पंचायतों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
हेमा नेगी
मेरे गाँव का नाम पुडियाणी है। यह गाँव उत्तराखण्ड में जिला चमोली के विकास खण्ड कर्णप्रयाग में स्थित है। ग्राम पुडियाणी में लगभग एक सौ पच्चीस परिवार रहते हैं। लगभग पाँच सौ इक्कीस ग्रामवासी अठारह वर्ष से ऊपर तथा दो सौ पचास छोटे बच्चे एवं किशोर-किशोरियाँ हैं। पुडियाणी गाँव के महिला संगठन में एक सौ बीस महिलायें पंजीकृत हैं।
महिला संगठन की पूर्व अध्यक्षा श्रीमती हेमा देवी 2014 में पंचायती चुनाव जीतकर ग्राम प्रधान बनी हैं। उनके स्थान पर श्रीमती ममता देवी को महिला संगठन की अध्यक्षा बनाया गया है। साथ में श्रीमती उर्मिला देवी उपाध्यक्षा, श्रीमती पूजा देवी सचिव, श्रीमती बुधाड़ी देवी कोषाध्यक्षा, श्रीमती कमला देवी महामंत्री हैं। श्रीमती मुन्नी देवी, श्रीमती बरती देवी को वार्ड संख्या सात से जागरूक महिला, वार्ड छ: से श्रीमती लीला देवी, श्रीमती सोवनी देवी को पंचायती कार्यों में देख रेख समिति की सदस्या, वार्ड पाँच से श्रीमती अनीता देवी को सार्वजनिक कार्यों में खान-पान संबंधी मामलों की समिति की सदस्या, वार्ड चार से श्रीमती भामा देवी, श्रीमती दीपा देवी को गाँव में शोर-शराबा, शान्ति भंग करने संबंधी जानकारी रखने तथा इसी प्रकार से अन्य महिलाओं को भिन्न-भिन्न जिम्मेदारियाँ दी गयी हैं। वर्तमान में ग्राम सभा पुडियाणी में वार्डों की संख्या सात है।
यह बड़े हर्ष का विषय है कि पुडियाणी में ग्राम प्रधान महिला है। उपप्रधान भी महिला है और चार वार्ड सदस्याएं भी महिलायें हैं ग्राम सभा की बैठकों में भी महिलाओं की संख्या अधिक रहती हैसामाजिक हो या व्यक्तिगत कार्य, महिलायें बढ़चढ़ कर हर गतिविधि में भाग लेती हैं। हमारे गाँव की पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्या श्रीमती गायत्री देवी इस बार जिला पंचायत सदस्या बनी हैं।
लगभग बीस वर्ष पहले बना यह संगठन गाँव की एक मजबूत इकाई बन गया है। पहले महिलाओं को चारा-पत्ती, घास-लकड़ी के लिये आस-पास के जंगलों पर निर्भर रहना पड़ता था। पुडियाणी गाँव के संगठन में कुछ ऐसी महिलायें और सहयोगी पुरूष थे जिनकी स्पष्ट सोच से ग्रामवासियों ने अपना जंगल बनाने का साहस जुटाया। गाँव में योजना बनी, बैठक बुलाई गयीलगभग तीन हेक्टेयर भूमि पर उगे बाँज के वृक्षों की छंटाई की गयीकाँटे-झाड़ियाँ तथा अन्य जंगली वनस्पतियों को काटकर जंगल में छोटे-छोटे और मुरझाये हुए पौधों को नया रूप दिया गया। यह महिला संगठन की प्रथम पहल थी। पौधों की सुरक्षा के लिये एक चौकीदार की व्यवस्था की गयी। प्रत्येक परिवार से चन्दा इकट्ठा करके चौकीदार को दिया गया। समय-समय पर पौधों की देखभाल की गयी। इसमें से कुछ वृद्ध महिलायें आज भी हमारे बीच में हैं। वे अब जंगल नहीं जा सकती पर अपने जीवन काल में उन्होंने भावी पीढ़ी की सुविधा के लिये महत्वपूर्ण काम कर दिखाया है।
आज इस जंगल में हजारों बाँज, काफल, बुराँश और अयाँर के वृक्ष हैं। जंगल से पत्तियाँ,सूखी लकड़ी, बिछावन के लिए सूतर, पशुओं के लिए चारा तथा बुराँश काफल जैसे कई किस्म के फल एवं फूल स्वतः ही प्राप्त होते हैं। पहले जिस घास, चारे को इकट्ठा करने के लिये बहनें पूरा दिन जंगल में बिताती थीं, आज उन्हें कोई समय ही नहीं लगता संगठन से चुनी हुई कुछ महिलायें पेड़ छाँटने में मदद करती हैं। इससे पौधों को नुकसान नहीं होता तथा भविष्य के लिए कार्य योजना भी अच्छी बनती है।
जंगल पालने से सबसे ज्यादा फायदा पुडियाणी गाँव के निवासियों को हुआ। साथ में,बाँज के वृक्षों की अधिकता के कारण गैरोली, तल्ली गैरोली, सेन, कोली भटोली, सुन्दर गाँव, कुकड़ई, दियारकोट आदि गाँवों को भी इन पेड़ो से फायदा मिला। अब इन गाँवों में भरपूर पानी उपलब्ध रहता है।
महिला संगठन की बैठक प्रत्येक माह की एक तारीख या प्रथम रविवार को होती हैबैठक में अलग-अलग कार्यभार संभाले हुए सभी महिलायें अपनी-अपनी बातें कहती हैं। व्यक्तिगत और सामाजिक कार्यों में अपनी-अपनी भूमिका निभाती हैंरास्तों की सफाई, बन्दरों से खेतों की रक्षा, गायों द्वारा नुकसान बंद करना, जंगल में बाहरी गाँवों द्वारा नुकसान पहुंचाने का विरोध, गाँव में शोर-शराबा, शराब पीकर या किसी का कोई भी नुकसान ना हो, ये सभी जिम्मेदारियाँ महिला संगठन ने ली हैं। ब्लॉक और क्षेत्र स्तर के मेलों या शादी-विवाह, मुण्डन आदि समारोहों में संगठन पूरी भागीदारी निभाता है। पुरस्कार की राशि महिला संगठन के खाते में जमा की जाती है। इससे कई बार सामुहिक उपयोग के लिये बर्तन, दरी एवं अन्य सामान खरीदा गया है। साथ ही, क्षेत्र में स्थानीय देवी-देवताओं की डोली का भ्रमण होने पर भी महिला संगठन मदद करता है।
महिला संगठन से जुड़े हुये राजेन्द्र सिंह भाई एवं गाँव के अन्य सभी पुरूष और युवा भी पूरा सहयोग करते हैं। वे चाहते हैं कि महिलायें आगे बढ़ें और हमारे गाँव का नाम रोशन होजंगल की देख-भाल में सरपंच श्री मदन सिंह एवं पूर्व चौकीदार श्री पूरन सिंह जी की भी बड़ी भूमिका रही। साथ ही, उक्त क्षेत्र में "शेप' संस्था पिछले दस वर्षों से पर्यावरण संरक्षण, बाल-शिक्षण एवं महिलाओं के साथ निरन्तर बैठकों का आयोजन, महिला सम्मेलन, ग्रामीण स्वच्छता के अर्न्तगत स्वच्छ शौचालयों का निर्माण, मनरेगा पर समझ, सूचना का अधिकार आदि मुद्दों पर जनजागरण के लिये निरंतर प्रयासरत रही है।
मैं स्वयं 2014 में सम्पन्न हुए पंचायती चुनावों के बाद ग्राम-प्रधान के पद पर कार्यरत हूँमेरी शादी लगभग सत्रह वर्ष पहले हुई। तब से ग्राम पुडियाणी में बहुत परिवर्तन आया हैलगभग सात वर्षों तक मैं राजकीय जुनियर हाईस्कूल में एक पैराटीचर के रूप में कार्यरत रही। साथ ही, महिला संगठन पुडियाणी की अध्यक्षा भी रही। महिला संगठन में काम करते हुए मुझे इच्छा हुई कि गाँव के लिये कुछ कार्य करूँ। कई बार संगठन की टीम ने विकासखण्ड स्तरीय कार्यक्रमों में भाग लिया पुरस्कार भी प्राप्त किया। कई मेलों में महिलाओं ने सामाजिक बुराइयों पर नाटक, संस्कृति से संबंधित झुमेले, चौफले और मांगल्य गीतों में प्रतिभाग किया तथा सम्मान प्राप्त कियाआज विकासखण्ड हो या कोई भी अन्य आस-पास का क्षेत्रीय मेला, पुडियाणी महिला संगठन का बहुत सम्मान होता है। वह इसलिए कि गाँव की सभी महिलायें जागरूक हैं, अच्छी कलाकार हैं। शुरूआत में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने की एक मुख्य वजह यह थी कि महिलाओं की झिझक दूर हो। धीरे-धीरे महिलायें इस कार्य में निपुण हो गयीं हैं।
अपने गाँव के लिये मेरे कुछ सपने हैं। मैं चाहती हूँ कि विकास कार्यों के निर्णय स्वयं महिलायें ले सकें। वे किसी भी कार्य को करने जायेंगी तो गाँव का सामुहिक हित होगा। इस समय हमें विकास की पूरी उम्मीद है क्योंकि हमारे गाँव से अनेक महिला प्रत्याशी विजयी हुई हैं। जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य तथा ग्राम प्रधान महिलायें ही बनी हैं। पंच भी महिलायें हैं।
मैं सभी ग्राम प्रधानों, क्षेत्र पंचायत सदस्यों व अन्य लोगों से निवेदन करती हूँ कि वे गाँव के विकास के लिये ऐसा कार्य करें जो हमेशा ग्रामवासियों के काम आये। सरकारें योजनायें बनाती हैं, प्रशिक्षण देती हैं फिर भी कार्य अपने हिसाब से करवाती हैं। हर वर्ष गाँवों में रास्ते बनाये जाते हैं। जंगलों में पानी-मिट्टी रोकने के लिए कच्चे गढ्ढे खोदे जाते हैं, दीवारें बनायी जाती हैं लेकिन गाँव का विकास रुका रहता है। प्रत्येक वर्ष यदि रास्ता ना बने, दीवार ना बने, चाल-खाव ना बने तो उम्मीद करती हूँ कि किसी गरीब को आवास मिलेगा, वह जिन्दगी भर खुश रहेगा। रास्ते का पत्थर एक साल, एक योजना पर तो दूसरे वर्ष दूसरी योजना में लग जाता है पर गरीब के घर में लगा हुआ पत्थर वहीं पर रहेगा।
लगभग आठ-दस सालों से सुअरों और बन्दरों द्वारा पहाड़ों में खेती को अत्यंत नुकसान पहुँच रहा है। फिर भी, इसके लिये कोई योजना नहीं बन रही है, यह दुःख उत्तराखण्ड की सभी ग्रामीण महिलाओं को हैमैं चाहती हूँ कि रोजगार गारंटी के कार्यों या अन्य निधियों से जो भी विकास के कार्य हों, उनमें सुअरों से सुरक्षा के लिए दो मीटर की दीवार या काँटेदार तार प्रत्येक ग्राम सभा में दिये जायें। तभी खेतों में की गई मेहनत का फल मिल सकेगा। साथ ही, गाँवों के लिये भी कुछ महीनों का खाद्यान्न मिलना जरूरी है। इसके अलावा बन्दरों के लिये बाड़े खोले जायें । सुअरों तथा बन्दरों से रक्षा के लिये किसानों को हल्दी, अदरक जैसी फसलों का बीज वितरित किया जाए तो नुकसान नहीं होगा और आमदनी भी बढ़ेगी। ऐसी ही योजनाओं से गाँव का विकास सम्भव है। इसी से गरीबी दूर हो सकती है, अन्यथा महिलाओं द्वारा खेतों में की जाने वाली मेहनत का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल रहा।