साहित्यकार, लोक संस्कृति, रवांई लोक भाषा के चितेरे हैं महावीर रवांल्टा 

व्यक्तित्व : श्री महाबीर रवांल्टा, सरनौल गांव ( पुरोला के मेहर गांव )
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प्रख्यात साहित्यकार, लोक संस्कृति, रवांई लोक भाषा के चितेरे हैं महावीर रवांल्टा 


यदि अपनी जड़ों से जुड़ा रहना है तो अपनी बोली, भाषा अपनानी होगी। रवांई लोक भाषा पर पर काम करने वाले महावीर जी इसमें बर्षो से काम कर रहे हैं। कुछ लोगों के लिये वह लोक भाषा कब्रगाह से उठाकर जीवित किये हैं।आइये उनका जन्मबार मनाते हैं।


उनके बारे में कुछ इतिहास --


किसी राष्ट्र की सभ्यता संस्कृति को सजीव रखने की विधा साहित्य से बढ़कर और कोई नहीं हो सकता है। इसीलिए साहित्य का आधार ही जीवन माना जाता है। लोक संस्कृति, मानवीय समानता, हाशिये पर खड़े मनुष्य के जीवन स्तर में सुधार साहित्यकारों का काम रहा। इसी कर्म और कलम के पुजारी प्रसिद्द साहित्यकार महाबीर रवांल्टा हैं। इनका श्रेष्ठ साहित्य लोकभावना के स्तर पर ब्यक्ति और समाज को चेतन कर एक राह दिखा रहा है।


महाबीर रवांल्टा का जन्म सरनौल गांव में १० मई १९६६ को माता रूपदेई और पिता टिका सिंह राणा के घर हुआ। मन को झकझोरने वाली विकटताएं उन्हें विरासत में मिली। सन १९७७ में पढ़ाई के लिए वे अपने पिता के साथ उत्तरकाशी आ गए थे। जोशियाड़ा स्थित रा. पू. मा. विद्यालय में कवि लीलाधर जगूड़ी व डॉ. जग्गू नौटियाल ने भी उन्हें पढ़ाया। आगे की पढाईke लिए राजकीय कीर्ति इण्टर कॉलेज में दाखिला लिया। अस्सी के दशक में उत्तरकाशी में आये दिन काब्य गोष्ठियां होती रहती थी। बस क्या था इन्हें भी काब्य गोष्ठियों में सुनकर कविता लेखन की धुन सवार हुई। मार्च १९८३ में महाबीर रावलता की पहली कविता प्रकाशित हुई। बस तब से लेकर महाबीर की कलम कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, समीक्षा, लघुकथा, एकांकी, ब्यंग्य व लोककथाओं के सृजन में निरंतर चल रही है।


सन १९८९ में इनका चयन स्पेशल पुलिस फाॅर्स में हुआ और ढ़ाई वर्ष तक सुदूर सीमावर्ती चौकियों में सेवाएं दी। इसके बाद बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धरपा और वैरा फिरोजपुर में १८ वर्ष तक अपनी सेवाएं दी। वर्तमान में वे अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आराकोट में सेवारत हैं जो उत्तरकाशी जनपद का सुदूरवर्ती क्षेत्र है। सरकारी सेवा में विभिन्न जगहों पर रहते हुए भी इन्होनें कभी भी अपनी माटी और कठिनाइयों के दिनों को नहीं भुलाया जिसकी छाप आज भी इनकी कृतियों में साफ़ झलकती है। अपनी माटी व लोक संस्कृति के प्रति असीम प्रेम के कारण ही वे अपने नाम महाबीर राणा की जगह महाबीर रवांल्टा लिखते हैं।


वर्ष १९९५ में इनकी पहली रवांल्टी कविता 'दरवालु' जनलहर में प्रकाशित हुई। 'हिमालय और हम', 'जन लहर', 'उत्तरीय आवाज' व फार्मेसी सर्विस न्यूज़ बुलेटिन पत्रों से जुड़ाव के साथ ही देशभर की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं आकाशवाणी व दूरदर्शन से प्रसारण हो चुका है।


भाषा शोध एवं प्रकाशन केंद्र बड़ोदरा (गुजरात) के भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण (People's linguistic survey of India) व उत्तराखंड भाषा संस्थान के भाषा सर्वेक्षण में कार्य कर चुके महाबीर रवांल्टा को रवांल्टी के पहले कविता संग्रह 'गैणी जण आमार सुईन' (आसमान जैसे हमारे सपने) को भी सामने लाने का श्रेय जाता है। मंच, आकाशवाणी व दूरदर्शन के माध्यम से रवांल्टी के प्रचार-प्रसार के लिए वे निरंतर प्रयासरत हैं।


रंगकर्म में अपनी रूचि के कारण वे अनेक नाटकों के लेखन के साथ ही अभिनय व निर्देशन में भी सक्रिय हिस्सेदारी कर चुके हैं तथा ग्रामीण बच्चों के साथ नाट्य शिविर में अनेक नाटक मंचित किये हैं। उनकी कहानी 'बुली आखों में सपने' का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की संस्कार रंग टोली व कालदरपन द्वारा दिल्ली व देहरादून में सफल नाट्य मंचन हो चुका है। 'ननकू नहीं रहा' कहानी पर आधारित नाटक का मंचन खुर्जा (बुलंदशहर) में किया जा चुका है। लोक साहित्य में गहरे लगाव के चलते कुछ लोककथाओं पर आधारित नाटकों का लेखन व मंचन भी आपके खाते में दर्ज है।


अभी तक आपके ४ उपन्यास, ९ कहानी संग्रह, १ लघुकथा संग्रह, ३ नाटक, ४ कविता संग्रह, १ बाल एकांकी संग्रह, १ बाल नाटक संग्रह, २ बाल कहानी संग्रह, ५ लोककथा संग्रह, १ बाल कविता संग्रह व रवांल्टी कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।


अनेक विश्वविद्यालयों में आपके कथा साहित्य पर लघु शोध एवं शोध (पी. एच. डी.) हो चुकी है। डॉ. अंजू सेमवाल का शोध प्रबंध 'महाबीर रवांल्टा के कथा साहित्य का तात्विक विवेचन' वर्ष २०११ में प्रकाशित हो चुका है तथा शोधार्थी अंजना वशिष्ठ (खुर्जा) भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में चयन हुआ था। ४३ वर्ष की आयु में आपके साहित्य पर पी. एच. डी. हो चुकी थी।


सैनिक एवं उनका परिवेश विषय पर अखिल भारतीय कहानी लेखन प्रतियोगिता में 'अवरोहण' कहानी के लिए कानपुर (उत्तर प्रदेश) में परमवीर चक्र विजेता ले0 कर्नल धन सिंह थापा, सुप्रसिद्ध उदघोषक पदमश्री जसदेव सिंह एवं एयर मार्शल आर. सी. वाजपेयी के हाथों पहली बार मिले सम्मान के बाद स्व. वेद अग्रवाल स्मृति सम्मान (मेरठ), सेठ गोविन्द दास सम्मान (जबलपुर), डॉ. बाल शौरि रेड्डी सम्मान (उज्जैन), साहित्य गौरव सम्मान (रांची), यमुना घाटी का प्रतिष्ठित तिलाड़ी सम्मान (बड़कोट), जनधारा सम्मान (नैनबाग), अम्बिका प्रसाद दिव्या रजत अलंकरण (भोपाल), उत्तराखंड शोध संस्थान - रजत जयंती सम्मान (हल्द्वानी), कॉ. कमलराम नौटियाल स्मृति सम्मान (उत्तरकाशी), तुलसी साहित्य सम्मान (भोपाल), उत्तराखंड फिल्म, टेलीविसिओं एवं रेडियो एसोसिएशन सम्मान, उत्तराखंड उदय सम्मान (देहरादून), युवा लघु कथाकार सम्मान (दिल्ली) के साथ उत्तराखंड बाल साहित्य संस्थान (अल्मोड़ा), बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र (भोपाल), उत्तराखंड बाल कल्याण साहित्य संस्थान (खटीमा) के बाल साहित्य सम्मानों के अलावा देशभर के अर्धशताधिक सम्मान आपको मिल चुके हैं। अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टिट्यूट द्वारा वर्ष २००२ में 'द कंटेम्प्रेरी हूज हू ' के लिए भी इनका चुका है। रवाईं लोक महोत्सव (नौ गांव) में बर्फ़िया लाल जुवांठा सम्मान - २०१८ पिछले दिनों आपको सुदीर्घ साहित्य साधना लिए मा. सभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के हाथों दिया गया।


महाबीर रवांल्टा की कृतियां -


पगडंडियों के सहारे, एक और लड़ाई लड़, आपघर या बबपघर, अपना अपना आकाश (उपन्यास), समय नहीं ठहरता, उसके न होने का दर्द , टुकड़ा टुकड़ा यथार्थ, तेग सिंह रहा, जहर का संघात, भंडारी उदास क्यों थे ?, त्याग के बदले, प्रेम संबंधों की कहानियां, महाबीर रवांल्टा की प्रतिनिधि कहानियां (कहानी संग्रह), सफ़ेद घोड़े का सवार, खुले आकाश का सपना, मौरसदार लड़ता है (नाटक) आकाश तुम्हारा होगा, सपनों के साथ चेहरे, तुम कहाँ को चल पड़े, घर छोड़ भागती लड़कियां (कविता संग्रह), त्रिशंकु (लघुकथा संग्रह), ननकू नहीं रहा (बाल एकांकी संग्रह), विनय का वादा, अनोखा जन्मदिन (बाल कहानी संग्रह), सफलता का शिखर (बाल कविता संग्रह), उत्तराखंड की लोक कथाएं (भाग १ व २), दैत्य और पांच बहनें, ढेला और पत्ता, उत्तराखंड की लोककथाएं (लोककथा संग्रह), पोखू का घमंड (लोककथाओं पर आधारित बाल नाटक), गैणी जण आमार सुईन (आसमान जैसे हमारे सपने)- रवांल्टा कविता संग्रह)।


एक प्रेमकथा का अंत (नाटक), कैसे कैसे लोग (कहानी संग्रह), चेहरे (लघुकथा संग्रह), तीन पौराणिक नाटक, स्वतंत्रता आंदोलन कहानी पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य।


महाबीर रवांल्टा कहते हैं कि साहित्य, संस्कृति, लोकभाषा हमारी पहचान है। पहाड़ की विकटता को मैंने करीब से जाना है। इन विकटताओं ने ही मेरा झुकाव सृजनात्मक पहल की तरफ मोड़ा है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के चित्रकार वी. मोहन नेगी ने महाबीर रवांल्टा की हिंदी कविताओं के साथ ही उनकी रवांल्टी कविताओं के पोस्टर बनाकर उन्हें अनेक स्थानों पर प्रदर्शित किया और रवांल्टी कविता को पहचान दिलाने में मददगार साबित हुए।