रेडियो की भाषा का श्रोताओं पर प्रभाव

||रेडियो की भाषा का श्रोताओं पर प्रभाव||


रेडियो जनसंचार का सबसे सस्ता, सुलभ और प्रभावशाली माध्यम माना जाता है। देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी आकाशवाणी के कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय हैं, वहीं शहरों व कस्बों में प्राइवेट एफएम के कार्यक्रम युवाओं को बहुत आकर्षित करते हैं, ऐसे में रेडियो कार्यक्रमों की भाषा और शैली का श्रोताओं पर पड़ रहे प्रभाव के बारे में जानना-समझना आवश्यक है. भाषा मानव संचार का आधार है भाषा लोगों के साथ संचार में मदद करती है। भाषा प्रतीकों की एक जटिल प्रणाली है। यह मानव विचारों का स्रोत है भाषा संचार का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। मनुष्य भाषा-शैली से न सिर्फ प्रभावित होता है बल्कि इससे उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी होता हैहम भाषा के माध्यम से ही दूसरों तक अपनी भावनाओं, विचारों और अनुभवों को व्यक्त करते हैंसोशल मीडिया के आज के दौर में युवाओं की भाषा-शैली बड़ी तेजी से बदल रही है। ऐसे में मुख्यधारा की मीडिया में बदलाव आना स्वाभाविक है।


रेडियो (प्राइवेट एफएफ) में युवाओं को आकर्षित करने के उद्देश्य से हिंग्लिश के शब्दों का खूब प्रयोग किया जाने लगा है, टीवी में रचनात्मकता के नाम पर भाषा के साथ खिलवाड़ हो रहा है तो प्राइवेट रेडियो में प्रयोग होने वाली भाषा तो और भी अधिक हानिकारक हैकई कार्यक्रम ऐसे हैं जिसमें बीप का प्रयोग किया जाता है, श्रोता बीप का मतलब समझते हैं प्राइवेट एफएम चैनल के रेडियो जॉकी जिस तरह से बोलते है, वह भी कोई बहुत अच्छा नहीं है, उदाहरण के तौर पर सुनिए बैक टु बैक चार गाने चिपक के, आप सुन रहे हैं बारह से दो..मां-बहन का शो, एक चैनल का तो टैग लाइन ही “बजाते रहो" है। वहीं दूसरी तरफ सरकारी एफएम के प्रस्तुतीकरण में “सामान्य भाषा के शब्दों के प्रयोग के साथ भाषा की शालिनता का ध्यान रखा जाता है।


भाषा को बढ़ावा देने के लिए मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । रेडियो सुनने के साथ साथ हमारी बातचीत का स्तर माध्यम से विकसित होता हैश्रोता विशेष रूप से युवाओं में हिंग्लिश भाषा में बोलचाल बेहद आम हो चला है, शायद इसीलिए प्राइवेट एफएम अपने लक्षित समूह यानि युवा वर्ग को ध्यान में रखकर कार्यक्रमों का निर्माण करते हैं और युवाओं को आकर्षित करने के लिए ही ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं, लेकिन क्या इसे उचित कहा जा सकता है। ऐसे में प्राइवेट एफएम रेडियो की भाषा पर विचार करना प्रासंगिक हो जाता है।


आकाशवाणी के देशभर में कुल 420 स्टेशन हैं जिनकी पहुंच देश के 98 फीसदी इलाकों तक है वहीं प्राइवेट एफएम देश के 65 फीसदी इलाके तक पहुंच रहे हैं। प्राइवेट एफएम स्टेशन को सरकार की तरफ से भी बढ़ावा दिया जा रहा है। मेट्रो शहरों के बाद छोटे शहरों और कस्बो में भी प्राइवेट एफएम स्टेशन खुल रहे हैं । ऐसे में यह अध्ययन का विषय है रेडियो के कार्यक्रमों और उसकी भाषा-शैली का श्रोताओं पर क्या प्रभाव क्या पड़ रहा है।


जनसंचार के साधनों में रेडियो सबसे अधिक पहुंच वाला सस्ता माध्यम है। गांव के लोगों के लिए रेडियो मनोरंजन और सूचना का सबसे बड़ा साधन है। आकाशवाणी की लोकप्रियता ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक है। ऐसे में आकाशवाणी के कार्यक्रमों में बोली जाने वाली भाषा क्या एक साधारण ग्रामीण, मजदूर या किसान को समझ में आती होगी, ये भी एक सवाल है?


__प्रत्येक माध्यम की अपनी 'भाषा' या 'व्याकरण' होती है। एक समय था जब विविध भारती, बीबीसी को सुनकर भाषा सीखी जाती थी। हम अपनी भाषा को मांजते थे। लेकिन जब से प्राइवेट एफएम रेडियो आए हैं तब से अजीब तरह की भाषा का प्रयोग किया जा रहा है। इस पर सफाई देते हुए एफएम चैनल वालों का कहना होता है कि हम आम जनता की भाषा का प्रयोग करते हैंजनता जो सुनना चाहती है, हम उसी भाषा में बात करते हैं। लेकिन शोधकर्ता एवं भाषाविदों का मानना है कि ऐसी भाषा जनता ना तो बोलती है और ना ही सुनना पसंद करती है। हां, यह जरूर है कि स्कूल-कॉलेज स्तर के कुछ लड़के-लड़कियां ऐसी भाषा का जरूर इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उसे सही नहीं कहा जा सकता। इससे भाषा के साथ खिलवाड़ होता है हर कोई सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए अनेकों तरीके अपनाता है और रेडियो चैनल भी वहीं कर रहे हैं। किसी को परेशान करना, मस्ती करना, हंसी-मजाक करना ये तो सब मनोरंजन में आते हैं, लेकिन किसी की निजी जिंदगी पर कमेंट कसना यह सही नहीं है बेहूदा मज़ाक पर रेडियो कार्यक्रम नहीं बनने चाहिए रेडियो से संदेश समाज में दूर-दूर तक जाते हैंइसका दायरा जरूर होना चाहिए । जो प्रोग्राम प्रोड्यूसर होते हैं उन्हें रेडियो जॉकी को बताना चाहिए कि उनका दायरा कहां तक है क्योंकि रेडियो सिर्फ मनोरंजन का ही नहीं, शिक्षा का भी साधन है।


मीडिया ने हमारे रोजमर्रा की जिंदगी पर उस गति से बहुत बड़ा प्रभाव डाला है जिस पर हम सूचना के प्रसार के लिए संवाद करते हैं। मीडिया संचारित करने के लिए मीडिया की भाषा का उपयोग उपकरण के रूप में किया जाता है।


जनता तक संदेश पहुंचाने के लिए प्रसारण की भाषा सरल और सुग्राह्य होनी चाहिए तभी उसे सामान्य तथा विद्वान्, निरक्षर, साक्षर और बाल, युवा तथा वृद्ध समान रूप से समझ सकेंगे।


भाषा सहज,प्रवाहमय और स्पष्ट होनी चाहिएवाक्य छोट-छोटे और अपने आप में पूर्ण होने चाहिएकठिन शब्दों के प्रयोग और अत्यधिक अलंकारिक भाषा से बचना चाहिए क्योंकि अर्थ जटिल होते ही श्रोता का ध्यान उचट जाता है और वहीं पर आकर वार्ता असफल होने लगती हैरेडियो कार्यक्रम की सफलता इस बात में निहित होती है कि वह श्रोताओं के मस्तिष्क पर तुरंत प्रभाव उत्पन्न करे, एक बार जो वाक्य, उक्ति अथवा शब्द प्रसारित हो गया, वह हवा के झोंके की भांति निकल जाता है।


रेडियो के कार्यक्रमों में भाषा मंजिल नहीं है बल्कि एक रास्ता है का उद्देश्का है। श्रोताओं तक अपनी बात रचनात्मक तरीके से पहुंचाना, रेडियो की भाषा आपसी संवाद की भाषा होती है जिसमें स्टूडियो में बैठा प्रस्तुतर्ता, अपने श्रोताओं से बात करता है, इसलिए रेडियो कार्यक्रमों की भाषा-शैली सहज, सरल और स्वाभाविक होनी चाहिए।


स्रोत - समाचार भारती, समाचार सेवा प्रभाग, आकाशवाणी