पुष्पावती नदी

||पुष्पावती नदी||


स्कन्दपुराण के 'केदारखण्ड में नन्दनकानन नाम से जिस प्रसिद्ध फूलों की घाटी का वर्णन आया है, उसी घाटी में पुष्पावती नदी प्रवाहित होती हैफूलों की घाटी को अलका, गन्धमादन, पुष्परसा, देवदार एवं बैकुंठ आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है।


महाभारत के एक रोचक प्रसंग के अनुसार-पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान अलकनन्दा क्षेत्र में आये थे। पाण्डुकेश्वर के समीप गोविन्दघाट में अलकनन्दा एवं लक्ष्मणगंगा (हेमगंगा) के संगम पर एक बार द्रोपदी जब स्नान कर रही थी, तब अचानक उसे एक सुन्दर पुष्प दिखाई दिया। वह उस पुष्प से इतनी प्रभावित हुई कि उसने भीम से ऐसे ही पुष्पों को लाने की इच्छा प्रकट की। भीम पुष्पावती नदी की धारा के विपरीत किनारे-किनारे विचरण करते हुए फूलों के सुन्दर प्रदेश में पहुंच गये। यहां वे अपनी सुध-बुध खो बैठे और जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने पाया कि वे बन्दी बना लिये गये हैं। तत्पश्चात् उनका परिचय गंधर्वराज चित्ररथ से हुआ। राजा ने उन्हें अनेक प्रकार के फूलों से सुसज्जित दुर्लभ पुष्पगुच्छ भेंट किये।


पुष्पावती नदी के निर्मल जलप्रवाह ने ही विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी के फूलों को पोषित किया है। फूलों की घाटी का शीर्ष भाग हिमनदों के सौन्दर्य से अटा पड़ा है। इसी शृंखला के टिपरा बाँक से पुष्पावती नदी का उद्गम होता हैघाटी में लगभग 4 किमी० की दूरी तय करने के बाद पुष्पावती नदी घांघरिया में लक्ष्मण गंगा से मिल जाती है।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल निशंक की किताब ''विश्व धरोहर गंगा''