साहित्य के क्षेत्र में "चंद्र कुँवर बर्त्वाल साहित्य सेवाश्री सम्मान"

||साहित्य के क्षेत्र में "चंद्र कुँवर बर्त्वाल साहित्य सेवाश्री सम्मान" ||



हिमवन्त कवि चंद्र कुँवर बर्त्वाल जी की जन्म शताब्दी के अवसर पर सम्पन्न हुआ कार्यक्रम। साहित्य के क्षेत्र में उपलब्धि पर मिला "चंद्र कुँवर बर्त्वाल साहित्य सेवाश्री सम्मान"
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माँ शारदा के वरद पुत्र हिमवंत चन्द्र कुँवर बर्त्वाल की जन्म शताब्दी के अवसर पर दिनांक 31 अगस्त 2019 को गढ़वाल भवन,नई दिल्ली में "हिमवंत कवि चंद्र कुँवर बर्त्वाल स्मृति मंच" एवं "रुद्रप्रयाग जन विकास समिति" के संयुक्त तत्वावधान में ,दिल्ली अकादमी, दिल्ली एवं अन्य के सौजन्य से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ जिसमें साहित्य,समाज, पत्रकारिता के क्षेत्र में अग्रणी जनों को " हिमवंत चंद्र कुँवर बर्त्वाल स्मृति मंच" द्वारा सम्मानित किया गया।


उत्तराखंड हिमालय की धरती पर 20 अगस्त 1919 को जन्मे अमर कवि चंद्र कुँवर बर्त्वाल हिंदी साहित्य में एक ऐसा नाम है जिन्होंने अपने मात्र 28 वर्षीय जीवन में इतना प्रबुद्ध साहित्य समाज को प्रदान किया जिससे उन्हें महाकवि कालिदास के समकक्ष हिंदी साहित्य के समीक्षकों द्वारा स्थान दिया गया।जिस दौर में देश में छायावाद के प्रमुख स्तंभ सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जैसे महान कवि थे उसी दौर में उत्तराखंड की भूमि पर जन्मे अमर कवि चंद्र कुँवर बर्त्वाल थे।उन्होंने 700 से अधिक गीत,कविताएं लिखीं। 25 से अधिक गद्य रचनायें तथा कहानी,एकांकी,निबंध आदि प्रमुख रूप से उनके द्वारा रचित रहे।


अपने जीवन काल में सुव्यवस्थित रूप से वह अपनी रचनाओं को प्रकाशित नहीं करवा पाए।उनकी रचनाओं को पाठकों तक पहुंचाने का प्रमुख श्रेय प.शंभु प्रसाद बहुगुणा को जाता है। उसके उपरांत डॉ उमा शंकर सतीश ने उनकी कुछ पुस्तकों का संपादन कर उनके साहित्य को आगे बढ़ाया और श्री बुद्धिबल्लभ थपलियाल ने "चंद्र कुँवर काव्य प्रसंग" एवं "काव्य संहिता" का प्रकाशन कर महत्वपूर्ण कार्य किया। वर्तमान में भी उनके साहित्य को लेकर शोध कार्य, संगोष्ठियां आदि प्रगति पर हैं।


महत्वपूर्ण है कि हिंदी साहित्य में 100-100 पदों से भी ऊपर कविताएं और गीत उन्होंने लिखे। उनके सम्पूर्ण कृतित्व पर उनके मौलिक चिंतन,गहन अध्ययन,विलक्षण विवेचन,विश्लेषण और उनकी सरलता,सहृदयता,बुद्धिमत्ता और दूर दृष्टि की गहरी छाप रही।चित्रकला और संगीत में भी उनकी रुचि थी।मात्र 28 वर्ष की आयु में 14 सितंबर 1947 को वह अपना अमूल्य साहित्य समाज को प्रदान कर इस संसार से विदा हो गए। हिंदी साहित्य में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
उन्हीं के द्वारा रचित एक रचना का भाव देखिए जहाँ प्रकृति और जीवन को उन्होंने जोड़ा है...


नदी चली जायेगी, यह न कभी ठहरेगी
उड़ जाएगी शोभा ,रोके यह न रुकेगी
झर जाएंगे फूल ,हरे पल्लव जीवन के
पड़ जाएंगे पीत,एक दिन शीत मरण से
रो-रोकर भी फिर न हरी यह शोभा होगी।
नदी चली जायेगी,यह न कभी ठहरेगी।
फैला सबके ऊपर वही सुनील गगन है।
छूती सबको सदा वही मृदु मंद पवन है।
चारों ओर वही नदियाँ हैं,वही सरोवर।
वही वृक्ष हैं,पर भाग्यों में कितना अंतर
हँसता है ,कोई क्रंदन करता है
फैला यद्यपि सबके ऊपर वही गगन है।


महान कवि की जन्म शताब्दी का यह शुभ अवसर मेरे द्वारा रचित साहित्य के लिए भी अनुपम रहा।मुझे भी इस अवसर पर हिमवंत " चंद्र कुँवर बर्त्वाल साहित्य सेवाश्री सम्मान" संस्था द्वारा प्रदान किया गया ।मंच पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ श्याम सिंह 'शशि' (पद्मश्री)श्री योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण', हिंदी अकादमी,दिल्ली के सचिव डॉ जीतराम भट्ट,सांसद श्री तीरथ सिंह रावत, DPMI के निदेशक एवं समाजसेवी श्री विनोद बछेती,अधिवक्ता एवं समाजसेवी श्री संजय दरमोडा आदि की इस दौरान उपस्थिति रही। कई स्नेही मित्रगणों से मिलने का भी सुअवसर प्राप्त हुआ। इस मंच द्वारा साहित्य,समाज,पत्रकारिता के क्षेत्र में सम्मानित हुए सभी सुधीजनों को बधाई एवं शुभकामनाएं। चंद्र कुँवर बर्त्वाल स्मृति मंच के संस्थापक/सचिव डॉ पृथ्वी सिंह केदारखंडी जी को बधाई जिन्होंने यह कार्यक्रम आयोजित किया। इस दौरान लोकार्पित हुये काव्य संग्रह "धार मा कु गौं छ म्यारु ",लेखक श्री पृथ्वी सिंह केदारखंडी जी को बधाई।सार्वभौमिक संस्था की नाट्य प्रस्तुति "अब क्या होलु"की सुंदर पटकथा एवं सुंदर अभिनय के लिए सभी कलाकार बधाई के पात्र हैं। 



हेमा उनियाल
(1 सितंबर 2019