मामला आलवेदर रोड़: न्यायालय के समझाने के बावजूद भी सरकार की पूंछ टेढी

||मामला आलवेदर रोड़: न्यायालय के समझाने के बावजूद भी सरकार की पूंछ टेढी||

अभी आल वेदर रोड़ की समस्या खत्म नहीं हुई कि भारतमाला नाम की सड़क का बजट स्वीकृत हो गया। यह सड़क भी चीन से लगी भारत की सीमाओं तक जायेगी। यह सड़क जब बनेगी तब बनेगी, मगर आलवेदर रोड़ की खामिया कब दूर होगी और कब तक इस सड़क का फायदा लोगो तक पंहुचेगा। यह भी तय करना होगा कि आलवेदर रोड़ के बनने से पर्यावरण पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। ये सभी अनसुलझे सवाल सत्ता में बैठे प्रतिनिधियों के माथे पर लकीरे खींच रही है। की सड़क 10 से 18 मीटर चैड़ी होगी तो पेड़ कटेंगे ही, मलवा भी आयेगा ही बगैरह आदि। यहां लोग सड़क अच्छी चाहते है पर उन्हे इतनी भारीभरकम चैड़ी सड़क से कोई लेना देना भी नही है। समाधान कैसे होगा! जो समय की गर्त में भी है और न्यायालय में विचाराधीन भी है।




ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में आॅलवेदर रोड़ शामिल है, जो चारधाम सड़क चैड़ीकरण परियोजना के नाम से बनने जा रही है। हालांकि उन्होंने 27 दिसम्बर, 2016 को देहरादून आकर एक जनसभा को संबोधित करते हुए ऑलवेदर रोड कहा था। मौजूदा समय में इस आॅलवेदर रोड़ के निर्माण में हो रही लापरवाही के चलते सुप्रीम कोर्ट ने 22 अक्टूबर, 2018 को अपने ऐतिहासिक आदेश में सड़क चैड़ीकरण कार्य पर रोक लगा दी है। जिस पर अब 15 नवम्बर को सुनवाई होनी है। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने देहरादून की एक स्वयंसेवी संस्था ग्रीन दून की विशेष अनुमति याचिका पर रोक का आदेश जारी करते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।


एनजीटी की अनुमति 
जबकि इधर नेशनल ग्रीन ट्रयूबनल ने हाल ही में 26 सितंबर को एक आदेश के मार्फत इस परियोजना को हरी झंडी दी थी। यही नहीं एनजीटी ने बाकायदा इस राजमार्ग के बनने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन भी कर दिया था। इस सात सदस्यीय समिति की अध्यक्षता की जिममेदारी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक विशेष सचिव को दी गई थी। अतएव याचिकाकर्ता के वकील संजय पारिख के अनुसार परियोजना बिना किसी पर्यावरण मंजूरी के शुरू हुई है और उचित वन मंजूरी के बिना 25000 से अधिक पेड़ काटे गए हैं। इसके अलावा इससे पहाड़ों और गंगा की सहायक नदियों को व्यापक नुकसान हो रहा है, इस मार्ग के निर्माण के दौरान मलबे की डंपिंग के लिए भी कोई उचित व्यवस्था तक नहीं की गई है।


आलवेदर रोड़ या चारधाम सड़क परियोजना 
- 889 किमी की है परियोजना, 440 किमी पर काम शुरू हो चुका है।
- 12 हजार करोड़ की है यह परियोजना। 
- 132 ब्रिज, 25 हाई फ्लड लेबल ब्रिज, 13 बाईपास।
- 115 बस स्टैंड, 9 ट्रक स्टैंड , 3889 वाटर वार्ट बनेंगे 
- 2020 तक परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य,
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 दिसम्बर 2016 को परेड ग्राउंड में किया था शुभारंभ
- 11700 करोड़ रुपये लागत की इस परियोजना के तहत 8542.41 करोड़ रुपये के 37 कार्य स्वीकृत हो चुके हैं। 6683.58 करोड़ लागत की 28 योजनाओं पर कार्य आरंभ हो गया है। 246.39 करोड़ के तीन कार्य की निविदाओं के अनुबंध हो चुके हैं। 1374.67 करोड़ की चार योजनाओं की निविदाएं प्राप्त हो गई हैं, जिनके मूल्यांकन प्रक्रिया जारी है। 237.75 करोड़ के दो कार्य के लिए निविदाएं आमंत्रित की जा चुकी हैं।


एक और समस्या हुई खड़ी 
सर्वोच्च न्यायालय के फरमान के बाद आॅलवेदर रोड़ का काम कमोबेश रूक गया है। हालात अब ऐसे दिखने लग गये हैं कि जहां जहां इस सड़क के लिए निर्माण कार्य आरम्भ हो चुका था वहां वहां और उसके आसपास लोगो को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। निर्माणाधीन ऑल वेदर रोड परियोजना क्षेत्र में मलवा के ढेर, पेड़ो की कटाई के अवशेष व साबूत पेड़, आधी अधूरी दिवाल, पत्थरो के चट्टे, सीमेंट, सरीया और अन्य सड़क निर्माण की सामग्री स्थानीय लोगो को चीढा रही है। लोगो का कहना है कि इस तरह की परियोजनाओं से स्थानीय स्तर पर दो तरह की समस्या खड़ी होती है। पहली कभी ना भरपाई करने वाला पर्यावरण का नुकसान और दूसरा बेरोजगारी का संकट। अच्छा होता कि हमारे नुमाईन्दे इस परियोजना के निर्माण से पहले स्थानीय लोगो के साथ रायमशबीरा करते तो यह मामला न्यायालय तक जाता ही नहीं। लोगो का कहना है कि परियोजना का काम इस समय तेजी से चल रहा है।


बड़ी मात्रा में सड़कों का चैड़ीकरण किया जा रहा है। यदि काम अब बीच में रोका गया तो इससे सड़कों की स्थिति सुधारने में बहुत वक्त लगेगा और पहाड़ की अधिकांश आबादी को भारी मुशीबतों का सामना करना पड़ सकता है। इधर अपर मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग ओम प्रकाश का कहना है कि इस परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक की कोई जानकारी उन्हें नहीं है। स्वंय सेवी संस्था ग्रीन दून के सचिव हिमांशु अरोड़ा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने चारधाम परियोजना पर फिलहाल रोक लगा दी है। जबकि इस मामले में राज्य सरकार ने कोर्ट से कहा कि इस परियोजना में काफी काम हो चुका है। इसे रोकना ठीक नहीं है। इसलिए सरकार के पक्ष को सुनने के लिए न्यायालय ने 15 नवंबर की तिथि तय की है।


क्या है न्यायालय का फरमान
उत्तराखंड की नदियों से 500 मीटर दूर डंपिंग जोन बनाए जाने के उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। इस स्थागनादेश के चलते फिलहाल चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना के काम में न्यायालय के अगले किसी आदेश तक कोई अड़चन नहीं आएगी। मुख्य अभियंता राष्ट्रीय राजमार्ग हरिओम शर्मा ने इसकी पुष्टि की है। मुख्य अभियंता के मुताबिक न्यायालय द्वारा मांगी गई सूचनाओं से संबंधित हलफनामा भी अदालत में दाखिल कर दिया गया है। काबिलेगौर हो कि उच्च न्यायालय नैनीताल के पूर्व के फरमान से सरकार इस दुविधा में पड़ी हुई थी कि वह चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना के लिए नए डंपिंग जोन कहां चिन्हित करेगी? इससे परियोजना का काम भी प्रभावित होने का अंदेशा बन गया था। उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका (एसएलपी) दायर की। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही एसएलपी पर स्थगनादेश दे दिया है। 


यहां वन्य भूमि हस्तांतरण का भी मामला
बता दें कि राष्ट्रीय राजमार्ग 18 के धरासू बैंड से गंगोत्री के हिस्से तक इको सेंसिटिव जोन की वजह से भूमि हस्तांतरण का काम शुरू नहीं हो पा रहा है। यहीं से चारधाम सड़क परियोजना अथवा आॅलवेदर रोड़ बनने जा रही है। इस हेतु केंद्र सरकार के स्तर पर निगरानी समिति का पुनर्गठन कर दिया गया है। परियोजना की कार्यदायी एजेंसियां केंद्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय, बीआरओ और राष्ट्रीय राजमार्ग जिलाधिकारी के माध्यम से वन भूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव निगरानी समिति को भेजेंगे। इस संबंध में कार्यदायी एजेंसियों को पहले चरण की सैद्धांतिक मंजूरी की प्रक्रिया में जुट जाने को कह दिया गया है। यह जानकारी प्रभारी सचिव वन अरविंद सिंह ह्यांकी के मार्फत बताई गई है। जबकि इस परियोजना के तहत 81.50 प्रतिशत वन भूमि के हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इसके तहत 841.46 किमी लंबाई में भूमि हस्तांतरित होनी है। इसमें से 685.70 प्रतिशत भूमि के हस्तांतरण की स्वीकृति हो चुकी है।


पर्यावरण पर संकट
चारधाम सड़क परियोजना अथवा आॅलवेदर रोड़ निर्माण के कारण हो रहे पर्यावरण के नुकसान की भरपाई का सवाल खड़ा हो चुका है। ये सवाल इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में अनसुलझे ही साबित हो रहे है। इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को बार-बार राज्य और केंद्र सरकार के कामकाज को ठीक से करने के आदेश जो आ रहे है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में शामिल चारधाम सड़क चैड़ीकरण परियोजना को रोक दिया जाना एक उदाहरण है। यहां ऑलवेदर रोड को चारधाम महामार्ग विकास परियोजना के रूप में भी मंजूरी मिली है। इसके तहत गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के लिए जाने वाली मौजूदा सड़क, जिसकी चैड़ाई 5 से 10 मीटर है, का 10 से 24 मीटर तक पर्यावरणीय स्वीकृति के बिना चैड़ीकरण किया जा रहा है। इस परियोजना के निर्माण में 50 हजार से अधिक हरे पेड़ों को काटा जा रहा है, जो कि मानक से कहीं अधिक बताये जा रहे हैं। इसलिए कि रुद्रप्रयाग और चमोली जिला प्रशासन के हवाले से बताया गया कि सड़क चैड़ीकरण 10 से 12 मीटर तक ही किया जाना है। पर पेड़ों का कटान 24 से 30 मीटर तक किया जा रहा है। उदाहरणस्वरूप इस पहाड़ी क्षेत्र के गांवो तक जब छोटी सड़क बनाने में कुछ पेड़ बाधक बनते हैं, तो वन अधिनियम के कारण सड़क का काम रोक दिया जाता है।


ऑलवेदर रोड बनाने के लिए कोई वन अधिनियम ही नहीं है। सरकार का यह दोहरा चरित्र लोगो के मुंह चिढा रहा है। इस परियोजना ने पर्यावरण मंत्रालय से 53 हिस्सों में परियोजना की स्वीकृति ली है क्योंकि 100 किमी. से अधिक निर्माण के लिए पर्यावरण प्रभाव का आकलन करवाना पड़ता है, जिससे बचने के लिए निर्माणकर्ताओं ने प्रस्तावित 900 किमी. लंबी सड़क को कई छोटे-छोटे हिस्सों में दिखाकर मनमाफिक पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 6 अप्रैल, 2018 को एनजीटी में दाखिल हलफनामे में कहा था कि उसने चारधाम नाम से किसी भी सड़क के निर्माण को मंजूरी नहीं दी है। चारधाम महामार्ग विकास निर्माण का लाखों टन मलबा सीधे गंगा और इसकी सहायक नदियों में उडे़ला जा रहा है।


एनजीटी ने भी अप्रैल, 2018 में मलवा निस्तारण के लिए एक प्लान दाखिल करने का आदेश केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को दिया था। वर्ष 2017 में एनजीटी ने बीआरओ (बॉर्डर रोड आग्रेनाइजेशन) के भरोसे ही एक याचिका का निस्तारण किया था, जिसमें बीआरओ ने भागीरथी में निर्माण का मलवा रोकने के लिए भागीरथी इको सेंसिटिव जोन नोटिफिकेशन 18 दिसम्बर, 2012 के अनुपालन का वचन दिया था। इसी प्रकार एनजीटी ने अप्रैल, 2018 में भी एक अंतरिम आदेश में कहा था कि चारधाम चैड़ीकरण में पेड़ों की कटाई पर रोक है। ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय कब तक सरकार को समझायेगा जिसका इन्तजार सभी को है।