


वह, जब भी समय मिलता गांव से लगे जंगल जाकर देवदार के छोटे-छोटे पौधों को संवारता तथा उसके बाहर का घास आदि साफ कर देता ताकि पौधा जंगल की आग से सुरक्षित रह सके।


जंगल में आग लगती तो वह उन पौधों को आग से बचाने के लिए दौड़ पड़ता। इधर उसका परिवार बढ़ता रहा और उधर जंगल में देवदार के पौधों की संख्या भी बढ़ती रही। उसकी आठ बेटियां हैं। लखनलाल कहता है कि वे इन पेड़ों को अपनी बेटियों सा ही प्यार करता है। 


एक दिन वह देवदार के पौधों को संवार रहा था। यानि कि पौधों को ठीक से विकसित करने के लिए उनके अनावश्यक टहनियों को छंाट रहा था ताकि पौधा ठीक से विकसित हो सके तभी वन रक्षक आ धमका, लखन लाल ने जब उसको अपना मंतव्य बताया तो वह उल्टा आग बबूला होकर बोला “अरे मेहनत ही करनी है तो अपने खेत में जाकर कर यहां की मेहनत से तुझे कुछ नहीं मिलेगा उल्टा पेड़ को लापिंग करने के जुर्म में जुर्माना ठोक दिया जाऐगा“।


लखन लाल, वन रक्षक के उस व्यवहार से थोडा़ मायूस तो हुआ पर उसके हौसले में कभी कमी नहीं आई और अपने काम को बदस्तूर जारी रखा।


उसने मन में सोचा कि वन रक्षक तो वेतन के लिए काम करता है, आज यहां कल कहीं अन्यत्र्ा तैनात हो जाएगा पर यह जंगल हमारा है और सुरक्षित रहा तो हमारे बच्चों को ही लाभ पहंुचायेगा।
आज लखनलाल के प्रयास के कारण देवदार के हजारों पौधे, पेड़ बन चुके हैं। हाल ही में डीएफओ (प्रभागीय वनाधिकारी बड़कोट) जंगल के भ्रमण पर आये तो उन्होंने उन सुडौल व करीेने से संवारे गये पेडों के बारे में पूछा तो रेंज अधिकारी पाण्डे ने उन्हे बताया कि लखनलाल नाम का एक युवक पिछले 30 वर्षांे से इन पेड़ों को संवारने व सुरक्षा देने में जुटा है। 


यह सुनकर डी0एफ0ओ ने लखनलाल की प्रशंसा की तथा उससे मिलने की इच्छा व्यक्त की। लाखनलाल डीएफओ की प्रशंसा से काफी उत्साहित है वह वनों को बचाने के प्रयास के बारे में उन्हें अपना अनुभव बताना चाहता है।