मधुमक्खी पालकर

||मधुमक्खी पालकर||


मधुमक्खी की विभिन्न गतिविधियों की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करके एवं काष्ठ के बने एक विशेष प्रकार के के मौनगृह में उन्हें पालकर शहद व मोम प्राप्त करने की प्रक्रिया ही मधुमक्खी पालन व्यवसाय है। वस्तुत: यह एक तकनीकी प्रक्रिया हैमधुमक्खी पालन व्यवसाय प्राचीनकाल से ही अस्तित्व में रहा है, परंतु यह वर्तमान से सर्वथा भिन्न थासर्वप्रथम 1815 ई. में लानाप नामक अमेरिकन वैज्ञानिक ने कृत्रिम छत्तों का अविष्कार किया था। भारत में मधुमक्खी पालन का शूरूआत ट्रावनकोर में 1917 ई. में एवं कर्नाटक में 1925 ई. में हुई थी। कुटीर उद्योगा के रूप में प्रांतीय स्तरों पर इसका विस्तार कृषि पर रॉयर कमिशन की सिफारशा बाद 1930 ई. से हो पाया था। वर्ष 1953 में अखिल भारतीय कहदी व ग्रामोद्योग bord---------- की स्थापना हई व मधुमक्खी पालन को तकनीकी व्यवसाय का स्वरूप देने के लिए ईने पना में केन्द्रीय मौनपालन अनुसंधान केंद्र की स्थापना कीबोर्ड द्वारा इस अनसंधान केंद्र को, विभिन्न राज्यों में मधुमक्खी पालन के प्रचार प्रसार व प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने का कार्यभार सौंपा गयावर्तमान में प्रचलित मधुमक्खी पालन की विद्या का जन्म नैनीताल जिले के ज्यूलिकोट नामक स्थान पर हुआ था।


 वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र की बड़ी भागीदारी प्रधान अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में परिलक्षित करती है। देश के पर्याप्त संसाधन व विपुल संभवनाएं विद्यमान हैं, जिनका सदुपयोग करते विकास की त्वरित गति प्राप्त की जा सकती है। दूसरी तरफ बढ़ते जनसंख्या देश में बेरोजगारी की समस्या को और भी गहरा दिया है। इससे आवश्यक होग कि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध मानव संसाधन को स्वउद्यम सो जुड़ने के लिए प्रेरित किया जाये। ग्रामीण तथा कुटीर उद्योग के अंर्तगत मधुमक्खी पालन से स्वरोजगार के को अच्छे अवसर विकसित होने की संभवनाएं हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार से प्रयोजित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उद्यमवृत्ति विकास (स्टेड) परियोजना भारतीययम उद्यमिता विकास केंद्र, अलवर द्वारा मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में कई सक्रिय कदम उठाये गये हैं। परियोजना द्वारा पिछले दो वर्षों से मधुमक्खी पालन पर प्रशिक्षण एवम् प्रदर्शन कार्यक्रमों से प्रशिक्षण प्राप्त कर सफलतापूर्वक मधुमक्खी पाल व्यवसाय कर रहें हैं।


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अलवर व भरतपुर जिलों में माह नवम्बर से फरवरी तक सरसों की पैदावार बहुतायत में होती है व यह समय इन क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। ग्रामीण संसाधनों का पूर्ण उपयोग कर आर्थिक विकास को गति देने के लिए तत्पर स्टेड परियोजना ने उन शिविरों में ग्रामीण लोगों में मधुमक्खी पालन व्यवसाय के प्रति जागरूकता उत्पन्न की।परियोजना द्वारा मधुमक्खी पालन आयोजित कार्यक्रमों में सैधांतिक प्रशिक्षण के अलावा प्रौद्योगिकी प्रदर्शन भी किया गया। प्रशिक्षण के दारा परियोजना द्वारा प्रशिक्षणार्थियों को इस व्यवसाय को प्रारंभ करने के लिए - मिलने वाले विभिन्न अनुदानों संबंधी जानकारी प्रदान की गई। उसके अलावा व्यक्तियों को बाक्स की खरीद के लिए भी पर्याप्त सहायता परियोजना १३ गई। मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण कार्यक्रम में यह आवश्यक त सहायता परियोजना द्वारा उपलब्ध यह आवश्यक है कि शिक्षणार्थियों को इस व्यवसाय का तकनीकी प्रदर्शन भी उपलब्ध कराया जाए, जिससे इस व्यवसाय से जुड़ने के इच्छुक व्यक्तियों की समस्त शंकाओं का निवारण किया जा सके। परियोजना का गत वर्षों से यह प्रयास रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक व्यक्ति इस व्यवसाय से जुड़कर क्रांतिकारी परिवर्तन उत्पन्न करेंयहाँ मधमक्खी पालन एवं मीन गृहप्रबंध संबंधी संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जा रही hai------------


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ग्रामीण क्षेत्र व कृषि के संदर्भ में मधुमक्खी पालन की उपादेयता • पूर्ण कुशलता व विशेषज्ञता के साथ व्यक्तियों को लाभप्रद स्वरोजगार का अवसर प्रदान करता हैस्थानीय संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग कर लाभार्जन कराता है• अन्य उद्योगों की अपेक्षाकृत इस व्यवसाय में कम निवेश की आवश्यकता होती है। • मधु, मोम व मौनवंश में वृद्धि कर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है• मधुमक्खी पालन से न केवल शहद व मोम ही प्राप्त होता है। वरन रॉयल नामक पदार्थ भी प्राप्त होता है जिसकी विदेशों में अत्यधिक मांग है• विभिन्न फसलें, सब्जियों, फलोद्यान व औषिधीय पौधे प्रति वर्ष फल बीज के अतिरिक्त पुष्प-रस और पराग को धारण करते हैं, परन्तु दोहन के अभाव में ये, धूप, वर्षा व ओलों के कारण नष्ट हो जाते हैं। मधुमक्खी पालन द्वारा इनका उचित उपयोग संभव हो पाता है.


• जिन फसलों तथा फलदार वृक्षों पर परागण कीटों द्वारा सम्पन्न होता है, मधुमक्खियों की उपस्थिति में उन की पैदावार में बेतहाशा वृद्धि होती है। सामान्य तथा परागण वाली फसलों की पैदवार 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैविभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है की मधुमक्खियाँ यदि एक रूपए का लाभ मधुमक्खी पालक को पहुँचाती हैं तो वह 15-20 रूपए का लभ उन काश्तकारों व बागवानों को पहुँचाती हैं, जिनके खेतों या बागों में यह परागण व मधु संग्रहण हेतु जाती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापक परिवर्तन प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि इस व्यवसाय का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तृत प्रचार-प्रसार किया जाए.


मधुमक्खी की प्राप्त प्रजातियाँ


हमारे देश में मधुमक्खी की पांच प्रजातियाँ पाई जाती हैं


• एपीस डोरसेटा • एपीस फलेरिया • एपीस इंडिका • एपीस मैलिफेटा


इनमें प्रथम चार प्रजातियों को पालन हेतु प्रयोग किया जाता हैमैलापोना टाईगोना प्रजाति की मधुमक्खी का कोई आर्थिक महत्व नहीं होता है, वह मात्र 20-30 ग्राम शहद ही एकत्रित कर पाती है।


एपीस डोरसेटा- यह स्थानीय क्षेत्रों में पहाड़ी मधुमक्खी के नाम से जानी जाती हैयह मक्खी लगभग 1200 मी. की ऊँचाई तक पायी जाती है व बड़े वृक्षों, पुरानी इमारतों इत्यादि पर ही छत्ता निर्मित करती हैंअपने भयानक स्वभाव व तेज डंक के कारण इसका पालना मुश्किल होता हैइसमें वर्षभर में 30-40 किलो तक शहद प्राप्त हो जाता है।


एपीस फ्लोरिय- यह सबसे छोटे आकार की मधुमक्खी होती है व स्थानीय भाषा में छोटी या लडट मक्खी के नाम से जानी जाती है। यह मैदानों में झाड़ियों में, छत के कोनो इत्यादि में छत्ता बनाती है। अपनी छोटी आकृति के कारण ये केवल 200 ग्राम से 2 किलो तक शहद एकत्रित कर पाती hai----------


एपीस इंडिका- यह भारतीय मूल की ही प्रजाति है व पहाड़ी व मैदानी जगहों में पाई जाती हैं।इसकी आकृति एपीस डोरसेटा व एपीस फ्लोरिया के मध्य की होती है।


यह बंद घरों में, गोफओं में या छुपी हुई जगहों पर घर बनाना अधिक पसंद करती है। इस प्रजाति की मधुमक्खियों को प्रकाश नापसंद होता हैएक वर्ष में इनके छत्ते से 2-5 कि. ग्रा. तक शहद प्राप्त होता हैएपीस मैलीफेटा- इसे इटेलियन मधुमक्खी भी कहते हैं, यह आकार व स्वभाव में भारतीय महाद्वीपीय प्रजाति है। इसका रंग भूरा, अधिक परिश्रमी आदत होने के कारण यह पालन के लिए सर्वोत्तम प्रजाति मानी जाती है। इसमें भगछूट की आदत कम होती है व यह पराग व मधु प्राप्ति हेतु 2-2.5 किमी की दूरी भी तय कर लेती है। मधुमक्खी के इस वंश से वर्षभर में औसतन 50-60 किग्रा. शहद प्राप्त हो जाता है


इटेलियन मधुमक्खी इटेलियन मधुमक्खी पालन में प्रयुक्त मौन गृह में लगभग 40-80 हजार तक मधुमक्खियाँ होती हैं, जिनमें एक रानी मक्खी, कुछ सौ नर व शेष मधुमक्खियाँ होती हैं


रानी मक्खी यह लम्बे उदर व सुनहरे रंग की मधुमक्खी होती है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है।इसका जीवन काल लगभग तीन वर्ष का होता है। सम्पूर्ण मौन परिवार में एक ही रानी होती है जो अंडे देने का कार्य करती है, जिनकी संख्या 2500 से 3000 प्रतिदिन होती है।यह दो प्रकार के अंडे देटी है, गर्भित व अगर्भित अंडे। इसके गर्भित workins अंडे से मादा व अगर्भित अंडे से नर मधुमक्खी विकसित होती है।युवा रानी, रानीकोष व विकसित होती हैं जिसमें 15-16 दिन का समय लगता है.


नर मधुमक्खी या ड्रोंस


नर मधुमक्खी नर मधुमक्खी गोल, काले उदर युक्त व डंक रहित होती हैं।यह प्रजनन कार्य सम्पन्न करती है व इस काल में बहुतायत में होती हैरानी मधुमक्खी से प्रजननोप्रांत नर मधुमक्खी मर जाती है, यह नपशियत Queen फ्लाइट कहलाता हैइसके तीन दिन पश्चात् रानी अंडे देने का कार्य प्रारंभ कर देती है.


मादा मधुमक्खी या श्रमिक


मादा मधुमक्खी पूर्णतया विकसित डंक वाली श्रमिक मक्खी मौनगृह के समस्त के संचालित करती है।इनका जीवनकाल 40-45 दिन का होता है। श्रमिक मक्खी कोष से पैदा होने के तीसरे दिन से कार्य करना प्रारंभ कर देती है। मोम उत्पादित करना, रॉयल जेली श्रावित करना, छत्ता बनाना, छत्ते की सफाई करना, छत्ते का तापक्रम बनाए रखना, कोषों की सफाई करना, वातायन करना, भोजन के स्रोत की खोज करना, पुष्प- रस को मधु रूप में परिवर्तित कर संचित करना, प्रवेश द्वार पर चौकीदारी करना इत्यादि कार्य मादा मधुमक्खी द्वारा किए जाते हैं।


मौन गृह


मौन गृह प्राकृतिक रूप से मधुमक्खी अपना छत्ता पेड़ के खोखले, दिवार के कोनों, पुराने खंडहरों आदि में लगाती हैं। इनमें शहद प्राप्ति हेतु इन्हें काटकर निचोड़ा जाता है, परन्तु इस क्रियाविधि में अंडा लार्वा व प्यूपा आदि का रस भी शहद में मिल जाता है साथ ही मौनवंश भी नष्ट हो जाता है। प्राचीन काल में जव मधुमक्खी पालन व्यवसाय का तकनीकी विकास नहीं हुआ था तब यही प्रक्रिया शहद प्राप्ति हेतु अपनाई जाती थी। इससे बचने के लिए वैज्ञानिकों ने पूर्ण अध्ययन व विभिन्न शोधों के उपरांत मधुमक्खी पालन हेतु मौनगृह व मधु निष्कासन यंत्र का आविष्कार किया.


पालन हेतु मौनगृह व मधु निष्कासन यंत्र का आविष्कार किया___ मौनगृह लकड़ी का एक विशेष प्रकार से बना बक्सा होता है। यह मधुमक्खी पालन में सबसे महत्वपूर्ण उपकरण होता है। मौनगृह का सबसे निचला भाग तलपट कहलाता है, यह लगभग 3812 मि.मी. लम्बे, 2662 मि.मी. चौड़ाई व 50 मि. मी. ऊँचाई वाले लकड़ी पट्टे का बना होता है।तलपट के ठीक ऊपर वाला भाग शिशु खंड कहलाता है।इसकी बाहरी माप 286.2 मि.मी. लम्बी, 2662 मि.मी. चौड़ी व 50 मि.मी. ऊँची होती है।शिशु खंड की आन्तरिक माप 240 मि.मी. लम्बी, 320 मी. चौड़ी व 173 मि. मी. ऊँची होती है।शिशु खंड में अंडा, लार्वा, प्यूपा पाया जाता हैव मौन वंश के तीनों सदस्य श्रमिक रानी व नर रहते हैं।मौन गृह के दस भाग में 10 फ्रेम होते हैं श्रमिक मधुमक्खी द्वारा शहद का भंडारण इसी कक्ष में किया जाता है। इसके अलावा मौनगृह में दो ढक्कन होते हैं आन्तरिक व बाह्य ढक्कनआन्तरिक ढक्कन एक पट्टी जैसी आकृति का होता है व इसके बिल्कुल मध्य में एक छिद्र होता है। जब मधुमक्खियाँ शिशु खंड में हो तो आन्तरिक ढक्कन शिशुखंड पर रखकर फिर बाह्य ढक्कन ढंका जाता है।यह ढक्कन के ऊपर एक टिन की चादर लगी रहती है जो वर्षा ऋतु में पानी के अंदर प्रवेश से मौनगृह की रक्षा करती है.


पानी के अंदर प्रवेश से मौनगृह की रक्षा करती है___ मौनगृह को लोहे के एक चौकोर स्टैंड पर स्थापित किया जाता है। स्टैंड के चारों पायों के नीचे पानी से भरी प्यालियाँ रखी जाती हैं। जिसके फलस्वरूप चीटियाँ मौगगृह में प्रवेश नहीं कर पाती हैं.


यहाँ मधमक्खी पालन में प्रयुक्त अन्य सहायक उपकरणों के बारे में अधिक जानकारी दी गयी है.


मुंहरक्षक जाली


इसके प्रयोग से मौन पालक का चेहरा पूर्णत: ढका रहता है। मौनवंश निरीक्षण, शहद निष्कासन एवं मौनवंश निरीक्षण, शहद निष्कासन मौनवंश वृद्धि आदि कार्यों को करते समय श्रमिक के डंक मारने का खतरा बना रहता है, इससे बचाव के लिए इस जाली का प्रयोग किया जाता है.


मौमी छत्तादार


मौमी छत्तादार यह प्राकृतिक मोम से बना हुआ पट्टीनुमा आकृति का होता है। मधुमक्खी पालन में होता है। मधुमक्खी पालन में जब नए छत्तों का निर्माण कराया जाता है तो इसे चौखट में बनी झिरी में फिट करके तार का आधार दे देते हैं। इस पर बने छत्ते अधिक मजबूत होते हैं व मधु निष्कासन के समय टूटते नहीं हैंमौमी छत्तादार में प्रयुक्त मोम का शुद्ध होना भी अत्यावश्यक है, अन्यथा मधुमक्खियाँ उस पर सही प्रकार से छत्ते नहीं बनाती.


धुंवाधार


यह एक टीन का बना हुआ डिब्बा होता हैइसके अंदर एक टाट या कपड़े का टूकड़ा रखकर जलाया जाता है, जिसके एक कोने से धुंवा निकलता है। जब मधुमक्खियाँ काबू से बाहर होती हैं तो धुवांधार द्वारा उन पर धुवाँ छोड़ा जाता है जिसे मधुमक्खियाँ शांत हो जाती हैं।


मधुमक्खी पेटिका (Beehive)


यह लकड़ी का बना छत्ते का आधार होता है। यह मधुमक्खियों के सवभाव के अनुसार सुविधाजनक बनाया गया हैबक्से में तलपट, शिशु कक्ष, मधुकक्ष, अंदर का ढक्कन रोधक जाली, डम्मी बोर्ड, शिशु कक्ष रोधक जाली, रानी रोधक जाली, चोखटें (फ्रेम), व बाहरी ढक्क्न आदि भाग होते है। प्रत्येक कक्षा चौखटे होते है। बक्से गंध रहित लकड़ी तन, आम इत्यादि । कैल की लकडी भाग होते हैप्रत्येक कक्ष में लकड़ी के बने ।0 10 से गंध रहित लकड़ी से तैयार किये जाते है जैसे केल, शीशम, यादि । कैल की लकड़ी साफ, नरम एवं वजन में हल्की होने के कारन मधमक्खी पालन के लिए उपयुक्त साबित हुई है.


(Comb Foundation)


FOTITEIT यह मोम का बना छत्ते का आधार होता है। यह मधुमक्खियों द्वारा पैदा किए गए मोम की पतली चादर होती है जिस पर मशीन से कोष्ठक उभार दिए जाते हैइसे प्रत्येक चौखट के मध्य लगा दिया जाता है। मधुमक्खी इसी पर छत्ता बनाने के लिए बाध्य हो जाती हैजिससे मधुमक्खियों का समय और मेहनत कम लगाती है।


रानी रोकपट्ट 


यह लोहे की पतली जाली होती है जिसे शिशु खंड तथा मधुखंड के बिच लगाया जाता है ताकि रानी मक्खी शिशु खंड से मधुखंड में न जा सके। इस जाली से कमेरी मक्खियां आसानी से आ जा सकता है.


नरपाश 


(Drone trep) जब नर मधुमक्खी की संख्या ज्यादा हो जाती है तो उन्हें फंसा कर नष्ट करने या एक जगह से दूसरी जगह बदलने के लिए इस ट्रेप का इस्तेमाल किया जाता है।


शहद निष्कासन यंत्र 


यह लोहे की चादर का ड्रम जैसा बना होता है। इसके अंदर घूमने वाला पिंजरा होता है। जिसको ऊपर लगे हुए गियर पहिये से घुमाया जाता है। सील बंद छत्तों की टोपियों को काटकर पिंजरे में बनी जगह में रख दिया जाता हैघूमने के कारण शहद छिटक कर बहार आ जाता है और ड्रम के तले में इक्क्ठा हो जाता है.


छीलन चाकू


यह इस्पात का करीब 1 इंच लम्बा व 2 इंच चौड़ा तेज धार वाला दो मुँहा चाकू होता है। जिससे शहद भरे छत्तों की कोष्ठों की टोपियों को काटा जाता है।


बक्सा औजार 


यह लोहे की खुरपी होती है जिसे 9 इंच लम्बी, 2 इंच छोड़ी तथा 2 सूत मोटी लोहे की पत्ती से बनाया जाता है। इसका सिरा 90 डिग्री के कोण पर 0.5 इंच मुदा होता है तथा दूसरे सिरे पर धार बानी होती है। मुड़े हुए भाग के पास कील निकालने लिए एक छेद होता है। बक्सा औजार का उपयोग मधुमक्खी बॉक्स की साफ-सफाई, चौखटों को अलग करने तथा कीलों को लगाने निकालने में किया जाता है।


ब्रश (Brush)


यह बहुत ही नरम बालों का होता है और शहद निकलने के समय मधुमक्खियों को उनके छत्तों से हटाने के काम में लिया जाता है।


शहद निकालना (Honey extraction)


शहद निकलते समय यह अति आवश्यक है कि शहद केवल उन्ही चौखटों से निकले जिन पर तीन चौथाई भाग पर मोमी टोपिया लग गई हो। बाकि चौखटों से शहद न निकाले क्योंकि यह कच्चा होता है इनमे नमी की मात्रा अधिक होने के कारण में खट्टापन आ जाता है।


छत्ते से शहद निकालने के लिए मधुमक्खियों को हल्का धुंआ देंऔर किसी अच्छे ब्रश से मधुमक्खियों को छत्ते से हटा दें। शहद के छत्ते को खली बक्सों में रखे और शहद निकलने के लिए ले जायेमधुमक्खियों की जरुरत के अनुसार शहद छत्तों में छोड़ दे। मधुमक्खी परिवार की क्षमता को देखते हुए प्रत्येक वंश में 5 किग्रा. शहद होना आवश्यक है।


होना आवश्यक है। ___ छत्तों से शहद निकालने के बाद छत्तों को मधुमक्खी वंशों को दे दे। चोरी व लड़ाई रोकने के लिए बक्सों का प्रवेश द्वार बंद करें। ताजा निकाले शहद को साफ करना आसान है। इसलिए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए की सफाई और डिब्बाबंदी का जल्दी से जल्दी हो जाये और शहद को दोबारा गर्म न करने पड़े। छत्ते से मोमी टोपिया निकालते समय प्राप्त मोम से शहद निकाले और फिर मोमो को मलमल के कपड़े से बांधकर उबलते पानी में डाल कर शुद्ध मोम प्राप्त किया जा सकता है। शहद निष्कासन के बाद प्रयोग किये गए उपकारों को साफ करे.


पोषण प्रबंध


मधुमक्खी पालन व्यवसाय प्रारम्भ करने से पूर्व यह आवश्यक है की मधुमक्खी पालन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसके बिल्कुल मध्य में एक छड़ व जाली वर्षभर का योजना प्रारूप तैयार किया जाए। मधुमक्खियों के पोषण पराग व मकरंद द्वारा होता है, जो ये विभीन्न फूलों से प्राप्त करती हैं।अत: मधुमक्खीपालक को चाहिए कि वो व्यवसाय आरम्भ करने से पूर्व ये सुनिश्चित कर ले किस माह में किस वनस्पति या फसल से पूरे वर्ष पराग व मकरंद प्राप्त होते रहेंगे।इमली, नीमसफेदा कचनार, रोहिड़ा लिसोड़ा, अडूसा, रीठा आदि वृक्षों से, नींबू, अमरुद, आम अंगूर,अनार आदि फलों की फसलों से, मिर्च, बैंगन, टमाटर, चना मेथी, लौकी, करेला, तुराई ककड़ी, कटेला आदि सब्जियों से, सरसों कपास, सूरजमुखी, तारामीरा आदि फसलों से पराग व मकरंद मधुमक्खियों को प्रचुर मात्रा में मिल जाता है। पराग व मकरंद प्राप्ति का मासिक योजना प्रारूप तैयार करने से मौनगृहों के स्थानांतरण की सुविधा हो जाती है.


पराग व मकरंद प्राकृतिक रूप से प्राप्त नहीं होने की दशा में मधुमक्खियों को कृत्रिम भोजन की भी व्यवस्था की जाती है। कृत्रिम भोजन के रूप में उन्हें चीनी का घोल दिया जाता है। यह घोल एक पात्र में लेकर उसे मौनगृह में रख देते हैं। इसके अलावा मधुमक्खियों का कृत्रिम भोजन उड़द से भी बनाया जा सकता हैं। इसे असप्लिमेंट कहते हैं। इसे बनाने के लिए लगभग एक सौ ग्राम साबुत उड़द अंकुरित करके उसे पीसा जाता है।इस पीसी हुई डाल में दो चम्मच मिलाकर एक समांग मिश्रण तैयार कर लेते हैं। यह मिश्रण भोजन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।इससे मधुमक्खियों को थोड़े समय तक फूलों से प्राप्त होने वाला भोजन हो जाता है


मधुमक्खी पालन के लिए स्थान निर्धारण


• ऐसे स्थान का चयन आवश्यक है जिसके चारों तरफ 2-3 किमी. के क्षेत्र में पेड़-पौधे बहुतायत में, हों जिनसे पराग व मकरंद अधिक समय तक उपलब्ध हो सके। बॉक्स स्थापना हेतु स्थान समतल व पानी का उचित निकास होना चाहिए। स्थान के पास का बाग या फलौद्यान अधिक घना नहीं होना चाहिए ताकि गर्मी के मौसम में हवा का आवागमन सुचारू हो सके। • जहाँ मौनगृह स्थापित होना है, वह स्थान छायादार होना चाहिए• वह स्थान दीमक व चीटियों से नियंतित्र होना आवश्यक हैदो मौनगृह के मध्य चार से पांच मीटर का फासला होना आवश्यक है, उन्हें पंक्ति में नहीं लगाकर बिखरे रूप में लगाना चाहिए ।एक स्थान पर 50 से 100 मौनगृह स्थापित किये जा सकते हैंहर बॉक्स के सामने पहचान के लिए कोई खास पेड़ या निशानी लगनी चाहिए ताकि मधुमक्खी अपने ही मौनगृह में प्रवेश करें। मौनगृह को मोमी पतंगे के प्रकोप से बचाने के उपाय किए जाने चाहिए। निरीक्षण के सयम यह ध्यान देना चाहिए कि मौनगृह में नमी तो नहीं है अन्यथा उसे धुप दिखाकर सुखा देना चाहिए.


शहद निष्कासन


शहद निष्कासन मधुखंड में स्थित चौखटों में जब 75 से 80 प्रतिशत तक तक शहद जमा हो जाए तो उस शहद का निष्कासन किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले चौखटों से मधुमक्खियाँ झाड़कर मधु खंड में डाल देते हैं इसके पश्चात चाकू से या तेज गर्म पानी डालकर छत्ते से मोम की ऊपरी परत उतारते हैं। फिर इस चौखट को शहद निष्कासन यंत्र में रखकर हैंडिल द्वारा घुमाते हैं, इसमें अपकेन्द्रिय बल द्वारा शहद बाहर निकल जाता है व छत्ते की संरचना को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचताइस चौखट को पुनः मधुखंड में स्थापित कर दिया जाता है एवं मधुमक्खियाँ छत्ते के टूटे हुए भागों को ठीक करके पुनः शहद भरना प्रारंभ कर देती हैं। इस प्रकार प्राप्त शहद को मशीन से निकाल कर एक टंकी में 48-50 घंटे तक डाल देते हैं, ऐसा करने से शहद में मिले हवा के बूलबूले, मोम आदि शहद की ऊपरी सतह पर व अन्य मैली वस्तुएँ नीचे सतह पर बह जाती है। शहद को बारीक कपड़े से छानकर व प्रोसेसिंग के उपरांत स्वच्छ व सूखी बोतलों में भरकर बाजार में बेचा जा सकता है।इस प्रकार न तो छत्ते और न ही लार्वा, प्यूपा आदि नष्ट होते हैं और शहद भी शुद्ध प्राप्त होता है


मधुमक्खी पालन में व्याधियाँ


मधुमक्खी पालन में आने वाली व्याधियाँ की जानकारी यहाँ दी गयी है1- माइट-यह चार पैरों वाला, मधुमक्खी पर परजीवी कीट है।इससे बचाव के लिए संक्रमण की स्थिति 10-15 दिन के अन्तराल पर सल्फर चूर्ण का छिड़काव चौखट की लकड़ी पर व प्रवेश द्वार पर करना चाहिए2-सैक ब्रूड वायरस- यह एक वायरस जनित व्याधि है।इटेलियन मधुमक्खियों में इस व्याधि के लिए प्रतिरोधक क्षमता अन्य से अधिक होती है3- भगछूट-मधुमक्खियों को अपने आवास से बड़ा लगाव होता है परंतु कई बार इनके सम्मुख ऐसी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं कि इन्हें अपना आवास छोड़ना पड़ता है।इस स्थिति में भगछूट थैले में पकड़ का पुन: मौनगृह में स्थापित कर देते हैं4- मोमी पतंगा- यह मधुमक्खी का शत्रु होता है।निरीक्षण के दौरान इसे मारकर नष्ट का देना चाहिए।


मधमक्खी का व्यवहार, व्यवस्था एवं उनका प्रबंधन


एवं उनका विभिन्न मधुमक्खी जातियों के स्वभाव व व्यवहार में अंतर अवश्य हैं परन्तु तापमान, समुद्र तल से ऊंचाई, अपेक्षित आद्रता तथा आसपास की स्थिति भी इनकी क्रियाओं को प्रभावित करती हैंमधुमक्खी का स्वयं एवं वंश को बचने का मूल स्वभाव हैं .मधुमक्खियां खतरे के ससमय डंक मारती हैं जिससे थोड़ी सूजन जरूर होती हैं, लेकिन यह डंक विष मनुष्य की कई बिमारियों को ठीक करने में लाभकारी वैसे डंक से बचने के लिए, वंशों को देखते समय मुँह पर जाली लगाकर चौखटों को धीरे-धीरे और सहजता से उठायेअगर मधुमक्खी काफी गुस्से में हो तो धुम्न का प्रयोग करेंमधुमक्खी गृहों में रखी जाने वाली प्रजातियाँ प्रायः शांत स्वभाव वाली होती हैं लेकिन सारंग मधुमक्खी में काफी गुस्सा होता हैं तथा एक मधुमक्खी के डांक मारने पर अन्य बहुत सी मधुमक्खियां भी पीछे भागती हैं।


मधुमक्खी का व्यवहार घरछूट


मधुमक्खी घर में अगर भोजन की कमी हो, शत्रुओं तथा रोगों का प्रकोप हो, मधुमक्खी के साथ आराम तथा सावधानी से काम न किया जाये या ज्यादा तापमान हो तो वे घर छोड़कर भाग जाती हैं तथा नए और अधिक सुरक्षित स्थान पर नया घर बना लेती हैं। भारतीय मधुमक्खी में पश्चात्य द्धमेलीफेराऋ मधुमक्खी की अपेक्षा यह आदत अधिक प्रबल हैं.


वकछूट


बसंत के आते ही मौसम की अनुकूलता व मधु सम्बन्धी पुष्प उपलब्ध होने से मधुमक्खी प्रजनन तीव्र होने लगता हैंअत: मधुमक्खियों की संख्या तीव्र गति से बढ़ती हैं। फलस्वरूप छत्ते के स्थान की कमी हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में पुरानी रानी कुछ सदस्यों के साथ वंश को छोड़ देती हैंइसे वकछूट या गण छोड़ना कहते हैंमधुमक्खी अपने वंशों की अनुकूल परिस्तिथियों में संख्या में बढ़ोतरी करती हैं जोकि मधुमक्खियों का मूल स्वभाव हैं। भारतीय मधुमक्खी में यह प्रवृति बहत अधिक पाई जाती हैं। यदि छत्ते ठीक प्रकार से न बने हो या बहुत पुराने और टूटे-फूटे हो या रानी के अंडे देने के समय छत्ते में कोष्ठों की कमी या रानी अधिक आयु हो जाए या मधुरस के मुख्य स्राव से पहले वंश में मधुमक्खियों की संख्या अधिक हो तो कमेरी मधुमक्खी बगैर काम के रह जाती हैं और इन हालतों में वकछूट की संभावना काफी ज्यादा हो जाती हैंइस तरह की वंश बढ़ोतरी मधुमक्खी पालक के लिए भरी समस्या हैं जिससे मधुमक्खी वंश शक्तिशाली नहीं रह एते हैं तथा शहद न के बराबर ही मिलता हैं।


नियंत्रण


1. मधुमक्खी वंशों को छत्तों वाली चौखटे देते रहने से भीड़ के कारण वकछूट को कम किया जा सकता हैं। 2. वकछूट के समय रानी मधुमक्खी कोष्ठों को खत्म करते रहें। 3. शिशु छत्तों की चौखटे निकलकर वंश में दे तथा उनकी जगह पर नये छ्त्ताधार ता छत्ते, रानी द्वारा अण्डे देने के लिए दें जिससे शिशु-पालन वाली मधुमक्खी अपने कार्य में जुट जाती हैं। 4. वंश को अस्थायी तोर पर विभाजित करें तथा मधुर स्त्राव से पहले दोनों को फिर मिला दें। 5. मधुमक्खी वंशों को विभाजित कर अपनी इच्छानुसार वंशों की संख्या बढ़ाई जा सकती हैं.


लूटमार


कुछा मधुमक्ख्यां फूलों के अतिरिक्त अन्य स्त्रोतों से भी अपना भोजन लती हैंतथा वे कभी-कभी अन्य मधुमक्खी ग्रहों से भी शहद चुरा लती हैं इसे लूटमार कहते हैं। जब फूलों का अभाव हो जाता हैं तो उस समय लूटमार की घटनाए बढ़ जाती हैं.


ऐसी स्थिति में लुटे हुए वंश कमजोर हो जाते हैंघुसपैठी मधुमक्खी लुटे जाने वाले ग्रहों में सीधे प्रवेश न करके उस ग्रह की रक्षक मधुमक्खियों के ऊपर मंडराने लगती हैं तथा रक्षकों से बचकर अंदर प्रवेश कर जाती हैं। रक्षक संख्या कम होने के कारण घुसपैठियों का सामना भी नहीं कर पाती। घुसपैठियों के अंदर घुसने के बाद लड़ाई भी होती हैं। इसमें दोनों को ही नुकसान होता हैं। लुटेरी मधुमक्खियां पहले रानी को तलाश करके उसे मारने का प्रयत्न करती हैं संख्या अधिक होने पर वे उस गृह का सारा शहद लूट लेती हैं। कभी-कभी चोर मधुमक्खियां अन्य रास्तों से जैसे दरारों से भी अंदर घुस जाती हैं। बाहर निकलने के लिए मुख्य द्वार का प्रयोग करती हैं.


नियंत्रण


• वंशों को कमजोर न होने दे• कृतिम भोजन सूर्यास्त के बाद देकर भोजन पात्र को सूर्योदय से पहले निकाल लेकृतिम भोजन गृह के पास न गिरेग्रहों का निरक्षण करते समय ग्रहों को अधिक समय तक खुला न रखे जहां तक संभव हो जल्दी से जल्दी निरिक्षण करके ग्रहों को बंद कर देंग्रह का प्रवेश द्वार भोजनकाल समय में कम कर दे• लूटमार के समय ग्रह को कतई न खोले• लुमार के समय ग्रहों के पास कार्बोलिन एसिड या फिनाइल से भीगा घास का गुच्छा रख देवे। • लुटे जाने वाले ग्रह को हटाकर 3 की.मी. दूर रख दे व खली डिब्बों में दोबारा शहद से भरी एक फ्रेम रख दे। शहद खत्म होने पर लुटेरी मक्खियां दोबारा वहां नहीं आएगी.


मधुमक्खी की अन्य व्यवस्थाएं और प्रबंधन


कृत्रिम भोजन


सर्दियों में कुछ स्थानों पर मधुमक्खियों के लिए भोज के स्त्रोत नहीं मिलते या सर्दी अधिक होने से मधुमक्खियां घर छोड़कर बाहर नहीं आ सकती। इस समय इनको सही ढंग से पालने के लिए जरूरत के अनुसार 50-70: शक्कर का शर्बत भोजन पात्र के अंदर पेटिका में रखकर दिया जाता हैं। बसंत के मौसम के आरम्भ में फूल खिलने से 15-20 दिन पहले कृतिम भोजन देने से लाभ होता हैं। क्योंकि यह वनाश की प्रजनन शक्ति को बढ़ाता है तथा कमेरी मधुमक्खियों की मधुरस तथा प्राग इकट्ठा करने की इच्छा को जगाता हैं। इस कृत्रिम भोजन की उन जगहों में जरूरत नहीं पड़ती, जहां सर्दी अधिक न हो और सरसों जाती की फसलों से भोजन मिलता रहें। वकछुट तथा गर्मी के मौसम में भोजन की कमी को पूरा करने के लिए कृत्रिम भोजन की आवश्यकता हो सकती हैं।


को पूरा करने के लिए कृत्रिम भोजन की आवश्यकता हो सकती हैं। ___शहद निकालते समय वंश की जरूरत के अनुसार शहद छोड़ देना चाहिए जिससे प्रायः कृत्रिम भोजन देने की आवश्यकता न पड़ेंअगर मधुकमखियों को प्राग ठीक मात्रा में मिलता रहें तो वंश की प्रजनन प्रक्रिया जारी रहती हैं। अन्यथा कई बार ठप भी हो जाती हैंइस हालत में प्राग परिपक्व भोजन देकर वंशों को शक्तिशली बनाया जा सकता हैंतेल-निकल हुआ सोयाबीन का आटा, खमीर, शक्कर और थोड़े शहद का मिश्रण पराग का एक अच्छा परिपूरक हैं जिसको मधुमक्खियां अच्छी तरह स्वीकार कर लेती हैं। इसमें यदि 5: मधुकमखियों द्वारा इकट्ठा किया पराग मिलाया जाए तो यह परिपूरक उत्तम हो जाता हैं। जब मधुकमाक्खियों को अधिक पराग उपलब्ध हो तो पेटिका के प्रवेश द्वार पर पराग पाश के प्रयोग से प्राग एकत्र किया जा सकता हैं.


पानी की व्यवस्था


जब मधुरस के फूल न हो तथा वंश इक्क्ठा किए हुए शहद को खा रहा हो तो पानी की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि परिचारिका मधुमक्खियां उस संग्रहित मधु में पानी मिलकर शिशुओं को खिलाती है। गर्मी के मौसम में पानी छत्तों पर छिड़ककर मधुमक्खियां पंखों से पंखा कर तापमान व म करती है। इसलिए मधुमक्खी गृहों वाली जगह में पानी होना जरुरी हैपानी किस बर्तन में रखे पानी से ज्यादा अच्छा होता है। क्योंकि स्थिर पानी से बीमारियां फैलने का खतरा ज्यादा रहता है। यदि पानी का प्रबंधन करना हो तो घडे के तले लोटा छेद करें जिसमे धागे की बत्ती फंसा दे इस घड़े को तिपाई पर रखें ताकि पानी बद-बन्द टपके । पानी की बून्द ढलानकार पत्थर या लकड़ी के टुकड़े पर गिराए.


मधुमक्खी वंशों का विभाजन व मेल


वकछट प्राकृतिक ढंग है जिससे वंशों की संख्या को बढ़ा सकते है। परन्तु यह उत्तम लंग नहीं है इसलिए वंशों का विभाजन एक उपयुक्त ढंग हैबसंत ऋतु में शक्तिशाली वंशों में दो या तीन शिशुकक्ष चौखटे मधुमक्खियों के साथ, एक चौखट नए अण्डों की तथा एक चौखट पराग व मकरकन्द की लेकर छोटे मधुमक्खी गृह में रखकर उन्हें मधुमक्खी स्थल से दर ले जाएं तथा उन्हें नई रानी मधुमक्खी दे। यदि नई रानी नहीं हो तो भी अण्डों से यह विभाजन नई रानी मधुमक्खी का पालन कर लेता है। यह छोटे छोटे वंश ग्रीष्म ;तू तक पूर्ण तथा अच्छे मधुमक्खी वंश बन जाते है। कई परिस्थितियों में कमजोर या रानी रहित वंशों को अन्य वंशों में मिलाने की जरुरत होती है, क्योंकि कमजोर वंश सर्दी के प्रकोप को सहन नहीं कर सकते व न ही शहद उत्पादन में उपयोगी साबित होते हैदो वंशो को मिलाने के लिए विशेष सावधानी अपनानी पड़ती है अन्यथा मधुमक्खियां आपस में लड़ाई करने लग जाएगी। इस कार्य के लिए जिन दो वंशों को मिलाना हो और उन दोनों वंशन में रानी हो तो जिस वंश में कमजोर रानी हो उसे निकाल दिया जाता है। रानी वाले वंश को जिस वंश में मिलाना हो उस और प्रतिदिन एक-एक फूट खिसकाया जाता है। जब दोनों वंश एक दूसरे के निकट आ जाये तो इन्हे मिलाने के लिए रानी वाले वंश के शिशु कक्ष के ऊपर अखबार का पन्ना जिसमे छोटे-छोटे छिद्रत किये हों, रखकर तथा इस पर निचे की तरफ थोड़ा-थोड़ा शहद लगा दिया जाता है। फिर उसके ऊपर मिलाये जाने वाले रानी रहित वंश का शिशु कक्ष रख कर ऊपर ढक्वन लगा दिया जाता हैधीरे-धीरे दोनों वंशो की गंध मिल जाती है व कमेरी मधुमक्खी कागज को काट देती है। दो वंशो को मिलाने का काम सांयकाल में किया जाता है।


रानी मधुमक्खी बनाने की कृत्रिम विधि


वंश विभाजन या परानी रानी मधुमक्खी को बदलने के समय नई रानी की जरुरत आवश्यकता पड़ती है। वैसे रानी रहित वंश में स्वयं ही रानी कोष्ट बन जाते है परन्तु एक ही समय वंश में रानी मधुमक्खियों को कृत्रिम विधि से बनाना उचित है.


में रानी मधुमक्खियों को कृत्रिम विधि से बनाना उचित हैमधुमक्खियों के घरछूट के समय तथा पराग व मधुरस का भण्डार अधिक मात्रा में होने पर रानी मधुमक्खी बनाई जाये तो अधिक उपयुक्त होता है। कृत्रिम विधि से रानी रहित या रानी सहित वंशों में भी नई रानी बना सकते है। उचित आकर की लकड़ी की गोल छड़ से बने मोमी रानी कपों को लकड़ी के समतल छड़ में लगाकर एक चौखट में फसा देते है। अण्डे से 24 घंटे के अंदर निकले बच्चों को इन कपों में ग्राफ्टिंग सुई से स्थान्तरित किया जाता है। इस चौखट को रानी कोष्ट निर्मित वाली कॉलोनी में कमेरी मक्खियों के मध्य लटका दिया जाता है। ग्राफ्टिंग के 10 दिन बाद, सील बन्द रानी कोष्ठों को निकालकर अलग रानी को पालने वाली कॉलोनी में रखा जाता है। जैसे ही रानी मधुमक्खी कोष्ठों से बहार निकलती है उन्हें रानी पिंजरों में पोषण करने वाली मधुमक्खी के साथ बंद कर देते हैवंश में रानी मधुमक्खी देने के समय इस पिंजरे से 24 घंटे बाद रानी मधुमक्खी को छोड़ा जाता है.


नई रानी का वंश में प्रवेश


वंश में प्रवेश नई रानी तैयार करने के बाद वंचित मधुमक्खी गृहों में नई रानी को प्रवेश कराया जाता है। इसके लिए रानी पिंजरे का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि प्रत्येक वंश की रानी की गंध अलग होती है व प्रवेश की जाने वाली रानी को स्वीकार करने के लिए 24-28 घंटे लगते है। अत: रानी मक्खी को रानी पिंजरे में 4-5 कमेरी मधुमक्खियों सहित, रानी विहीन वंश में दो मधुमक्खी चौखटों के बिच में लटका दिया जाता है। 24 घंटे के बाद रानी को मधुमक्खी के छत्ते में छोड़कर निरिक्षण करे। यदि रानी ठीक प्रकार से मधुमक्खियों के बीच घूमने लगे व मधुमक्खियां उसे इधर-उधर न घसीटें तो समझना चाहिए की नई रानी मधुमक्खी वंश में स्वीकार्य है अन्यथा रानी मक्खी को पुनः पिंजरे में बंद कर दे तथा अगले 12-24घंटे बाद वंश में रानी का प्रवेश करवाने का एक अन्य ढंग भी है जिसमे की रानी पिंजरे में रानी व कमेरी मधुमक्खियां डालने के पश्चात् पिंजरे के द्वार को चीनी व शहद से बनाई गई केन्डी से बंद कर दिया जाता है.


मधुमक्खी परिवार का विभिन्न मौसमों में प्रबंधन


का विभिन्न मौसमों में प्रबंधन मधुमक्खी पालन (Bee keeping) में समन्वित कार्यों को मधुकमाक्खी वंश प्रबंधन कहां जाता हैं जिसका उद्देश्य शहद बनने से पूर्व मधुमक्खी संख्या में अत्यधिक वृद्धि करना हैं ताकि मधुम्राव का पूर्ण लाभ उठा सके। परन्तु जब मधुरस और पराग के स्त्रोतों की कमी हो तो वंशों में वृद्धि कम होनी चाहिए और पुनः मधुस्राव से पूर्व प्रजनन तेज हो जाना चाहिएअतः इसे ध्यान में रखते_ो ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी वंशों के प्रबंध की योजना मौसम और बत जरूरी हैं। ठन्डे स्थानों में शीत ऋतु में शिशु पालन और प्रजनन नावरण के अनुसार बहुत जरूरी हैंठन्डे स्थानों में शीत का वाता का कार्य बहुत कम या बंद हो जाता हैं। त ऋत में ऐसे स्थानों में प्रजनन का कार्य होता हैं तथा वंश की तेजी से ट फल उपलब्ध होने के कारण शहद इकट्ठा करने व बक्सों में मधुमक्खियों की यह उपयक्त समय हैंमई के अंत में शहद निकलने की संभावना हो सकती अबसंत में लूटमार व वकछूट की संभावना रहती हैंइसलिए बक्सों को अधिक देर तक खला न छोड़े व रोकथाम के उपयुक्त उपाय करने चाहिए.


कीटनाशक का मधुमक्खियों पर प्रभाव व बचाव


फसलों के शत्रु, कीट, फफूंदी, कीटाणु और विष्णु रोगों की रोकथाम के लिए कई प्रकार के रसायन प्रयोग किये जाते हैं, जिनसे मधुमक्खियों पर दुष्प्रभाव पड़ता हैं। विषयुक्त प्रभाव से तथा अधिक भूमि में फसल उगने से मधुमक्खियों के अलावा दूसरे परागण करने वाले कीटों की संख्या भी कम होती जा रही हैं तथा आमतौर पर मधुमक्खी पर फसल के परागण के लिए निर्भर करना पड़ेगा इसलिए जहां उपज की बढ़ोतरी के लिए कीटों व रोगो से बचाव करना हैं वहां मक्खियों को रसायनों के विष से बचाना हैं.


यदि फूल खिलने की अवस्था में रसायन का छिड़काव या भुरकाव हो जाता हैं तो मधमक्खियाँ विषयुक्त हो जाती हैं तथा लौटते समय रास्ते या खेत में लुढ़क कर मर जाती हैंकीटनाशक दवाएं तीन तरह जैसे धूमन से, सम्पर्क में आने से व खाने से पाचन प्रणाली द्वारा मक्खी के शरीर में पहुंच जाती हैं तथा आमतौर पर इनके प्रभाव से पंख, पैर और पाचन प्रणाली काम करना बंध कर देते हैं। इस प्रकार वे मर जाती हैं तथा मधुमक्खी वंश अधिक कमजोर पड़ते चले जाते हैं। फसल पर प्रयोग किए गए जहर का शहद में मिलना संभव नहीं है क्योंकि जैसे ही मधुमक्खी इसका अनुभव करती हैं वैसे ही वो मधुमक्खी घर से बाहर आकर मर जाती हैं। यदि जहरीला मकरन्द मधुमक्खी ले लेती हैं तो भी उसे विष का पता चल जाता है और वो इसको अन्य काम करने वाली मक्खियों को नहीं देती हैं। इसके बावजूद काम करने वाली मधुमक्खी को जहर का असर हो जाए तो वो इस मकरन्द या आपके शहद को छत्ते में संग्रहित नहीं करती हैं।


मधु की गुणवत्ता प्रबन्धन प्रणाली


अन्तराष्ट्रीय बाजार में भारतीय शहद की माँग की काफी/भारी सम्भावनाएं है। बागवानी, कृषि एवं वन क्षेत्रों में पुष्पीय विविधता के सन्दर्भ में उपलब्ध मधुमक्खियों की प्रजातियों से औद्यानिक एवं कृषि उत्पादन बृद्धि की काफी अपेक्षाएं हैअन्तराष्ट्रीय मानकों की माँग के कारण शहद के प्राकृतिक गुणों सुगन्ध, स्वाद एवं रंग की यथास्थिति बनाये रखने के लिये मधु उत्पादन (Production), परिष्करण (Processing), भण्डारण (storing), डिब्बा-बन्दी (Packaging), एवं देखभाल (Monitoring), में विशेष सावधानियों की आवश्यकता होती हैप्रदेश में खाद्य उत्पादों के अनुरूप गुणवत्ता के प्रति सामाजिक जागरूकता की कमी (Lack of social awareness) का दुष्पभाव शहद पर भी पड़ रहा है। शहद के लिए गुणवत्ता Yokreta yurisî (Quality Management System for honey – QMS – H) on सुव्यवस्थित किये जाने के लिए निम्न उपाय किये जाने आवश्यक है मधु उत्पादन के हर स्तर पर शहद की गुणवत्ता का आंकलन और स्वच्छता, स्थल, चयन, मधुमक्खी प्रबन्धन सहित क्षेत्र में मौनालय/वन क्षेत्रीय मधु उत्पादन का अनुसरण। उत्पादन पश्चात् प्रबन्धन (Post Harvasting Managment) के अन्तर्गत शहद निष्कासन, भण्डारण तथा परिवहन में सावधानी.


निष्कासन, भण्डारण तथा परिवहन में सावधानीशहद की प्राकृतिक गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए परिष्करण तथा पैकेजिंग के समय किसी भी प्रकार से अधिक गर्म करने/होने की प्रक्रिया से बचने की सावधानी (Temperature should benot to higher than 70°C)। प्रत्येक प्रक्रियाएं हर स्तर पर तकनीकी रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा की जानी आवश्यक है। • शहद की माँग एवं कीमत की दृष्टि से प्रतिप॑धा में बने रहने के लिये अन्तराक्ट्रीय मानकों के अनुरूप-मौनपालक, मधु विक्रेता (मधु उद्योग) तथा राज्य एवं केन्द्र सरकार के स्तर से सभी सम्भव उपाय किये जाने आवश्यक है।


यदि सभी यथा सम्भव प्रयास किये जाए तो कृषक/उद्यानपति, मौनपालक, पिछड़ा क्षेत्र, जनजाति क्षेत्र तथा प्रदेश की कृषि उत्पादकता लाभान्वित होगी.


मौनपालकों द्वारा मधुस्राव काल में मधुखण्ड का उपयोग नही करना -


वर्तमान में 90 प्रतिशत से अधिक मौनपालक शिशुखण्ड से ब्रूड युक्त छत्तों से ही मधु उत्पादन/निष्कासन कर रहे है, फलस्वरूप फेमों से लार्वा एवं नव भण्डारित पराग भी मधु में मिलकर मधु की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और अधिकांश मधु निष्कासन के समय ही दूषित हो जाता हैउपाय:- मौनपालक प्रत्येक मौनवंशो में मधुखण्ड लगाये तथा मधु का निष्कासन केवल मधुखण्ड़ से ब्रूड रहित सील्ड फेमों से ही करें तो मधु की गुणवत्ता को बनाया रखा जा सकता है.


अपरिपक्व मधु का निष्कासन (Unmatured honey extraction)


प्रत्येक पुष्पों का मधु स्त्राव काल सीमित अवधि के लिये ही होता है। मौनपालक अधिकाधिक मात्रा में मध प्राप्ति के लिये अपरिपक्य तथा अनसिल्ड छत्तों से मधु का निक्कासन कर लेते है, क्योंकि परिपक्व मधु के निक्कासन में समय और श्रम दोनों अधिक लगते है। फलस्वरूप अपरिपक्व मधु में नमी की मात्रा 24 प्रति ात से अधिक रहती है, जो कि शहद की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। परिपक्व शहद में नमी की मात्रा 18-20 प्रतिशत तक ही होनी चाहिये


उपाय:- 


उपाय:- शहद की गुणवत्ता बनाये रखने के लिये आवश्यक है कि मौनपालक मधुखण्ड से लगभग 75 प्रतिशत से अधिक फील्ड फ्रेमों से ही शहद का निष्कासन करें।


शहद भण्डार हेतु फूड ग्रेड़ अथवा स्टील निर्मित कैन का उपयोग न किया जान (No use of food grade cane for storing the honey after extraction) :


(No use of food grade cane for storing the honey after extraction) : अधिकांश मौनपालक सामान्यतः मधु भण्डारण बाजार में उपलब्ध पुराने तेल/घी के खाली कनस्तरों में ही करते है। जो कि मधु की गुणवत्ता को प्रभावित करने में अहम भूमिका अदा करते है। कभी-कभी मधु में लैड की उपस्थिति इसी कारण से होती हैउपाय:- भण्डारण के लिये स्टील अथवा फूड ग्रेड़ केन का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाना आवश्यक हैजो उत्पादक इस प्रकिया को नही अपनाते है उन्हें "Food Adulteration Act" खाध्य अपमिश्रण एक्ट के अन्तर्गत निरूद्ध किया जा सकता है.


लोहे के मधु निष्कासक एवं अन्य सहायक उपकरणों का उपयोग Use of Iron made honey extractors and other supporting equipments)


honey extractors and other supporting equipments) मौनपालकों द्वारा मधु निष्कासन हेतु प्रायः लोहे अथवा टिन से निर्मित मधु निष्कासन यत्रो का ही प्रयोग किया जाता है, जिससे गुणवत्ता प्रभावित होने की सम्भावना बढ़ जाती है।


उपाय:- मधु में किसी भी बाहरी धातु की उपस्थिति न हो इसके लिये उच्च कोटि के नील निर्मित अथवा फूड ग्रेड़ वाले उपकरणों का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाना आवश्यक है।


शहद भण्डार हेतु फूड ग्रेड़ अथवा स्टील निर्मित कैन का उपयोग न किया जाना (No use of food grade cane for storing the honey after extraction)


extraction) :अधिकांश मौनपालक सामान्यत: मधु भण्डारण बाजार में उपलब्ध पुराने तेल/घी के खाली कनस्तरों में ही करते है। जो कि मधु की गुणवत्ता को प्रभावित करने में अहम भूमिका अदा करते हैकभी-कभी मधु में लैड की उपस्थिति इसी कारण से होती हैउपाय:- भण्डारण के लिये स्अील अथवा फूड ग्रेड़ केन का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाना आवश्यक है। जो उत्पादक इस प्रकिया को नही अपनातें है उन्हें "Food AdulterationAct" खाध्य अपमिश्रण एक्ट के अन्तर्गत निरूद्ध किया जा सकता है।


विपणन हेतु पैकिंग एंव लेबलिंग (Packing ,labeling and waight)


(Packing ,labeling and waight) गुणवत्ता युक्त शहद के विपणन हेतु पैकिंग लेबलिंग एंव मात्रा का विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। अधिकांश मौनपालक प्लास्टिक के खाली डिब्बो,शराब की खाली बोतलो में बिना लेबल एंव बिना निश्चत मात्रा के शहद की मार्केटिंग करते है,जो कि शहद की गुणवत्ता को प्रभावित करती है एंव मौनपालक को मधु का उचित मूल्य भी नही मिल पाता।


उपाय - अतः विपणन हेतु कॉच के चौकोर अथवा गोल आकार के आधा किलो एंव एक किलो क्षमता वाले जार में संस्था का लेबल लगाया जाना आवश्यक है। ताकि क्रेता शहद को भली प्रकार जांच परख कर उचित मूल्य पर क्रय कर sake----------


मौनवंशो में अनावश्यक रूप से एलोपैथी दवाओं का उपयोग (Unwanted use of Allopathic Medicines in Bee hives) : 


use of Allopathic Medicines in Bee hives) : प्रायः मौनपालक मौनवंशो में लगने वाली बिमारियों/परजीवी/शत्रु के नियन्त्रण हेतु तकनीकी ज्ञान के अभाव अथवा बाजार में उपलब्ध किसी भी प्रकार की दवाओं का उपयोग किसी भी समय में करता रहता है। फलस्वरूप निष्कासित मधु में एण्टी बायोटिक दवाओं के अंश उपस्थित रहते है, जो कि मधु की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैपालको को चाहिये कि बिमारी/परजीवी/शत्र के नियन्त्रण हेतु मौनवंशों में जैविक नियन्त्रण एवं सावधानियाँ अपनायें तथा आवश्यक hone par -----------ओं/रसायनों का प्रयोग करें। अन्तराष्ट्रीय स्तर पर मौनवंशो में एण्टीवायोटिक दवाओं का प्रयोग प्रतिबन्धित है। विभिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्पों से उत्पादित मधु को अलग-अलग भण्डारित, पैकिंग, परिष्कृत कर भी मधु की गुणवत्ता को बनाया जा सकता है.