महिला संगठन धुमरौली

महिला संगठन धुमरौली


विकासखण्ड कनालीछीना के ग्राम पंचायत गोबराडी का एक राजस्व गाँव धुमरौली है। इस गाँव में सोलह परिवार रहते हैं गाँव मुख्य सड़क से सात किमी की दूरी पर बसा हुआ हैधुमरौली गाँव में रास्ते दस प्रतिशत तक भी नहीं बने है । सन् 2008 में उत्तराखण्ड महिला परिषद् की सदस्या काली दीदी ने उस गाँव के बारे में संस्था को बताया। उन्होंने कहा कि धुमरौली में बालवाड़ी खोलने की आवश्यकता है। संस्था के कार्यकर्त्ता गाँव में गये। ग्रामवासी उन्हें देख कर बहुत खुश हो गये।


गाँव में बालवाड़ी खोलने के लिए बैठक की गयी। बैठक में शिक्षिका व स्थान का चयन ग्रामीणों ने स्वयं किया । मल्ला धुमरौली की निवासी नीमा देवी ने बताया कि उनके छोटे-छोटे बच्चे पाँच किमी दूर मुवानी कस्बे के एक विद्यालय में पढ़ने के लिए जाते हैं। विद्यालय और गाँव के बीच में चीड़ का जंगल है। जंगल में बाघ, बन्दर, सुअर के भय से रोज एक आदमी बच्चों के साथ आता-जाता है। चार बच्चों के साथ एक आदमी का दिन बर्बाद हो जाता है। दिन-भर मन में डर समाया रहता हैजब बच्चे घर पहुँचते हैं, तभी अभिभावक चैन की साँस लेते हैं। दूरविद्यालय तक आने-जाने में बच्चे थक जाते हैं शाम को थकान के कारण ना चैन से खाना खाते हैं, ना ही पढ़ पाते हैं।


एक दिन बच्चे चीड़ के जंगल में पहुँचे ही थे कि आँधी आनी शुरू हो गयी। हवा की गति बहुत तेज थी। बच्चों को सँभालना मुश्किल हो गया। आँधी की वजह से पेड़ गिर रहे थे। बच्चों की माताएँ रास्ते में दौड़ती चली आयींवे उन्हें आवाजें दे रहे थींजंगल में आगे की ओर भाग रही थीं। इसी बीच हवा के कारण पेड़ तेजी से गिरने लगे। इतनी धूल थी कि आँखे खोलकर देख नहीं सकते थे। यह क्रम करीब आधा घण्टा चला। इस घटना से डर कर बच्चे बीमार पड़ गये नीमा देवी ने रोते-रोते यह कहानी संस्था के प्रतिनिधियों को सुनाई। ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं, यह कहा।


जब बालवाड़ी खुली तो ग्रामीणों में काफी उत्साह था । बालवाड़ी में नियमित रूप से बारह बच्चे आने लगेकम परिवारों का गाँव होने के कारण वहाँ ना तो प्राथमिक विद्यालय था, ना ही आँगनवाड़ी। बालवाड़ी खोलने के बाद महिला संगठन बनाया । मासिक बैठकों में महिलायें रास्ते तथा पानी की समस्या बताती थीं। उसी वक्त, गाँव के ही निवासी श्री श्याम सिंह जी ग्राम प्रधान बने उन्होंने विकास खण्ड में जाकर पानी की समस्या रखी। उसी क्षेत्र में किसी ने लिखकर दे दिया कि गाँव में पर्याप्त पानी है। इस गाँव में पानी की कोई योजना नहीं चाहिए पानी की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में हो रही है। यह बात महिलाओं ने सुनी तो वे परेशान हो गयीं। गर्मी के मौसम में नीचे गधेरे (छोटी नालेनुमा नदी) से पानी लाकर जानवरों को पिलाना, बर्तन धोना, घर की सफाई करना, कपड़े धोना आदि सभी कामों के लिए पानी की निरंतर जरूरत बनी रहती थी। गाँव में एक ही नौला (जल स्रोत) था। उस स्रोत में रात-भर में दस से पन्द्रह गगरी पानी जमा हो पाता थाजो रात में बर्तन लेकर जल स्रोत तक चला जाये उसे पानी मिलता था। ग्रामवासी पेयजल के लिए निरंतर चिंतित रहते थे।


गाँव में उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान अल्मोड़ा के आर्थिक सहयोग से टंकी का निर्माण किया गया। एक गधेरे में थोड़ा पानी बहता था। महिलाओं ने वहाँ पर टंकी बनाने को कहा। संस्था ने मना किया क्योंकि वहाँ जाने के लिए झाड़ियों का एक बड़ा झुरमुट पार करना होता था। रास्ता नहीं बना था वह स्थान पत्थरों से भरा हुआ थासंगठन की गोष्ठी में बात करके महिलाओं ने झाड़ियाँ काट दीं। मिट्टी खोद कर रास्ता बनाया, रोड़ी-बजरी इकट्ठा कीश्री राम सिंह जी ने टंकी बनाने की जिम्मेदारी लीटंकी बन जाने से पानी की समस्या से निजात मिलीवर्तमान में ग्रामवासी जब भी टंकी तक जायें, पेयजल मिल जाता है। महिलाओं का कहना है कि पेयजल अभी भी दूर है। यदि इस टंकी में पाइप लगाकर गाँव के ऊपर एक बड़ी टंकी बनायी जाती तो जल और आसानी से उपलब्ध होता, समय भी बचताइसके लिए उन्होंने ग्राम प्रधान से निवेदन किया है। यदि संस्था से आर्थिक सहयोग मिल जाता तो वे अपनी जरूरत के अनुसार अच्छा काम करतीं और पेयजल की समस्या दूर हो जाती।