राष्ट्रीय एकता दिवस के नाम पर केवड़िया, गुजरात

|| राष्ट्रीय एकता दिवस के नाम पर केवड़ियागुजरात|| 



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 से केवड़िया में राष्ट्रीय एकता दिवस मना रहे हैं और हमेशा की तरह केवडिया गाँव के आदिवासियों, उनके नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस ने इस साल भी ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से डिटेन और गिरफ़्तार किया। राष्ट्रीय एकता के नाम पर आदिवासियों पर सरकारी दमन जारी है।  मोदी जी के स्वागत में आदिवासीयों की जमीन पर सरकार ने बुलडोजर चलाकर खड़ी फसल को नष्ट कर दी जबकि उन आदिवासियों की जमीन को जबरन अधिग्रहण करने के खिलाफ गुजरात हाइकोर्ट का प्रतिबंध लगा हुआ है।


नर्मदा बचाओ आंदोलन और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समनवय के साथी इसकी कड़ी भर्त्सना करते हैं और माँग करते हैं कि यह तमाशा राष्ट्रहित में बंद किया जाए। सरदार पटेल और एकता दिवस के नाम पर संवैधानिक अधिकारों का हनन हमें मान्य नहीं। 


पर्यटन सरकार के लिए विकास है, लेकिन इसके नाम पर आदिवासियों की भूमि और आजीविका के अधिकार फिर से छीन लिए जा रहे हैं। यह किसी भी संवैधानिक और स्वराज के मूल्यों के बिना हो रहा है। केवडीया और अन्य पांच गावों का सबसे पहले, 1961 में छोटे बांध के नाम पर 80से 200 रूपये एकड़ में उनकी भूमी लेकर, त्याग लिया गया और वह ज़मीन  सरदार सरोवर के लिए 1979 के बाद, काम में लिया गया - मात्र 36000 रु. का पॅकेज देकर ! 2013 में उन्हें जमीन देने का आदेश हुआ लेकिन आज तक उसका पालन नहीं हुआ, न ही 2014 से लागू हुए नये भूअधिग्रहण कानून का अमल हुआ |


आज स्टैचू ऑफ यूनिटी की एक वर्ष की जयंती है। 30 पर्यटन परियोजनाओं की घोषणा है और केवडिया को देश के पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने के लिए ज़ोर शोर से कोशिश चल रही है। एक विशेष दर्जा देने की भी योजना है । पर्यटन और सौंदर्य के नाम पर यहां के सभी मवेशियों को स्टैचू ऑफ यूनिटी के पास साफ सड़कों पर चलने से रोकने के लिए कर्मचारी बांध कर ले गए हैं। अगर कोई उन्हें वापस लेना चाहे तो 300 रुपये जुर्माना। इन सड़कों पर मवेशी और कुत्ते नहीं चल सकते। चराई क्षेत्र अब मॉल और पार्कों से भर गए हैं। सड़कें केवल पर्यटकों और सरकार के लिए हैं जबकि स्थानीय समुदाय विस्थापित होते जा रहे हैं।


स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास के क्षेत्र को साफ और निर्मल रखना है। इसका मतलब यह है कि आदिवासी जो स्ट्रीट वेंडर (सड़क व्यापारी) थे, उन्हें अपनी रोजी रोटी नहीं मिलनी चाहिए। ऐसे कई विक्रेताओं को बेदखल कर दिया गया, उनकी दुकानों को नष्ट कर दिया गया। उन्होंने अब कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। विकास केवल बड़े बड़े होटलों के लिए लगता है, जिनका निर्माण तेज़ी से जबरन  अधिग्रहण किए गए ज़मीन पर चल रहा है। इस पर्यटन की परियोजना से आसपास के लगभग 72 गाँव प्रभावित है। यहां लोग भय और आतंक के साये में जी रहे हैं। क्या यही विकास है?


नर्मदा कनाल से नर्मदा का पानी विभिन्न शहरों और कारखानों तक पहुँचता है। लेकिन कभी ऐसा सुना है कि नदी और नहरों के ठीक बगल में रहने वाले लोगों को अपने कृषि और दैनिक उपयोग के लिए इनका पानी नहीं मिलता है ? उन्हें बोरवेल और बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है। आज तक गुजरात के सरदार सरोवर विस्थापित, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से गुजरात में बसाये गये बांध प्रभावित, कई पुनर्वसाहटों में पीने के पानी के लिए भी तडप रहे हैं | इसको ही हम विकास कह रहे हैं।


आज भी गुजरात में बसाये कई विस्थापित उनके हक की पूरी जमीन और परिवार वार एक रोजगार नहीं पाये हैं और मध्यप्रदेश की तुलना में व्यस्क पुत्रों को वंचित रखा गया है |


जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समनवय  ने प्रेस विञप्ति के माध्यम से बताया कि गुजरात और केंद्र सरकार की इस वीभत्स कार्यवाही और आतंक का वे विरोध करते हैं। माँग करते हैं कि सभी डिटेन और गिरफ़्तार साथियों को तुरंत रिहा किया जाए। साथ ही साथ जबरन भूमि अधिग्रहण पर रोक लगे क्योंकि गुजरात उच्च न्यायालय ने उसपर रोक लगा रखा है। आदिवासियों की नष्ट फसल का मुआवज़ा सरकार तुरंत दे और विकास के नाम पर यह भयावह खेल तुरंत बंद हो । उनका आग्रह हैं कि सर्वोच्च अदालत के 24.10.2019 के आदेश अनुसार होने वाली सरदार सरोवर बांध के निगरानी हेतु बनी मुख्यमंत्रीयों की पुनर्विचार समिति में इन मुद्दों के ऊपर चर्चा हो एवं उचित कार्यवाही हो। 


इस अभियान में


मेधा पाटकर, कैलाश यादव, विजय मरोला, देवीसिंह तोमर, बालाराम यादव, रामेश्वर सोलंकी, गोरीशंकर कुमावत, कमला यादव नर्मदा बचाओ आंदोलन  


अरुणा रॉयनिखिल डे व शंकर सिंह, मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस), नेशनल कैम्पेन फॉर पीपल्स राइट टू इनफार्मेशन व एनएपीएम; 


डॉ. बिनायक सेन, पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयुसीएल); गौतम बंदोपाध्याय, एनएपीएम (छत्तीसगढ़); कलादास डहरिया, रेला व एनएपीएम (छत्तीसगढ़);


प्रफुल्ला सामंतरा, लोक शक्ति अभियान व एनएपीएम (ओड़िशा); लिंगराज आज़ादसमाजवादी जन परिषद, नियमगिरि सुरक्षा समिति, व एनएपीएम (ओड़िशा); 


पी. चेन्निया, आंध्र प्रदेश व्यवसाय वृथिदारुला यूनियन (एपीवीवीयू), नेशनल सेंटर फॉर लेबर व एनएपीएम (आंध्र प्रदेश); रामकृष्णम राजू, यूनाइटेड फोरम फॉर आरटीआई व एनएपीएम (आंध्र प्रदेश); मीरा संघमित्रा, राजेश सेरुपल्ली,  एनएपीएम (तेलंगाना व आंध्र प्रदेश);


कविता श्रीवास्तव, पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयुसीएल); कैलाश मीना, एनएपीएम (राजस्थान); 


संदीप पाण्डेय, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया); ऋचा सिंह, संगतिन किसान मजदूर संगठन; अरुंधती धुरु, मनेश गुप्ता, सुरेश राठौर, महेंद्र, एनएपीएम (उत्तर प्रदेश); 


सिस्टर सीलिया, डोमेस्टिक वर्कर्स यूनियन; रिटायर्ड मेजर जनरल एस. जी. वोम्बत्केरे, एनएपीएम (कर्नाटक); 


गेब्रियल दिएत्रिच, पेन्न उरिमय इयक्कम, मदुरई व एनएपीएम (तमिलनाडु); गीथा रामकृष्णन, असंगठित क्षेत्र कामगार फेडरेशन, एनएपीएम (तमिलनाडु); अरुल डोस, एनएपीएम (तमिलनाडु);


डॉ. सुनीलम व आराधना भार्गव, किसान संघर्ष समिति व एनएपीएम,  राजकुमार सिन्हाचुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति, एनएपीएम (मध्य प्रदेश); 


विलायोदी वेणुगोपालसी.आर. नीलाकंदन, प्रो. कुसुमम जोसफसरथ चेलूर  एनएपीएम (केरल); 


दयामनी बारला, आदिवासी मूलनिवासी अस्तित्व रक्षा समिति; बसंत हेतमसरियाअशोक वर्माएनएपीएम (झारखंड); 


आनंद मज्गओंकरस्वाति देसाईकृष्णकांतपर्यावरण सुरक्षा समिति व एनएपीएम (गुजरात); 


विमल भाई, माटू जनसंगठन; जबर सिंह, एनएपीएम (उत्तराखंड); 


समर बागचीअमिताव मित्रा, एनएपीएम (पश्चिम बंगाल); 


सुनीति एस. आर.सुहास कोल्हेकर, प्रसाद बागवे, एनएपीएम (महाराष्ट्र);  बिलाल खान, घर बचाओ घर बनाओ आन्दोलन व एनएपीएम (महाराष्ट्र);


अंजलि भारद्वाज, नेशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इनफार्मेशन व एनएपीएम; 


फैज़ल खान, खुदाई खिदमतगार; जे. एस. वालिया, एनएपीएम (हरियाणा); 


गुरुवंत सिंह, एनएपीएम, पंजाब; 


कामायनी स्वामी व आशीष रंजन, जन जागरण शक्ति संगठन व एनएपीएम (बिहार); महेंद्र यादव, कोसी नवनिर्माण मंच व एनएपीएम (बिहार); सिस्टर डोरोथीउज्जवल चौबे, एनएपीएम (बिहार); 


भूपेंद्र सिंह रावत, जन संघर्ष वाहिनी; सुनीता रानी, नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स यूनियन; नान्हू प्रसाद, निर्माण मजदूर यूनियन; राजेन्द्र रविमधुरेश कुमारहिमशी सिंह, एनएपीएम (दिल्ली) ।