पहाड़ में जलाए उम्मीदों के चिराग

पहाड़ में जलाए उम्मीदों के चिराग



धाद, फीलगुड, जनधिकार मंच, काइट्स, दगड्या, समृण जैसी संस्थाओं के प्रयास


सराहनीय रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में कर रहे अभिनव प्रयास


घनघोर अंधेरे में जब हाथ को हाथ नहीं समा रहा हो, तब रोशनी की एक किरण भी राह दिखाती है। रोजगार, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य और उत्पादकता जैसे सवालों से जूझ रहे प्रदेश के 25 लाख युवाओं के लिए कुछ लोग प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। वह अपने छोटे-छोटे प्रयासों से सरकार को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं।



उतराखंड राज्य की अवधारणा में सुदूर गांव के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचाना था। विगत 19 वर्ष से यह व्यक्ति टकटकी लगाए देहरादून और दिल्ली देख रहा है लेकिन विकास उससे अब भी कोसों दूर है। सरकार और सत्ता दोनों की निगाह मैदानों पर है, पहाड़ों के लिए कागजी योजनाएं आज भी एसी कमरों में बैठकर तैयार की जाती हैं और जो कभी धरातल पर उतरती ही नहीं हैं या उतरने लायक ही नहीं होती। यह विडम्बना है कि इतने बड़े उत्तराखंड राज्य आंदोलन ने हमें एक नेता नहीं दिया जो इस पर्वतीय राज्य को विकास के पथ पर आगे ले जा सकता। ऐसा नहीं है कि विकास नहीं हुआ, लेकिन जो विकास होना चाहिए था उसकी रफ्तार इतनी कम है कि वो नजर ही नहीं आता।


जब हम राज्य स्थापनाकी 19वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो ऐसे में हम इन संस्थाओं द्वारा रोशन किये गये चिरागों के बारे में बता रहे हैं। 


ग्रामीण बच्चों का भविष्य संवार रही धाद


धाद संस्था बच्चों की पढ़ाई के लिए आगे आई और उसने रुद्रप्रयाग के आपदा प्रभावित 175 बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा लिया। इसके तहत हर बच्चे को हर माह 800 रुपये दिये जाते हैं। यह रकम उनके बैंक में जाती है और इसे बच्चे के अभिभावक निकाल सकते हैं धाद की यह अनूठी और अनुकरणीय परम्परा अबतक जारी है। धाद ने कई महिलाओं को गाय भी दी थी। धाद की यह पहल आज भी जारी है और उनके इस प्रयास को सराहना भी मिली है। इसके साथ ही धाद एक कोना कक्षा भी ग्रामीण स्तर पर चल रहा है।


इस कार्य को अंजाम देने में धाद के तत्कालीन अध्यक्ष हर्षमणि व्यास, लोकेश नवानी, डा. जयंत नवानी, विजय जुयाल, तोताराम लौडियाल, डीसी नौटियाल, तन्मय ममगाई, जैक्सवीन स्कूल के चेयरमैन लखपत राणा, भारत नौटियाल आदि सामाजिक कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका रही। धाद संस्था के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता विजय जुयाल ने रुद्रप्रयाग जिले में गरीब कन्याओं की शादी का अभियान चलाया है। वे पिछले तीन साल में आठ कन्याओं की शादी में सहयोग किया है।


जनता के हितों की लड़ाई लड़ रहा जनाधिकार मंच


रुद्रप्रयाग का जनाधिकार मंच पूरे प्रदेश में छोटी सी अवधि में अपनी एक पहचान बना चुका है। जनाधिकार मंच के अध्यक्षा युवा समाजसेवी मोहित डिगरी हैगोहित डिमरी ने इस मंच के माध्यम से कई असहाय और गरीब लोगों को आर्थिक मदद दिलाने से लेकर उनके घर का निर्माण कराने में अहम भूमिका अदा की है। इस मंच के माध्यम से चारधाम यात्रा मार्ग प्रभावितों के हितों की लड़ाई लड़ी जा रही है। इसके अलावा मंच स्कूलों और अन्य सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर सरकारी योजनाओं के प्रति लोगों में जागरूकता लाने का काम कर रहा है। कई ऐसे बच्चे और लोग हैं जिनकोसही इलाज नहीं मिलता तो मंच ऐसे लोगों को अच्छे अस्पताल में इलाज कराने की कवायद भी करता है। हाल में मंच ने रौठियां- जवाड़ी में भरदार पेयजल योजना के लिए भी जिलाधिकारी मंगेश बिल्डियाला घिल्डियाल को पुआयना करवाया ताकि यह कार्य सुचार, रूप से चले। मंच गांवों की समस्याओं के निराकरण के लिए भी जुटा हुआ है।


सदर गांवों में उत्पादकता का संदेश देता फीलगुड


फीलगुड यानी भलु लगद पौड़ी गढ़वाल के पोखडाब्लाक में कार्यरत है। इस संस्था के संस्थापक सुधीर संदरियाल ने रिवर्स माग्रेशन की मिसाल पेश की है। दिल्ली में बेहतरीन जॉब को छोड़कर सुंदरियाल दंपति ने गांव में उत्पादकता की अलख जगाई और आसपास के गांवों के गुवाओं और महिलाओं को खेती, बागवानी और जल संचय की योजनाओं के बारे में जागरूक किया। फीलगुड का प्रयास है कि इस ग्रप ने विभिन्न संस्थाओं और ग्रामीणों के सहयोग सेखाल और चाल तैयार की हैं, जिसमें बरसाती पानी जमा होसके। सधीर संदरियाल के प्रताबिक 40 नाली में खेती कर रहे हैं और इसके अपेक्षित परिणाम आए हैं। हालांकि यह काम काफी दुश्कर था लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि वह कुछ कर दिखाएंगे। आज सुधीर संदरियाल प्रदेश में रिवर्स माग्रेडशन की एक मिसाल बन चके हैंउन्होंने आसपास के गांवों के बच्चों को पढ़ाने और उन्हें उत्पादक बनाने की दिशा में भी काम किया है। इसके अलावा उन्होंने पहाड़ की संस्कृति को बचाने की दिशा में काम किया हैलड़कियों का सरैया बैंड उनकी सोच का नतीजा है। इस बैंड को पहाड़ में काफी सराहा जा रहा है।


समूण : यानी स्वाद पहाड़ का


देहरादून के मोथरावाला की सुमन और अजय भट्ट दंपति की मेहनत ने पहाड़ की बड़ियों को एक नया आयाम देने का काम किया है। मां दुर्गा लघु उद्योग के नाम से सुमन भट्ट घर की छत पर अनेक किस्मों की दाल की बड़ियां बनाती हैं। उनके साथ लगभग एक दर्जन महिलाएं भी इस काम में जुड़ी हई हैं। समूण नाम से बनी वड़ियों की बाजार में बहुत मांग है। सुमन भट्ट बताती है कि वह गामीण परिवेश से आई और यहां शहर में कुछ  करना चाहती थी। उन्हें कोई अन्य जान नहीं था लेकिन बड़िया बना लेती थीवर्ष 2015 में उन्होंने बड़िया बनाने का काम शुरू किया। 


आसपास के लोगों को उनकी बडियां लुभाती गई और डिमांड बढ़ती गई। अपनी उपलब्धियों पर खुश सुमन भट्ट बताती है कि उन्होंने इस व्यवसाय की शुरूआत पानपैकेट बड़ी से की थी। समूण यानी निशानी के तौर पर बनी बड़ियों को आज बाजार में भारी मांग है। वह बताती है कि उनकी बडियो की देहरादून के अलावा कोटद्वार, दिल्ली और ऋषिकेश में भी मांग है। वह कहती है कि उनके पति अजय भट्ट ने उनकी यथासंभव मदद की है। उद्योग निदेशालय ने भी उनके प्रोजेक्ट को प्रोत्साहित किया है।


दो सरकारी स्कूलों को भी देते हैं पोषण में मदद


कनिका विजान के अनुसार उनका संस्थान माजरा के दो सरकारी स्कूलों में भी गोषण संबंधी मदद प्रदान करते हैं। पिछले चार साल के दौरान यहां से पढ़े कई बन्ने अनेक प्रतिस्पधाओगे अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। कनिका का साथ दे रहे अजय सिंह ने टीआईटी से बीटेक किया और अब वह बच्चों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर रहे हैंउनके अनुसार कनिकाका यह प्रयास उन्हें भाया था। कनिका कि आसकी स्टूडेंट थी और वह साईसके तो गणित और साईसके स्टूडेंट को पढ़ाने कीजिम्मेदारी उन्होंगेलेली।


इन दो युवाओं के इस प्रयास की जितनी भी तारीफ की जाए तो कम है। काइट्स में बच्चों को वोकेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है और उनको प्रतिस्पर्धाक लिए भी तैयार किया जाता है। प्रति माह की फीस कनिका और अजय उठाते हैं। उनका कहना है कि सामाजिक न्याय के लिए जरूरी है कि सभी वर्गों को समान अवसर मिलें।।