नर्मदा के पानी पर 'डाका'

||नर्मदा के पानी पर 'डाका'||


TI ध्यप्रदेश के लिए नर्मदा नदी के पानी के महत्व को सभी जानते-पहचानते हैं, लेकिन बीते कुछ महीनों से नर्मदा के बेशकीमती पानी पर डाका डाला जा रहा है। साल दर साल सूखे का सामना करने वाले इस प्रदेश में पानी की बर्बादी का आलम बहुत दुखद है। यह ठीक उसी तरह है, जैसे कोई अपने पूर्वजों की विरासत रखेहुए हो और किसी रात कोई आकर उससे सब कुछ छीन ले जाए।


लोचने छीन ले जाए। यहाँ बात नर्मदा पर बनाए बाँध, प्रदूषण या शहरों को पानी दिए जाने के नाम पर नदी को उलीचने भर की नहीं है। इससे एक कदम आगे बढ़कर नर्मदा-क्षिप्रा लिंक से जो पानी नर्मदा से दूर इंदौर तक पाइपलाइन में लाकर क्षिप्रा नदी में प्रवाहित किया जा रहा है, उसकी चोरी की बात है। आज भी इसका हजारों गैलन पानी हर दिन सैकड़ों मोटर रटिन मैकटों मोटा पंप लगाकर चोरी हो रहा है। अब तक इस पर C खासी धनराशि भी खर्च हो चकी है लेकिन नर्मदा का पानी क्षिप्रा में छोड़े जाने के बाद करीब-करीब हर बार गंतव्य तक पहुँचने से पहले ही इस पानी का एक बड़ा हिस्सा क्षिप्रा नदी के आसपास के खेत मालिकों द्वारा पंप से खींच लिया जाता है।


से खींच लिया जाता है। गौरतलब है कि आज स पाच साल पहल 16 फरवरी 2014 को मध्यप्रदेश सरकार ने उज्जैन में आयाजित हाने वाले सिंहस्थ की आवश्यकताओं का ध्यान में रखकर 432 करोड़ की लागत से एक महती परियोजना क्रियान्वित की थी। इसमें करीब सौ किमी दूर नर्मदा नदी का पानी पाइपलाइन से होते हए क्षिप्रा के उद्गम स्थल उज्जैनी तक लाया गया और यहाँ से नदी में छोड़ते हुए इसे उज्जैन पहुंचाया गया। क्षिप्रा नदी सूख जाने से तीन साल पहले सिंहस्थ का स्नान इसी पानी से कराया गया थाइसके पानी का इस्तेमाल बाकी दिनों में पेयजल, उद्योगों तथा किसानों को देने की बात कही गई थी लेकिन इसका अब तक ज्यादातर उपयोग उज्जैन में पर्व स्नान पर आयोजित भीड़ के स्नान तक ही रहा है। हालाँकि इससे देवास शहर को पीने का पानी तथा यहाँ स्थापित उद्योगों को पानी देने का निर्णय भी हो चुका है। .


उपलब्ध आँकड़ों के मुताबिक अब तक बीते पाँच __ सालों में नर्मदा के बहाव क्षेत्र से 90 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी उलीच कर क्षिप्रा नदी में प्रवाहित किया गया है। इस पर 200 करोड़ रुपये चुकी है। इस महत्वाकांक्षी योजना के पीछे उद्देश्य यह था कि नर्मदा के पानी से क्षिप्रा को सदानीरा रूप दिया जा सकेगा, लेकिन यह उद्देश्य अपने प्रारंभिक चरण से लेकर आज तक कभी मूर्त रूप नहीं ले सका। हमेशा ही पर्व स्नान या मेले के मौके पर पानी छोड़ा गया और हर बार गैरकानूनी तरीके से इसका पानी चोरी होता रहा। इंदौर, देवास और उज्जैन जिले के क्षेत्र में आने वाले नदी किनारे के सैकड़ों किसान अपने खेतों में सिंचाई तथा अन्य कार्यों के लिए सीधे मोटर पंप के जरिए नदी से पानी खींच लेते हैं। इस बात की जानकारी होने के बाद भी आज तक स्थानीय प्रशासन ने कभी इस पर कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की।


हर पर्व स्नान के बाद पानी चोरी हो जाता है और अगले आयोजन के लिए फिर नर्मदा का पानी बुलवाना पड़ता है। साल में करीब पंदन ऐसे स्नान के अवसर आते हैं जब धार्मिक महत्व होने कक के कारण आसपास के अंचल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ जुटते हैं और क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाने के बाद मन्दिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। पूरे वर्षभर शनिश्चरी या सोमवती अमावस्या, संक्रांति, पूर्णिमा आदि ऐसे कई प्रसंग आते रहते हैं। शास्त्रों तथा स्थानीय लोक मान्यताओं में सदानीरा रहने वाली क्षिप्रा नदी का बड़ा महत्व है। इसमें पर्व प्रसंग पर स्नान करने की परंपरा रही है। लेकिन बीते कुछ सालों से नदी तंत्र के कमजोर हो जाने तथा अन्य पर्यावरणीय बदलावों के चलते सदियों से सदानीरा रहने वाली वाली क्षिप्रा भी अब ठंड का मौसम खत्म होने से पहले ही सूखने लगती है।


अना करीब 22 रुपये 60 खत्म होने से पहले ही सूखने लगती है। पानी को नर्मदा से क्षिप्रा तक पहुँचाने की कवायद बहुत लंबी और श्रमसाध्य होने के साथ खर्चीली भी है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अनुसार यह पानी करीब 22 रुपये 60 पैसे प्रति हज़ार लीटर के मान से खर्च होता है, जो सामान्य से बहुत ज्यादा खर्च है। नर्मदा नदी का अब तक क्षिप्रा में छोड़ा गया छह एमसीएफटी पानी हर दिन की खपत वाले किसी शहर के लिए इससे 532 दिनों तक पेयजल की आपूर्ति की जा सकती थी।


की जा सकती थी। गौरतलब यह भी है कि प्रदेश के एक बड़े हिस्से से गुजरने वाली नर्मदा नदी पर सरकार ने बीते सालों में कई बड़े-छोटे बाँध बना दिए हैं। इससे नदी का प्रवाह प्रभावित हुआ है। दूसरी तरफ नर्मदा के पानी का बड़ा हिस्सा विभिन्न शहरों और कस्बों-गाँवों की प्यास बुझाने के नाम पर, तो कहीं उद्योग बचाने के नाम पर करोड़ों की लागत से पहुँचाया जा रहा है। नदी के पानी की अंधाधुंध खपत. प्रदषण की मार और इन बाँधों से बाधित होने के बाद भी नमदा आज भी सदानीरा बनी हई है। हालाँकि अब वह पहले की तरह वेगवती और प्रचर जल राशि वाला नहीं रह गई है।


गर्मियों में कई जगह नदी का कुछ हिस्सा सूख जाने की ख़बरें भी मिलने लगी हैं, लेकिन इन सबके बावजूद सरकारों ने अभी तक इसके पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल पर गंभीरता नहीं दिखाई है। इसके विपरीत मध्यप्रदेश में कहीं भी जल संकट की स्थिति से निपटने के लिए नर्मदा को ही एकमेव विकल्प मान लिया गया है। परंपरागत तरीकों तथा पीढ़ियों से साथ दे रहे जल स्त्रोतों को उपेक्षित कर नर्मदा का पानी खैरात की तरह दूर-दूर बाँटा जा रहा हैऐसे में बार-बार हर पर्व स्नान से पहले नर्मदा का कीमती पानी क्षिप्रा नदी में प्रवाहित करना और इसकी भी चोरी होना पानी के प्रति हमारे समाज । जार और प्रशासन की घोर लापरवाही साबित करता है। हम बीते 25 सालों के जल संकट से भी कोई सबक नहीं ले पा रहे हैं।


उज्जैन में क्षिप्रा नदी नादया स पाना चारा पर प्रशासनिक कायवाही कि बात करें तो बीते साल अक्टूबर में ही उज्जैन टूबर म हो उज्जन जिला कलेक्टर मनीष सिंह ने क्षिप्रा और गंभीर नदियों के पानी को सिंचाई तथा औद्योगिक प्रयोजन के लिए प्रतिबंधित कर पेयजल परिरक्षण प्रयोजन के लिए प्रतिबंधित कर पेयजल परिरक्षण अधिनियम के तहत इसे सिर्फ घरेल प्रयोजन या पेयजल के लिए उपयोग किए जाने के आदेश जारी कर दिए थे। इसका उल्लंघन करने पर दो साल का कारावास या दो हजार रुपये का जर्माना या दोनों सजाआं से दंडित किए जाने का प्रावधान है। इसमें उल्लेख है कि नदियों में पानी रहने से आसपास के कई कुंए, बावड़ियाँ तथा नलकप आदि रिचार्ज हाते हैं। अगर नदियों में पानी कम हआ तो ये भी सुख जाएँग। लेकिन ये आदेश महज कागजों मेंदी दब कर रह गए। जबकि पानी चोरी रोकने पर ही पीएचई हर साल करीब 20 लाख रुपये खर्च करता है। बताया जाता है कि इस बार यह खर्च और अधिक बढन की संभावना है। इससे वाहन के जरिए नदी के तटों की लगातार पेटोलिंग की जाती है। 18 कर्मचारियों के दो दल बनाए गए हैं।


आश्चर्य की बात यह है कि इसी आदेश पर गंभीर नदी के किनारों से उज्जैन नगर निगम के हस्तक्षेप से पीएचई (लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी) के दल ने नवंबर महीने में ही महज 20 दिनों के निरीक्षण में नदी से अवैध रूप से पानी खींचते 17 मोटर पंपों का जब्त कर लिया, लेकिन क्षिप्रा नदी में ऐसी कोई कार्यवाही नहीं हुई। इससे क्षिप्रा में पानी लगभग खत्म हो गया। जनवरी में जब शनिश्चरी अमावस्या के पर्व स्नान के लिए भी पानी की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी और दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं को - कीचड़ वाले पानी के छींटे मारकर नहाना पड़ा और मीडिया में मामला उछला तो नई नवेली कांग्रेस सरकार ने लापरवाही के आरोप में कलेक्टर और - 5 कमिश्नर को हटा दिया। अब अधिकारी हर पर्व स्रान से पहले नर्मदा का पानी क्षिप्रा में छोड़े जाने - का पूरा ध्यान रखते हैं.


मजे की बात तो यह भी है कि प्रशासन इन मोटर पंपों की जब्ती तो कर लेता है लेकिन किसी के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जाती। बीते दस सालों में पीएचई ने 425 मोटर पंप जब्त किए लेकिन दंड कार्यवाही के डर से एक भी किसान इन्हें लेने नहीं आया। कमोबेश यही स्थिति देवास और इंदौर जिले में भी है।


कड़ी कार्यवाही नहीं होने से अपनी फसल को नदी में बोले गए नर्मदा के पानी को मोटर पंप 1 लगाकर उलीचते रहते हैं। क्षिप्रा नदी के किनारे बसे गाँवों के कुछ किसानों से हमने इस पर बात की तो उन्होंने बताया कि उनके सामने नदी से पानी लेना मजबूरी है। वे अपनी आँखों के सामने अपनी फसल को मखत द्वारा नहीं देख पाते और नहीं चाहते हुए भी दंड के भय के बाद भी मोटर पंप लगाकर खेतों को पानी देते हैं।


वे बताते हैं कि कुछ सालों पहले तक नटी परे साल करती थी और उसके किनारे हमारे खेत होने बहती रहती थी और उसके किनारे हमारे खेत होने से हमें कभी पानी की चिंता नहीं रही. लेकिन इधर के कुछ सालों में जब से ठंड के बाद क्षिपा नटी सूखने लगी और देवास में इसका पानी रोकने के लिए बाँध बना दिया, लगभग तभी से हमारे जल स्त्रोत भी बैठने लगे हैं। ज़मीनी जल स्तर भी यहाँ लगातार नीचे खिसकता जा रहा है। नदी हमारे गाँव से होकर सदियों से बहती रही है और इसके पानी पर हमारा भी अधिकार है। हम कोई अपराध नहीं कर रहे। हमें भी इससे पानी मिलना चाहिए।


कांग्रेस ने दिसंबर में विधानसभा चनाव से पहले क्षिप्रा नदी और उसके पानी को चुनावी मुद्दा बनाया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहल गांधी ने चनावी सभा में स्थितम नर्मदा-क्षिप्रा लिंक योजना पर तंज कसते हए क्षिप्रा का मटमैला गंदा पानी एक बोतल में भरकर मंच से दिखाया था कि यह है जनता की गाढी कमाई के साढ़े चार सौ करोड़ का पानी। कांग्रेस के वचन- पत्र म भी क्षिप्रा न्यास बनाने का वादा किया गया है. लेकिन सरकार बनने के तीन महीने बीतने के बाद अब तक इस मामले में कोई ठोस रोडमेप नज़र नहीं जाता।


क्षिप्रा नदी, देवास पानी पर पड़ रहे इस 'डाके' को रोकने के लिए अब . सरकार कवायद में जुटी है। क्षिप्रा के उद्गम स्थल इंदौर जिले के उज्जैनी से देवास होते हुए उज्जैन तक नर्मदा का पानी अब पाइपलाइन से भेजे जाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए 139 करोड़ की लागत से 66.17 किमी लंबी 1325 मिमी व्यास की पाइपलाइन बिछाई जा रही है। इसी तरह गंभीर नदी के रास्ते भी उज्जैन तक नर्मदा का पानी लाने के प्रयास तेज हो गए हैं। इंदौर, उज्जैन और खरगोन जिले के करीब डेढ़ सौ गाँवों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए 2015 में नर्मदामालवा-गंभीर लिंक परियोजना का 1842 करोड़ की लागत से काम शुरू किया गया था। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण एनवीडीए ने हैदराबाद की एक कंपनी 'नवयुग' को यह काम सौंपा है और इसे इस साल के अंत तक पूरा कर लेने की संभावना है। काम में रेलवे से अनुमति नहीं मिलने और कुछ किसानों की निजी जमीन का पर्याप्त मुआवजा नहीं दिए जाने से काम फिलहाल अटका पड़ा है।


पाँच साल पहले दो नदियों के पानी का सरकार ने संगम करवाया था, तब पर्यावरण तथा पानी के मुद्दे पर एक बड़ी बहस भी देशभर में शुरू हुई थी कि क्या इस तरह एक नदी का पानी दूसरी नदी में डालकर हम उन्हें सदानारा बना सकत हा तब इसके पक्ष में बड़े-बड़े दावे किए गए थे और इसके फायदे गिनाकर तेज़ी से रेगिस्तान में तब्दील होते जा रहे मालवा इलाके को हरियाली और खशहाली का सपना दिखाया गया था। इसमें यह सोच शामिल लगों से अपनी प्राकतिक संपदा ही नहीं थी कि सदियों से अपनी प्राकृतिक संपदा के लिए पहचाने जाने वाले मालवा इलाके को आखिर बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज क्यों हो जाना पड़ा और इसके पीछे क्या कारण रहे? उनका प्रायश्चित करने, स्थाई विकल्प ढूँढने और समाज का को पानी बचाने के गुर सिखाने की जगह एक भरीपूरी नदी का पानी सूखी नदी में डालने का फैसला लिया गया जो बमुश्किल पाँच साल में ही अव्यावहारिक लगने लगा है।


तकनीकी तौर पर ही नहीं, भावनात्मक तौर पर भी नाद नदियाँ अपने अंचल से गहरे तक जुड़ी हैं। ऐसी स्थितम दूसरा नदा का पानालानक बजाए प्रयास यहा हाना चाहिए कि हम सूखता हुइ नदिया के नदा तन्त्र का मज़बूत बनाए, उन्हें प्रदूषित न होने दें, उनकी सहायक नदियों, नालों और पानी के प्राकृतिक प्रवाह क्षेत्र का पूरा सम्मान करें तो वही नदी अगले कुछ सालों में फिर से सदानीरा रूप ले सकती है। हालांकि यह काम अकेले सरकार के दम पर कभी पूरा नहीं हो सकता, इसमें अंचल के जिंदा समाज की भूमिका सबसे बड़ी है। जब तक समाज खुद नहीं उठ खड़ा होगा तब तक नदियों को सूखने से कोई नहीं बचा सकता.


आभारः इंडिया वाटर पोर्टल डॉट कॉम