--------------------बीच में मूरत राम शर्मा_________
||लोकसेवा की जीती जागती मूरत||
एक संम्भ्रात परिवार की भनक जिसको होती है वह क्या समाज सेवा का बेड़ा उठा पायेगा? कदापि नहीं। कोई बिरले ही होंगे जो इस तरह की सुख-सुविधा को धत्ता बताकर कूद जाते है फिल्ड में। जी हां हम यहां ऐसे ही मनीषी का जिक्र करने जा रहे है। सुख-सुविधा से लैस, संयुक्त परिवार और गांव व क्षेत्र में उनके परिवार का एक नामी स्थान। ऐसे में एक नौजवान मूरतराम शर्मा, जो जौनसार-बावर के सूदूर गांव से चल पड़ता है देहरादून की ओर।
पढाई के साथ-साथ सामाजिक ताना-बाना समझने के लिए दौड़ लगाता रहता है। गांव गांव की पगडडिंया नापता है। दीन-दुखियों की सेवा में तत्पर रहता है। सगे-साथी कहते हैं कि अपनी वकालात की पढाई पूरी कर और अपने इस व्यवसाय को आगे बढा। कौन भला जो मूरत राम को नींद आने दे। उन्हे तो बस चिन्ता है तो अपने पिछड़े क्षेत्र की, और वहां के लोगो की। इसलिए वे देहरादून में रह रहकर लोगो की सेवा में दिखते है। वे बताते हैं कि उन्हे यह सब उनके पिता से बिरासत में मिली है। उनके पिता प॰ शिवराम शर्मा जौनसार-बावर के आशुकवि ही नहीं थे, बल्कि वे तो उस क्षेत्र का नेतृत्व भी करते थे। यह इस बात का प्रमाण है कि 1972 के दौर में जौनसार-बावर के ग्राम प्रधान प॰ शिवराम की सलाह के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढते थे। फलस्वरूप इसके मौजूदा समय में मूरतराम शर्मा उत्तराखण्ड सरकार में अनुसूचित जनजाति आयोग में उपाध्यक्ष का जिम्मा संभाले हैं।
इससे पूर्व श्री शर्मा भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न पदो पर संगठनात्मक रूप से कार्य करते रहे। उन्होने 1985-86 में अपनी वकालात आरम्भ कर दी थी। मगर उन्हे तो अपने क्षेत्र की कई समस्याऐ दिखाई देती थी, तो वे वकालात के पेशे को कोई ज्यादा समय नहीं दे पाये। इसी क्रम में उन्होने 1992 में भाजपा की सक्रीय सदस्यता ग्रहण करके जौनसार-बावर में भगवा पहरेदारी करने लगे। सुकूनभरे भगवा रंग के बलबूते उनकी पहचान क्षेत्र में अब एक राजनीतिक कार्यकर्ता की हैसियत से होने लगी। उन्हे अब 1995 में भाजपा ने देहरादून जिले के संगठन मंन्त्री का जिम्मा सौप दिया। इसी क्रम में उन्हे फिर से भाजपा ने 1997 में देहरादून जिले का महामंत्री नियुक्त किया।
राजनितिक सफर उनका यही पर विराम नहीं लगाता, वे लगातार संघर्ष करते रहे। भले उन्हे सफलता हाथ नहीं लगी हो। किन्तु वे लोगो के सदैव सम्र्पक में रहे है।
राज्य बनने के बाद 2002 में पहली बार मूरतराम शर्मा ने चकराता विधानसभा का चुनाव भाजपा के बैनर पर लड़ा। वे इस वक्त हार गये। मगर उन्होने संगठन में हमेशा निस्वार्थभाव से काम किया और 2007 से 2012 तक भाजपा के लिए संगठनात्मक रूप से काम किया। जबकि 2007 में एक बार फिर वे भाजपा के संगठन महामंत्री चुने गये और 2010 में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे है। 2019 आते आते सरकार ने उन्हे अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है।
वे जहां राजनितिक कैरियर की शुरूआत कर चुके थे वहीं वे एक अच्छे किसान भी हैं। इसलिए वे समय-समय पर गांव जाकर खेती किसानी का काम भी स्वयं देखते हैं। सो आज भी देखते है। वे कहते हैं कि जब से उन्हे आयोग में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ है तब से गांव जाना थोड़ा कम हो गया है। क्योंकि राज्य की पांचो जनजातियो के क्रियाकलापो पर नजर रखनी और उनके साथ कोई उपेक्षा ना हो इसकी पड़ताल ही नहीं अपितु उसके निवारण के लिए शख्त कार्रवाई करनी होती है। वे आयोग की बेंच पर अनुसूचित जनजाति के भूमि के सवाल, उत्पीड़न के सवाल, छात्रवृति के सवाल, बीपीएल आदि के सवालो पर नजर बनाये रखते है। अब तक उन्होंने अपने तीन माह के कार्यकाल में डेढ दर्जन से अधिक मामले निस्तारित किये है। साल 2015 से 2018 तक के जो भी ऐसे मामले आयोग में लंबित पड़े हैं उन्हे वे अविलम्ब निपटाने के लिए मुस्तैद हैं।
उनके रूची का विषय
मूरतराम शर्मा जहां एक कुशल राजनितिज्ञ हैं वही वह एक संस्कृतिकर्मी भी है। उन्हे अपने जौनसार-बावर के तमाम लोकगीत, लोकनृत्य, लोक गाथाऐं मुखजुबानी याद है। यही नहीं वे लोक संस्कृति के बारे में शब्द-शब्द की व्याख्या करते है। वे एक लोक गाथा के बारे में बताते हैं कि उनके क्षेत्र में एक नहर ऐसी है जिसमें पानी उल्टा बहता है। अर्थात उल्टी दिशा मे। जिसे स्थानीय भाषा में बेरूआ कहते है। इस नहर की भी अपनी एक कहानी और गीत है। अब वे इस तरह के लोक ज्ञान, लोकगीत, लोकनृत्य, लोक गाथाओं के संरक्षण पर भी काम कर रहे हैं।
अनुभव
वे एक कुशल अधिवक्ता है। कुशल किसान है, कुशल पशुपालक हैं। कुशल लोक कलाकार है और व्यवस्थित राजनितिक कार्यकर्ता हैं। इसके अलावा उनके पास संयुक्त परिवार के संचालन की अच्छी कुशलता है।
उन्हे याद है
आज भी वे अपने पिता की लिखी कविता को यूं ही प्रस्तुत कर देते हैं। की जब उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रभान गुप्ता चकराता आये थे तो उनके सम्मुख प॰ शिवराम जी ने कविता प्रस्तुत की है कि ''ओम जय ओम जय ओमकारा, त्यूणी कब जांऊ मोटर के द्वारा।। चकराता की सड़क, सुनिये इसका हाल, बस मोटर चले, यहां घपला पूरे साल।। ऐसी उनकी चिन्ता आज भी बनी है। मगर विकास के अन्य सवालो पर।