साहसिक पर्यटन की शिक्षक डा॰ हर्षवन्ती विष्ट

||साहसिक पर्यटन की शिक्षक डा॰ हर्षवन्ती विष्ट||


विश्व के  सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट अभियान, 1984 में प्रतिभाग के  बाद गंगोत्री ग्लेशियर को बचाने हेतु कुछ करने का विचार उनके मन में आया। सन् 1989 में उन्होंने पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय, भारत सरकार से प्राप्त 'ग्रोथ आॅफ हिमालयन टूरिज्म इन गंगोत्री रीजन-एन इम्पैक्ट आॅन फिजिकल रिसोर्सेज एण्ड इकनोमी' शोध-परियोजना के अन्तर्गत कार्य शुरू किया तथा गंगोत्री-गोमुख क्षेत्र के भोजबासा में 12 हेक्टेयर पथरीली जमीन पर दुर्लभ एवं लुप्त-प्रायः पौराणिक भोजपत्र वृक्षों का वन विकसित करने का संकल्प लिया।


आदिकाल में भोज वृक्षों की छाल का इस्तेमाल कागज के रूप में किया जाता था और कई पवित्र गं्रथ इन्हीं भोज वृक्षों की छाल पर लिखे गए। उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षण संस्थान, अल्मोड़ा की मदद से पौधशाला की स्थापना हुई। भोजपत्र, सेलिक्स, पोपुल्स के हजारों पौधे 11700 फीट की ऊँचाई पर स्थित चीड़बासा नामक स्थान पर तैयार किये एवं 12500 फीट की ऊँचाई पर स्थित भोजबासा में 10000 पौधे लगाये, जिनकी सरवाइवल-रेट लगभग 60 प्रतिशत रही। वर्तमान में पौधों की ऊँचाई 14 से 15 फुट हो चुकी है।


भारतीय एवरेस्ट अभियान दल (1984) की सदस्य तथा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणविद् डाॅ0 हर्षवन्ती बिष्ट ने वर्ष 1977 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पौड़ी से अध्यापन के क्षेत्र में कदम रखा। उन्होंने स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में 35 वर्षों के अध्यापन के दौरान उत्तरकाशी व चिन्यालीसौड़ राजकीय महाविद्यालयों में कार्यवाहक प्राचार्य के अतिरिक्त, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) अध्ययन केन्द्र उत्तरकाशी की समन्वयक व वर्ष 2006 में आठ माह तक उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार की कुल सचिव का दायित्व भी कुशलतापूर्वक निभाया। 


पर्यावरण से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं की आजीवन सदस्य के साथ की वर्ष 2001 व 2002 में ैजममतपदह ब्वउउपजजमम व िछंजपवदंस ठपवकपअमतेपजल ैजतंजमहल ंदक ।बजपवद च्संदए न्जजंतंाींदक की भी सदस्य रहीं। वर्ष 2004-05 हेतु डाॅ0 बिष्ट उत्तरकाशी जिले की अवैतनिक वन्य जीव प्रतिपालक भी रही हैं। इनका शोध कार्य (पी0एच0डी0) 'हिमालयन टूरिज्म इन उत्तरकाशी एण्ड चमोली डिस्ट्रिक्टस् आॅफ गढ़वाल' इन्डस पब्लिशिंग कम्पनी, नई दिल्ली द्वारा 1994 में श्ज्वनतपेउ पद ळंतीूंस भ्पउंसंलंश् नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ है, जो इस क्षेत्र में साहसिक पर्यटन का प्रथम मौलिक लेखन है।


अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षणिक भ्रमण हेतु अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड, जापान व नेपाल का दौरा कर चुकीं डाॅ0 बिष्ट 1993 से थ्त्ळै ;थ्मससवू व ित्वलंस ळमवहतंचीपबंस ैवबपमजल स्वदकवदद्ध भी सबंध हैं। राष्ट्रीय एवं राज्य-स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में इनके शोध-पत्रों के प्रकाशन एवं संगोष्ठियों में व्याख्यानों का सिलसिला निरन्तर जारी है। सम्प्रति डाॅ0 हर्षवन्ती बिष्ट नवम्बर 2011 से शहीद दुर्गा मल्ल राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला (देहरादून) में प्र्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं। पर्वतारोहण और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र मेें आज एक जाने-पहचाने नाम के रूप में स्थापित डाॅ0 बिष्ट के मन में पर्यावरण के प्रति रूचि एवं ललक राजकीय सेवा में प्रवेश के समय से ही जग गईं थी। उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) उत्तरकाशी से पर्वतारोहण का बेसिक एवं एडवांस कोर्स कर दुर्गम पर्वत चोटियों का सफलतापूर्वक आरोहण किया।


इससे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों, औषधीय पौधों और मोनाल एवं कस्तूरी मृग व भरड़ जैसे दुर्लभ वन्य जीवों को आश्रय मिल गया है। इस वन का महत्व इसलिए भी है कि यह विश्व-विख्यात गंगोत्री धाम से 14 कि.मी. गोमुख पैदल मार्ग पर स्थित है जहाँ वर्ष में 5-6 महीने बर्फ जमी रहती है।


पहाड़ की बेटी डाॅ. हर्षवन्ती बिष्ट पर्वतारोहण व पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेेतु विभिन्न संस्थानों से सम्मानित भी हो चुकी हैं। 


विदेशों से भी अनेक शोधार्थी डाॅ. बिष्ट के निर्देशन में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े शोध कार्य कर चुके हैं। यूनिवर्सिटी आॅफ एप्लाइड साइंसेज़, राॅटेनबर्ग, जर्मनी के म्दहमसतिपमक डंजजीपंे और ैनीतपदह छपबवसंे ने  डाॅ. बिष्ट के निर्देशन में 'रिसोर्स वाॅटर मैनेजमेण्ट प्रोग्राम' के अन्तर्गत इन्टर्नशिप कार्य किया। फुलब्राइट स्काॅलर जाॅर्जिना आर.ड्रयू ने वर्ष 2008 में डाॅ. बिष्ट की ।बंकमउपब ।कअपेवतेीपच में अपना डाॅक्टोरल रिसर्च किया और सन् 2012 में म्यूनिख विश्वविद्यालय, जर्मनी की, बंगलादेश की शोध-छात्रा श्रबना दत्ता को भी 'हिमालय पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव' संबंधी शोध कार्य हेतु सहयोग किया। डाॅ. बिष्ट अपनी विभिन्न गतिविधियों से समाज को पर्यावरण संरक्षण और संवर्द्धन का संदेश भी देती आयी हैं। 11 फरवरी 2004 को राजभवन में डाॅ. बिष्ट द्वारा निर्मित वृत्तचित्र (डाॅक्यूमेंट्री) का लोकार्पण कर व इससे प्रभावित होकर उत्तराखण्ड के राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल जी ने कहा था कि प्रकृति का सौन्दर्य लौटाना सभी का दायित्व है। पर्यावरण पे्रमी सुप्रसिद्ध छायाकार स्वामी सुंदरानंद ने हिमालय क्षेत्रों में वनों के विदोहन, बढ़ते हुए कूड़े-कचरे व पाॅलिथीन से उत्पन्न प्रदूषण को अत्यंत गंभीर समस्या बताया। डाॅ. बिष्ट द्वारा मार्च 2005 में उत्तरकाशी में आयोजित 'नेशनल सेमिनार आॅन टूरिज्म एण्ड हिमालयन बायो डायवर्सिटी' में तत्कालीन मुख्य सचिव आर.एस. टोलिया ने सरकार का पक्ष रखा तो पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा और जगत सिंह 'जंगली' जैसे दर्जनों पर्यावरण चिंतकों, पर्वतारोहियों, पर्यटन व्यवसायियों और समुदाय के बीच काम करने वालों ने माना कि आज हिमालय पिघल रहा है और इसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।


वर्ष 2010 में डाॅ. हर्षवन्ती बिष्ट को भारतीय पर्वतारोहण संस्थान, नई दिल्ली ने गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में वैश्विक उष्णता तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अध्ययन हेतु 'रिपीट फोटोग्राफी एक्सपिडिशन टू गंगोत्री ग्लेशियर रीजन' के नेतृत्व का जिम्मा सौंपा। डाॅ. बिष्ट आजकल इस विषय से सम्बन्धित पुस्तक पर कार्य कर रही हैं।


1970 के दशक के आसपास उत्तर प्रदेश सरकार ने साहसिक पर्यटन के नाम पर गोमुख तथा उच्च हिमालयी क्षेत्रों को तीर्थ यात्रियों व पर्यटकों के लिए जोर-शोर से विज्ञापित किया था। उस समय कहा गया कि पर्यटन प्रदूषण-मुक्त उद्योग है, जो 'ईको-फ्रेंडली' है तथा हिमालय के निवासियों की आर्थिक समृद्धि का आधार बनेगा, किन्तु वर्ष 1990 के दशक तक यह पाया गया कि तीर्थ यात्रियों की बढ़ती संख्या तथा अनियोजित तीर्थाटन/पर्यटन से उच्च हिमालयी क्षेत्रों के सुन्दर स्थल बड़ी तेजी से कचरे के ढेर, सिमटते जंगल, प्रदूषित नदियों तथा भद्दे स्थलों में परिवर्तित होने लगे हैं।


डाॅ. बिष्ट के अनुसार, प्रारम्भ में वन विभाग ने संरक्षित क्षेत्र में यह कहकर उन्हें भोजपत्र वनों को पुनः स्थापित करने की अनुमति नहीं दी कि उनकी पृष्ठभूमि पादप विज्ञानी या वनस्पति विज्ञानी की नहीं है। 
पर्यावरण संरक्षण और संवर्द्धन के इस सफ़र में कुछ चुनौतीपूर्ण क्षण भी आए, जब चीड़बासा में अनेक बार पौधशाला बाढ़ और भूस्खलन से नष्ट भी हुई, किन्तु डाॅ. बिष्ट ने हिम्मत नहीं हारी। हद तो तब हुई जब वन विभाग, उत्तरकाशी ने मार्च-2005 में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत डाॅ. बिष्ट व इनके सहयोगी के खिलाफ न्यायालय में झूठा वाद दायर किया। 'सांच को आंच नहीं' के चलते जुलाई 2006 में माननीय न्यायालय ने इस झूठे मुकदमे को खारिज कर दिया।  


डाॅ. हर्षवन्ती बिष्ट की पर्यावरण संरक्षण की मुहिम निरन्तर जारी है...।


Sincerely - Hamare Nayak