रक्षासूत्र आन्दोलन के सूत्रधार - सुरेश भाई

||रक्षासूत्र आन्दोलन के सूत्रधार - सुरेश भाई||


वे साजसेवी या सामाजिक संस्थाऐं जो समाज की बेहतरी के लिए संघर्षशील होती है वे निश्चित रूप् से जागृति की प्रतीक होती है। यही सामाजिक संस्थाऐं या व्यक्तित्व उस समाज, संस्कृति, उसके भाषा-साहित्य, व्यवहार, चरित्र एवं प्र्यावरण आदि विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।


सुरेश भाई का जन्म 1964 में टिहरी गढ़वाल के निवालगांव मे हुआ। बाद में इनका परिवार पास के ही रगस्या गांव में आकर बस गये। रगस्या गांव के पास ही बूढाकेदारनाथ में सर्वोदय कार्यकत्र्ता धर्मानंद नौटियाल, भरपूरु नगवान, बहादुर सिंह राणा, बिहारी लाल जैसे लोग शराब बन्दी, समता और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए गांव-गांव में कार्यकर्ता निर्माण के काम में लगे थे। इन्ही दिनों यानि 1977 में वे इनके सम्पर्क में आ गये और चिपको व सर्वोदय के काम में जुट गये। अर्थात सुरेश भाई विद्यार्थी जीवन से ही समाज सेवा के लिए प्रेरित हो गये।


एक तरफ स्कूल की पढाई तो दूसरी तरफ खुदके लिए संसाधन जोड़ना भी इनके जिम्मे था। क्योंकि इनसे पिता का साया बचपन से ही छूट गया था। सो गांव में ही रहकर प्राइवेट एम. ए. तक की पढ़ाई के साथ-साथ 10 वर्ष तक जल, जंगल, जमीन के रचनात्मक विषय पर लोक जीवन विकास भारती के साथ काम करना प्रारम्भ किया। इसी दौरान इन्होंने जल संरक्षण एवं वन संरक्षण के लिये टिहरी, उत्तरकाशी के लगभग 1000 गांवों मंे वर्ष 1984-90 तक पदयात्रा की। इसके परिणाम स्वरुप 400 ग्रामीण महिला संगठनों को वन व जल संरक्षण के कार्यों को बल मिला है।


सन् 1990-93 के बीच सुरेश भाई को उत्तराखण्ड की प्रसिद्व समाज सेविका सुश्री राधा बहन, श्री चंडी प्रसाद भट्ट, सुन्दरलाल बहुगुणा, भवानी भाई, का मार्गदर्शन मिला। राधा बहन से परामर्श लेकर टिहरी बांध के कारण उत्पन्न पर्यावरणीय संकट के विषय पर टिहरी बांध के जल ग्रहण क्षेत्र में चार बार कुल 500 किमी पद्यात्रा की। तत्काल पर्यावरणविद् सुन्दर लाल बहुगुणा के टिहरी बांध विरोध के उपवास के दौरान उन्हे साथियों केे साथ दो बार पुलिस हिरासत में रहना पड़ा।


सन् 1983 में चिपको के साथ सरकार ने निर्णय लिया था कि 1000 मीटर से ऊपर वनों का व्यावसायिक दोहन नहीं होगा। लेकिन इस निर्णय को 1993 में यानि 10 वर्ष  बाद वापस लिया गया था। इसकी जानकारी भी सुरेश भाई को तब हुई जब उन्होंने अपने गांव के आस-पास के नदियों के सिरहानों पर चैड़ीपत्ती एवं शंकुधारी देवदार एवं फर आदि कई प्रजातियों के वनों का अंधाधुंध दोहन देखा। इससे चिन्तित होकर इन्होने टिहरी जिले के धर्म गंगा, बाल गंगा, भिलंगना, उत्तरकाशी जिले में भागीरथी, चमोली जिले में अलकनंदा के जलग्रहण क्षेत्रों का अध्ययन करके वन विनाश की सच्चाई जनता के सामने लायी। उनके द्वारा जुटाई गयी सूचना से सैकड़ों गांवों की महिलायें अपने घास, लकड़ी के वनों को बचाने के लिये आगे आयी है। इसी दौरान सन् 1994 में एक तरफ पृथक उत्तराखण्ड राज्य की माँग चरम सीमा पर थी तो वहीं वनमाफिया वनों के दोहन के लिए कमर कस चुके थे। ऐेसे दौर मंेे सुरेश भाई एवं उनकी पर्यावरण टीम के दर्जनों साथियों ने मिलकर वनों के व्यावसायिक दोहन रोकने के लिये पेड़ों पर महिला संगठनों के साथ मिलकर रक्षासूत्र (राखी) बाँधे है। रक्षासूत्र आन्दोलन के बाद हर्षिल, चैंरगीखाल, बूढाकेदार, रायाला, भिलंग, मुखेम, अयांरखाल आदि कई वन विविधता वाले स्थानों पर लगभग 12 लाख हैक्टेयर वन क्षेत्र के अन्तर्गत लाखों हरे पेड़ों का कटान रोका गया। इस आन्दोलन के कारण चिपको के बाद पुनः वनों की व्यावसायिक कटान की सरकारी नीति का पुरजोर विरोध हुआ है। रक्षासूत्र आन्दोलन की पर्यावरण टीम ने ''उत्तराखण्ड वन अध्ययन जन समिति'' का गठन करके उन स्थानों का अध्ययन किया है जहाँ-जहाँ पर वन निगम ने वनों का व्यावसायिक दोहन किया था। इस अध्ययन पर एक रिपोर्ट ''कब रूकेगा उत्तराखण्ड में वनो का विकास'' नाम से पुस्तिका के रुप में प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट को भारत सरकार के पर्यावरण मन्त्रालय ने संज्ञान लिया और वन माफियाओं से मिली भगत करने वाले लगभग 120 वनकर्मियों को निलम्बित होना पड़ा।


14 मार्च सन् 1994 में रक्षासूत्र आन्दोलन के दौरान सुरेश भाई और उनकी पर्यावरण टीम ने मिलकर लोक शिक्षण एवं रचनात्मक कार्यों के लिये ''हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान'' की स्थापना की। जो वन संरक्षण जल संरक्षण के लिये सक्रिय है। मौजूदा समय में इस संस्था का कार्यालय उत्तरकाशी के मातली गाँव में स्थित है।


10-11 सितम्बर 1994 को रयाला जंगल में छापे गये हजारों पेड़ों का व्यावसायिक दोहन रोकने के लिये डालगांव, खवाड़ा, भेटी आदि की महिलाओं ने पेड़ों पर रक्षासूत्र बांधे। 5 जुलाई 1995 को वन निगम के मजदूर पुनः रयाला जंगल में चोरी-छिपे पंहुचे, परन्तु रक्षासूत्र की  पर्यावरण टीम वहां मौजूद थी तो मजदूरों को बैरंग लौटना पड़ा। 9-13 अगस्त 1995 को जब रयाला जंगल में डालगांव, खवाड़ा की लगभग 200 महिलाओं ने जाकर रक्षासूत्र बाँधे तो वन काटने वाले मजदूरों को जंगल से भागना पड़ा। उधर 17 दिसम्बर 1995 को उत्तरकाशी के चैंदियाट गाँव और दिखोली की महिलाओं ने चैरंगीखाल में ढो़ल बाजों के साथ पेड़ों पर रक्षासूत्र बाँधे। इसके बाद चैरंगीखाल से वन कटान करने वाले मजदूरों को उल्टे पाँव भागना पड़ा।


04-06 जनवरी 1996 को रक्षासूत्र आंदोलन से जुड़ी महिलाओं के साथ मिलकर सुरेश भाई ने वन संरक्षण के लिये जल एकत्रीकरण जैसे चाल (ॅंजमत भ्ंतअमंेजपदह ैजतनबजनतम) आदि के निर्माण पर शिविर एवं 200 किमी की पदयात्रा की। 01 मार्च 1996 को वन माफियाओं से मुक्ति पाने के लिये लम्बगांव में ढोल बाजों के साथ सैकड़ो महिलाओं ने सुरेश भाई के साथ अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। परिणाम स्वरूप 08 मार्च 1996 को पहली बार धौन्तरी में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को वन बचाओ दिवस के रुप में मनाया गया। जिसका नतिजा यह हुआ कि 13 मई 1996 को चैरंगीखाल के आगे हरुन्ता में वन कटान के अध्ययन दल का नेतृत्व कर रहे सुरेश भाई और उनके टीम के सक्रिय सदस्य किशोरी लाल भट्ट पर वन माफियाओं ने जानलेवा हमला बोल दिया। परन्तु वे वन माफियाओं के चुंगल से बचकर वन महानिरीक्षक दिल्ली (वन एवं पर्यावरण मंत्रालय) से जा मिले और वन विनाश की जांच के आदेश कराये। यह कारवां आगे बढा और 9 अगस्त 1996 को उत्तराखण्ड हिमालय में वन विनाश को रोकने के लिये देश की ग्यारवीं लोकसभा के संसद सदस्यों के नाम खुला पत्र जारीकिया। इस अभियान ने इतना तूल पकड़ा कि तत्काल वन संरक्षक आनन्द सिंह नेगी की जाँच के बाद उत्तरकाशी में दो डीएफओ समेत 121  वन कर्मियों का निलम्बन हुआ। यह तातम्य जारी रहा और राज्य स्थापना के दौरान सन् 2000 में ''उत्तराखण्ड विकास की सही दिशा का दस्तावेज'' राज्य में यात्राऐं और सेमिनार, बैठके करके तैयार किया। 2003 में राज्य सरकार ने जलनीति का एक मसौदा सामने लाया, जो बड़ा निराश करने वाला था। इसको ध्यान में रखते हुये 16,17,18 जून 2004 केा देहरादून मे सुरेश भाई के नेतृत्व में एक राज्य स्तरीय सम्मलेन किया गया, जिसमें लोक जलनीति का मसौदा तैयार हुआ है। इस मसौदे को जब मुख्यमंत्री को सौंपने 30 सितम्बर 2004 को हजारो लोग राजधानी में एकत्रित हुए तो सुरेश भाई सहित 400 लोगों को पुलिस हिरासत में रहना पड़ा। हालांकि उत्तराखण्ड के पहले मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को लोक जलनीति का मसौदा सौंपा गया। उन्होंने राज्य की जलनीति बनाने के लिये इसको आधार बनाया और इसको लागू करने के लिये मन्त्रिस्तरीय समिति का गठन भी किया। इसके बाद लोक जलनीति के इस मसौदे को 1000 पंचायतों ने भी सरकार को भेजा।
 
वर्ष 2007 नवम्बर के अन्तिम सप्ताह में भागीरथी पर निर्माणाधीन पाला-मनेरी (420 मेगावाट) जल विद्युत परियोजना के नाम पर हरे पेड़ों की कटाई रोकने के लिये गंगोत्री के पास पाला गांव की महिलाओं ने रक्षासूत्र बांधे। इसके बाद हरे पेड़ों का कटान रोका गया। अब यह कह सकते हैं कि रक्षासूत्र आन्दोलन से लेकर लोक जल नीति, नदि बचााओ अभियान, हिमालय लोक नीति अभियान और हिमालय दिवस एवं नदि बचााओं दिवस जैसे परिणाम आज सभी के सामने हैं। सुरेश भाई की कर्मठता है कि वे लगातार रक्षा सूत्र आन्दोलन के साथ-साथ शिक्षा, पर्यावरण और विकास जैसे मुद्दों को लेकर जनता के मध्य प्रयासरत हैं। सुरेश भाई एवं संस्थान द्वारा गांव में ''जल और वन'' के परम्परागत विकास और संरक्षण की सोच पर काम करने वाली यह स्वयंसेवी संस्था चिपको जैसे विख्यात आन्दोलन के बाद भी वनो के अधाधुन्ध कटान के खिलाफ लम्बे समय से आन्दोलित है। जनआकांक्षाओं के मध्य नजर कई बार टिहरी उत्तरकाशी के सूदूरवर्ती गांवों की महिलाओं ने सुरेश भाई और अन्य कई गांवों की महिला नेत्रियों के नेतृत्व में-''ऊंचाई पर पेड़ रहेंगे, नदि गलेशियर टिके रहेंगे, पेड़ कटेंगे, पहाड़ टूटेंगे, बिना मौत के लोग मरेंगे, जंगल बचेगा, देश बचेगा, गांव-गांव खुशहाल रहेगा''। के नारों के साथ वनों के व्यवसायिक दोहन को रोकने के प्रयास जारी है। उन्होने पिछले वर्ष हिमालय की वास्तविक स्थिति पर आकर्षित करने हेतु हिमालय राष्ट्रीय नीति अभियान का प्रारम्भ 11 अक्टुबर 2014 को जय प्रकाश नारायण की जयंती पर गंगोत्री से प्रांरभ किया। जो 18 फरवरी 15 को गंगा सागर में पूरा हुआ है। इसके कारण देश में गंगा की अविरलता, निर्मलता के साथ हिमालय नीति की माँग उठी है।


सुरेश भाई का मानना है कि उत्तराखण्ड में वन विकास निगम जैसी व्यवस्था को समाप्त कर यहां के ग्रामीणो को पूर्ण रूप से वनों पर अधिकार सौंपा जाना चाहिए इससे जन मानस में वनों के प्रति अपनत्व की भावना जागृत होगी। वन संरक्षण के साथ-साथराज्य कर जल संरक्षण की पारम्परिक व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए भी सुरेश भाई समर्पित हैं।