सपनों की राह में चनौतियों का अंबार

||सपनों की राह में चनौतियों का अंबार||


उत्तराखड म विकास का तमाम संभावनाएं मौजद हैं लेकिन चनौतियों ने हर तरफ से रास्ता रोका हुआ है। ये चुनौतियां आर्थिक भी हैं और परिस्थितिजन्य भी। सरकार जो तस्वीर दिखा रही है वह उत्साहजनक है लेकिन आम लोग जिस तस्वीर का हिस्सा है वह नाउम्मीदी का जीता-जागता उदाहरण है।


बनियादी ढांचे का सवाल सीधे तौर पर आर्थिक स्थिति से जुड़ा हआ हैप्रदेश में आठ साल में औसत नौ प्रतिशत सालाना विकास दर रही जबकि राष्टीय विकास दर महज सात प्रतिशत था।


विशेष श्रेणी के अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय भी अधिक है। इन अच्छी बातों के साथ कछ चिंताएं और उम्मीदें भी हैं। प्रदेश गठन के वक्त 2642 करोड़ का कर्ज भी हिस्से में आया, जबकि कर्ज की बजाय आर्थिक मदद की जरूरत थी। अलग राज्य बनने के वक्त बनियादी ढाच के विकास के लिए कोई मदद नहीं मिली। उत्तराखंड आपदाओं से घिरा राज्य है। यहां भूकंप, भस्खलन, बाढ़, बादल फटना और वनाग्नि का ज्यादा खतरा हैइस वक्त बुनियादी ढांचे को उच्चीकृत करने के लिए 1966 करोड़ की जरूरत है। उत्तराखंड को दो तिहाई भूमि पर फॉरेस्ट को बचाए रखने के लिए भी मदद चाहिए।


भी मदद चाहिए। जब भी बुनियादी ढांचे की बात करते हैं तो सरकारी आंकड़ों से सुखद तस्वीर उभतरी है। बीते साल तक प्रदेश में साढ़े चार हजार किमी सड़कों का निर्माण या पुननिर्माण हुआ। इस वर्ष का टारगेट साढ़े तीन हजार किमी का है। इस साल करीब एक हजार करोड़ सड़कों पर खर्च होने हैं लेकिन 16 हजार से ज्यादा गांवों वाले उत्तराखंड के लिए यह राशि अपर्याप्त है। सड़कों के सुधार के लिए एशियन बैंक से करीब 2500 करोड़ का लोन लिया गया। दिल्ली-दून मार्ग को चार लेन बनाने की तैयारी हो रही है। हिंडन एक्सप्रेस-वे से उत्तराखंड भी जुड़ने जा रहा है। यह मार्ग आठ लेन का होगा।


देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार के लिए केंद्र ने 200 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। महाकुंभ के लिए भी करीब 300 करोड़ का बजट रखा गया है। इस 500 करोड़ की राशि में वास्तव में तीनों शहरों का कायाकल्प हो सकता है बत” सरकार के पास उम्मीद जगाने वाले योजना हो।। शहरों के मामले में सरकार की परीक्षा जेएनएनयूआरएम के तहत मिलने वाले करीब ढाई हजार करोड़ के खर्च को लेकर भी होगी। दर्जनों तरह की दिक्कतों के बीच उत्त राखंड आवास की बड़ी समस्या से रूबरू है। सरकार ने बीते एक साल में गरीबों के लिए 10 हजार से ज्यादा आवासों का निर्माण कराया लेकिन जरूरत इसके मुकाबले करीब दस गुनी है। शहरों में निम्न आर्थिक स्थिति के लोग उस वक्त तक सिर पर छत नहीं पा सकेंगे जब तक कि सरकार मदद न करे। भाजपा सरकार के दौर में भमि की भरोसे चलती हैप्रदेश में हादसे अब भी बड़ी चनौती है। बीते साल 300 से ज्यादा को जान से हाथ धोना पड़ा और करीब एक हजार लोग जख्मो हुए। इस स्थिति पर गर्वनर भी चिंता जता चुके हैं लेकिन सरकार अभी अपनी भूमिका को महज दुर्घटना के बाद मुआवजा बांटने तक सीमित किए हुए हैं। स्थितियां इस साल भी खशगवार नहीं। इस साल अभी तक के साढ़े चार महीने में 89 लोग मारे जा चुके हैं और 387 घायल हुए हैं।


पहाड़ में बुनियादी ढांचे के मामले में एक अहम सवाल यह भी है कि जब जम्मू-कश्मीर में ट्रेन दौड़ सकती है तो उत्तरराखंड में क्यों नहीं ? लद्दाख सिक्किम के लिए सरकार योजना बना रही है और यहां तक कि नेपाल को भी ट्रेन सेवाओं के विस्तार में मदद की पेशकश की गई लेकिन उत्तराखंड को भुला दिया है। प्रदेश में रेलसंपकं बेहद सीमित है। बीते आठ साल में एक भी नई लाइन नहीं बनी। लोगों की लगातार मांग के बावजूद ऋषिकेशकर्णप्रयाग और टनकपुर-बागेश्वर रेललाइन प्राथमिकता क्यों नहीं बन पा रही ? लोकसभा चुनाव ने इस चर्चा को नए सिरे से उठाया है और नए सांसद दावा भी कर रहे हैं कि अब पहाड़ में ट्रेन जरूर आएगी।


सरकार लागातार पब्लिाक पाइ ठोट पाटनरशिप (पीपीपी) की बात कर रही है लेकिन संबंधित प्रोजेक्ट्स पर अंगुली भी उठ रही है क्योंकि लोग अधिक पारदर्शिता की उम्मीद कर रहे हैं। पीपीपी मोड में इस वक्त 1500 करोड़ से ज्यादा की परियोजनाएं प्रस्ताव से लेकर क्रियान्वयन के स्तर तक चल रही हैंपीपीपी मोड की वायबिलिटी गैप फंडिंग योजना का लाभ महज कुछ क्षेत्रों तक सीमित न रहे बल्कि इसके तहत उन्हीं को आर्थिक मदद दी जाए जो वास्तव में पहाड़ में अवस्थापना विकास के लिए तैयार हैं। सरकार ने एक अच्छा काम यह किया है कि वायबिलिटी गैप फंडिंग योजना को सड़क, ऊर्जा, शहरी सुविधाएं, पर्यटन और अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर के साथ-साथ और व्यापक कर दिया है। अब, इसमें शिक्षा, चिकित्सा, खेलकूद, युवा सुविधाएं, कलासंस्कृति, श्रम-रोजगार, कृषि, वानिकी, सिंचाई एवं जल संरक्षण, शहरी एवं ग्रामीण विकास, महिला एवं बाल विकास और पशुपालन को भी शामिल कर लिया गया हैइस अच्छे निर्णय के साथ चिंताजनक पहलू यह है कि सरकार की इस पहल को नाममात्र का रेस्पांस मिला है। यही बात पहाड़ के लिए परेशानी खडी करती है।