पौधे रिश्तों के


पौधे रिश्तों के
अनचाहे ही पनप जाते हैं,
कुछ पौधे रिश्तों के।
 जिन्हें बोया नहीं जाता,
फिर भी फैलाते हैं अपनी शाखाएं,
हो प्रसन्नचित्त, धरा के आँचल में।
कुछ पौधे रिश्तों के।
खिलखिलाते, मुस्कुराते,
हरियाली बिखेरते।
नहीं जानते कि, फेंक दिए जाएंगे,
 उखाड़कर एक दिन।
कुछ पौधे रिश्तों के।
क्योंकि नहीं है उनका अस्तित्व कोई,
 बस इतनी ही पहचान है।
 कि वे उग आये हैं, धरा के प्रेमवश, 
ऐसे ही, बिना किसी महत्व के।
कुछ पौधे रिश्तों के।


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