रीजनल फिल्म "कन्यादान"


||रीजनल फिल्म "कन्यादान"||


बहुत दिनों बाद एक रीजनल फिल्म "कन्यादान" रीलिज़ हुआ....."पलायन"के अभीशप्त विषय से मुक्त एक कहानी को पर्दे पर दिखाया गया है। फिल्म शुरू मे थोड़ा ओवर एक्टिंग के साथ चलती है,और जब Dinesh Baurai जी एकल अभिनय के साथ फेरेम मे आते है तो लगने लगा,अब अभिनय से मुखातिफ हुआ।बेहतरीन अदाकारी बौड़ाई जी का,पात्र को सजीव करना और उसे जीना इसी को कहते हैं। फिल्म मे अब होता है मुख्यपात्र रमेश रावत (लुहार) और Geeta Uniyal का परवेश।मेरे पास शब्द नहीं है मै क्या लिखू। यहां कैमरामैन खेल सकता था लेकिन चुक गया।रमेश रावत जी और Geeta Uniyal ने पात्र को ऐसे जिया मानो असल जिन्दगी मे जी रहे हों।


यहां निर्माता से मै थोड़ा नाराज हूं , क्यों कि पोस्टर मे इन दोनों कलाकारों को अहमीयत नही दी गयी।पोस्टर ऐसे बना जैसे मुहल्ले में जागरण का बैनर है।फिल्म के इसी भाग में गीता उनियाल का एक गाना है।और चौकाने वाली बात कि एकदम प्लेबैक सिगिंग।मधुर आवाज और सटीक संगीत।इस गाने मे जो फील है,संवेदना है,वो Soniya Anand Rawat जी ने उढ़ेल दिया,क्यो कि वो एक मां है,और गीता उनियाल भी एक मां है,,,,, सलाम आप दोनों को।इस गाने के लिये डायेरेक्टर देबूरावत जी का मै अभीनंदन करता हूं।,,,,,,,,, फिल्म का दूसरा भाग कॉलेज सीन से शुरू होता है,जो कुछ खास नही है,लेकिन यहां एक कलाकार रूबरू होता है Ranveer Singh Chauhan । कमाल का संवाद संपेषण+भाव,,,,,यहां से अंत तक रनवीर ने मुझे परभावित किया।थोड़ा फाइट सीन का डायेरेक्सन इस कलाकार को मिल जाता तो ये अभिनय का बंम फोड़ता।यही परवेश करती हैं Reeta Gusain Bhandari ...मां की भूमिका मे अभिनय अच्छा रहा।"अच्छा रहा" पर बात खत्म नही होती है,मुझे लगा जब वो अभिनय कर रही थी तो कैमरा फीरी थी।एक बात और मैने गौर किया कि कुछ कलाकारों की आखें बोलती हैं,रीना मैम उनमे से एक है।फिल्म के इस भाग मेें एक बा फिर रमेश रावत और गीता उनियाल ने अपने अभिनय का लोहा मनवाया।रमेश रावत जी पे फिल्माया गया सैड सौंग+ Adhikari Satya Prakash जी की आवाज ने एक मिथक को तोड़ा,आवाज मे कोई नाक का या डी-टोन का परयोग नही हुआ।,,, फिल्म है तो हीरो हीरोईन तो होगे,और है भी लेकिन वे कुछ कर नही पाये।


सुन्दर लोकेशन मे एक लव सौंग है लेकिन कैमरा मैन निर्णय नही ले पाया कि लोकेशन दिखाउ या हीरोइन,,,,??इस भाग मेें एक सीन है जब बाप अपनी बेटी से मिलता है-Madan Duklan जी आप याद किये जाओगे। हॉल से निकलते समय एक परिचत ने कहा-"दादा ,,,"याद आली टिहरी" में यही थे न ?...,,,,,इस फिल्म मे एक कलाकार नीशा भण्डारी भी है,,,,इसे नायिका की मुख्य में लेना चाहिये था।फिल्म का अंत एक अच्छा संदेश देते हुये खत्म होती है।वास्तव मे फिल्म का निर्देशन Ashok Chauhan जी ने किया है जो कबीले तारीफ है।ये पहली बार हुआ फिल्म 90℅ओके है।जरूर देखिये इस फिल्म को।150/-अपनी बोली भाषा के लिये खर्च कर सकते है आप।आज मुझे दुख भी हुआ कि हॉल हाउस फुल नही हुआ।मै तहे दिल से कह रहा हूं एक बार जरूर देखे।यदी आपको फिल्म अच्छी न लगे तो मेरे पोस्ट पर आकर मुझे जो मन मे आये कह सकते है।धन्यवद आप सभी सम्मानित साथियों का।