सामुदायिक रेडियों बना संचार और रोजगार का साधन

||सामुदायिक रेडियों बना संचार और रोजगार का साधन||


2001 में स्थापित यह सम्भवत देश का पहला कम्युनिटी रेडियो स्टेशन है जो कम्युनिटी के लिए कम्युनिटी द्वारा चलाया जाता है।


यहां गढ़वाली में प्रसारित होने वाले ऐसे कई कार्यक्रम है जो श्रोताओं में बेहद ही लोकप्रिय है। यह स्टेशन कृषि बागवानी से लेकर उत्तराखंड के सांस्कृतिक सरोकारों के लिए समर्पित है।
आल इंडिया रेडियो दिल्ली सहित कई शहरों के रेडियो स्टेशनों की भव्य इमारतों के देखने के बाद जब आप चम्बा स्थित हेवंलवाणी केन्द्र के दर्शन करोगे तो आप दांतों तले उंगली दबाए बिना नहीं रह सकते।


यहां के रेडियो स्टेशन का टावर लोहे के साधारण पाइपों द्वारा बनाया गया है, तथा बेहद ही स्तरीय कार्यक्रम देने वाला रेडियो स्टूडियो अण्डों की ट्रे तथा स्थानीय लकड़ी व गत्ते जैसे साधारण चीजों से तैयार किया गया है।


स्टेशन के निदेशक हेवंलघाटी के जड़धार गांव निवासी राजेन्द्र सिंह नेगी बताते हैं, कि इस कम्युनिटी रेडियो में श्रोता ही प्रस्तुतकर्ता भी हैं। रेडियो को स्थानीय स्वयंसेवक मिलकर चलाते हैं जिनका आने और जाने का क्रम बदस्तूर जारी रहता है। हेंवलवाणी रेडियो से निकले युवा आज देश के प्रतिष्ठित मिडिया समूहों में सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।


सामदायिक रेडियो हेंवलवाणी का संचालन - सामुदायिक रेडियो हेंवलवाणी देश एक मात्र ऐसा रेडियो स्टेशन है जो पूरी तरह स्थानीय संसाधनों से समुदाय के लोगों द्वारा संचालित हो रहा है। 2001 से आज तक 197 लोग हेंवलवाणी में एक स्वयंसेवी के तौर पर कार्य कर चके हंै। सामुदायिक रेडियो की असल परिभाषा भी यही है। सामुदायिक रेडियो यानि समुदाय का रेडियो, समुदाय के द्वारा, समुदाय के लिए, समुदाय का हर वर्ग रेडियो के संचालन में किसी ना किसी रूप में सहयोगी है पूरे देश में आज भी हेंवलवाणी के उदाहरण दिये जा रहे हंै। 


सामुदायिक रेडियो हेंवलवाणी में स्वः तकनीक को तरजीह-सामुदायिक रेडियो हेंवलवाणी ना तो कोई बड़ा नामी गिरामी संस्थान संचालित कर रहा है और ना ही किसी बड़ी फंण्डिंग एजेंसी का वरदहस्त प्राप्त है। पिछले डेढ दशक के सफर में हेंवलवाणी ने आर्थिक कमजोरी के कारण कई सफल प्रयोग किये हेंवलवाणी के पास देश में निर्मित सबसे सस्ता रेडियो ट्रांसमीटर है जो कि यूनेस्को से डोनेसन के रूप में प्राप्त हुआ है। ट्रांसमिशन के लिए जहां 30 मीटर के टावर की आवश्यकता होती है जिसकी कीमत 2 लाख से 5 लाख तक है हेंवलवाणी ने स्थानीय लोगों की मदद से दो बीस फिट के पानी के पाईप से एंटीना टावर तैयार किया है जो पिछले तीन वर्षों से बगैर किसी व्यवधान के काम कर रहा है।


यही नहीं हेंवलावाणी में अंडे की ट्रे व फॅाम निर्मित बेहद सस्ता रिकार्डिंग व लाईव प्रसारण स्टूडियो बनाया है जहां आजकल इसके लिए 5 से 12 लाख रूपये तक खर्च किये जा रहे हैं वहीं हेंवलवाणी के ये स्टूडियो मात्र 55 हजार रूपये में बना है इसमें लाईव स्टूडियो तो मोबाइल स्टूडियो की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है यानि इस स्टूडियो को दूसरी जगह ले जाकर फिट किया जा सकता है। इन्होंने सिद्ध किया कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है इनके पास पैसा नहीं पर हौसला है। इसलिए आज भी वे 14 बर्षों से अपने सफर पर निरन्तर चल रहे हैं। 


हेंवलवाणी कैसे लोगों के जीवन में बदलाव ला रहा है।
हेंवलवाणी का प्रसारण 3 मार्च 2012 से एफएम पर प्रारम्भ हुआ। शुरूआती समय से ही बहुत लोग जुड़े व बेहद रूची दिखाने लगे क्योंकि हेंवलवाणी गढ़वाली भाषा का पहला व एकमात्र चैनल उत्तराखण्ड में था। कुछ बहुत पुराने लोग जो हेंवलवाणी के प्रसारण का इंतजार 2003 से कर रहे थे उन्होंने आल इंडिया रेडियो व अखबारों से हेंवलवाणी के बारे में सुना था प्रसारण सुनने के बाद बेहद खुश हुये उनमें एक नाम है चंदन सिंह पंवार ग्राम कफाली विकास खण्ड जाखड़ीधार के वह हेंवलवाणी के पहले काल करने वाले श्रोता है और आज तक लगातार सुझाव व प्रतिक्रियायें देते हैं। 


चौदह साल पहले जब कुछ युवाओं ने सामुदायिक रेडियो हेंवलवाणी नाम से एक आंदोलन की शुरूआत की थी तब भारत में सामुदायिक रेडियो संचालन की कोई नीति नहीं थी। पड़ोसी देश नेपाल में इस तरह के रेडियो स्टेशन काफी सफलता पूर्वक चल रहे थे तथा समाज में परिवर्तन ला रहे थे। भारत में भी इस तरह के सामुदायिक रेडियो स्टेशन संचालित हों इसके लिए कुछ सामाजिक संगठन प्रयासरत थे जिसमें डेक्कन डेबलपमेंट सोसाईटी, कच्छ महिला विकास संगठन, वायसेस, द हिमालया ट्रस्ट प्रमुख थे।


इस प्रयास को तेजी से आगे बढाया हेंवलाघाटी के सामाजिक सरोकारों से जुडे़ सृजना पंवार, अर्चना रतूड़ी, समीरा, दिनपाल, मालती, रधुभाई जड़धारी और राजेंद्र सिंह नेगी ने। इस आंदोलन का शुरूआती सहयोगी बना द् हिमालया ट्रस्ट, देश में पालिसी न होने से सामुदायिक रेडियो का संचालन करना संभव नहीं था  इन्होंने समुदाय के  बीच जाकर चर्चायंे की बैठकंे की। लोगों को बताया कि यदि इस तरह के रेडियो स्टेशन को चलाने के लिए भारत सरकार मान्यता देती है तो इस तरह के लाभ हो सकते है। विभिन्न गांवों में इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया तथा इसे बार बार सूचना प्रसारण मंत्रालय को भेजा। भारत में सामुदायिक रेडियो हेंवलवाणी पहला ऐसा रेडियो गु्रप था जो पूरी तरह रेडियो के सामुदायिक रेडियो के नाम से 2001 से सामुदायिक रेडियो आंदोलन को चला रहा था।


हेंवलवाणी ने गांव गांव जाकर जो रेडियो कार्यक्रम निर्मित किये वह आकाशवाणी नजीबाबाद से प्रसारित किये गये कुछ समय बाद जब हेंवलवाणी का प्रसारण हुआ तो स्थानीय क्षेत्र तक ही  नहीं देश विदेश तक हेंवलवाणी की चर्चा होने लगी इसके बाद हेंवलवाणी  के आंदोलन की चर्चा कई संगठनों में भी हुई सन् 2004 में हेंवलवाणी को वर्डस्पेस सेटेलाईट रेडियो ने नेटवर्क से संपर्क किया सामाजिक उत्थान के लिए चलाये जा रहेे एक चैनल एशिया डिवेलपमेंट पर हेंवलवाणी द्वारा निर्मित कार्यक्रमों को निशुल्क प्रसारित करने के लिए निमंत्रण दिया। यह रेडियो सेटेलाईट से चलने वाला रेडियो सिस्टम है जिसमें हेंवलवाणी के कार्यक्रम पूरी दुुनिया में इस विशेष रेडियो के माध्यम से सुने जा सकते हंै।


सामुदायिक रेडियो हेंवलवाणी द्वारा सर्वप्रथम भारत में सामुदायिक रेडियो के नाम से सामुदायिक रेडियो कार्यक्रमों का प्रसारण वर्ड स्पेस सेटेलाईट रेडियो पर किया गया। हेंवलवाणी को आडियोसिंक मीडिया कंबाईन ने 20 विशेष रेडियो सेट हेंवलवाणी स्रोता गु्रपों को सुनने के लिए दिये थे जिससे वे अपने गांव में प्रसारण सुनते थे। देश मेें इस तरह के प्रयासों व प्रभावों को देखते हुये भारत सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में सामुदायिक रेडियो चलाने की नीति लागू कर दी लेकिन यह असल में सामुदायिक रेडियो नहीं कैंपस रेडियो थे जो आज भी हंै। आम ग्रामीण लोगों के हाथ में अपनी बात कहने व खुद रेडियो स्टेशन संचालित करने का अवसर अभी भी नहीं था फिर 2006 में भारत सरकार ने रजिस्टर्ड एनजीओ या सामजिक संगठनों को इस तरह के रेडियो स्टेशन को संचालित करने की नीति को पारित कर दिया। हेंवलवाणी के कार्यक्रम 2004 से लेकर 2009 तक वर्ड स्पेस सेटेलाईट पर प्रसारण करता रहा। जिसके बाद हेंवलवाणी ने 2007 में सामुदायिक रेडियो स्टेशन संचालन के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार को आवेदन किया। जिसके बाद 2012 में हेंवलवाणी को एफ0 एम0 बैण्ड पर प्रसारण का लाइसेंस प्राप्त हुआ। 


सामुदायिक रेडियो हेंवलवाणी के रेडियो कार्यक्रम-युवा मंच, हमारा गौं, छंुई खाण कमाण की, स्वाद जू रौ याद, वक्त हमारू छ, गीत गंगा, एक मुलाकात, नांै पर विकास का, कथा कहाणी, मुद्दा, खुशियों का आंगन, कु छ जिम्मवार, सीधी बात, विज्ञान पत्रिका, खेती किसाणी, स्थानीय ज्ञान इनामी सवाल, गली गली सिम सिम, गढ़गीत, औखाण पखाण, बुझणी, ग्राम दर्शन, बाल जगत, हैलो हेंवलवाणी जैसे पहाड़ की माटी से जुड़े रेडियो कार्यक्रम को हर रोज प्रसारित किया जाता है। हेंवलवाणी का उद्देश्य है गढ़वाली , कुमाऊंनी व जौनसारी भाषा को प्राथमिकता से बढावा देना है।  


स्रोताओं का जुड़ाव- हेंवलवाणी टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी, देहरादून, व हरिद्वार के एक बडे क्षेत्र में हेंवलवाणी का प्रसारण सुनाई देता है लगभग 170000  लोग हेंवलवाणी के श्रोता है इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है अब तक प्राप्त हुये 123000 मोबाइल मैसेज, 70000 से अधिक लाईव फोन काल, एक लाख से अधिक काल रिकार्ड, व सैकड़ांे पत्र अब तक हेंवलवाणी को प्राप्त हो चुके हंै। 


हेंवलवाणी को पुरस्कार व सम्मान-2007 में भारत के पूर्ण राष्ट्रपति डा0 अब्दुल कलाम द्वारा सम्मान, पूसा इंस्टीट्यूट नई दिल्ली में बेस्ट कम्यूनिटी मीडिया सर्विसेज के लिए सम्मानित किया गया। विश्व एड्स दिवस पर बीबीसी वल्र्ड ट्रस्ट सर्विस की प्रतियोगिता में आॅडियो जागरूकता पीएसए में विश्व में दूसरा स्थान प्राप्त किया जिसके लिए सम्मान मिला।


2005 व 2012 में साउथ एशिया का प्रतिष्ठित पुरस्कार मथंन आवार्ड हेंवलवाणी को मिला। 2005 में सामुदायिक रेडियो हेंवलवाणी ने वल्र्ड समिट 2005 टूयूनेशिया में भारत में सामुदायिक रेडियो के महत्व पर भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा संयुक्त राष्ट्र संघ तक सामुदायिक रेडियो की बात पहंुचाई।