सौर और सूक्ष्म ऊर्जा योजनाओं पर सरकार का जोर

||सौर और सूक्ष्म ऊर्जा योजनाओं पर सरकार का जोर||


सरकारी भवनों पर सोलर प्लांट लगाने की स्थिति में केंद्र सरकार 90 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है। इसके अलावा निजी भवनों के लिए 60 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जा रही है।



उतराखण्ड हिमालय में बहते पानी पर पन चक्कियां (घराट) चलती है। हालांकि इनकी संख्या अब बहुत ही कम हो गई है। फिर भी इस बहते पानी को आज के दौर तक माईक्रोहाईडिल के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इनसे बिजली तो पैदा होती है, पर सूक्ष्म स्तर पर ही इसका उपयोग हो रहा है। जिससे राज्य में अतिसूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाओं का विकास नहीं हो पा रहा है। वैज्ञानिको का कहना है कि यदि उतराखण्ड में मौजूदा नहरो से माईक्राहाईडिल विकसित किये जायें तो इनसे लगभग 36 हजार मेगावाट की बिजली पैदा होने की संभावना है। वे यह भी बताते हैं कि राज्य को लगभग 18 हजार मेगावाट बिजली की ही आवश्यकता है। यही नहीं सौर ऊर्जा को इस राज्य में विकसित किया जाये तो इसका आंकड़ा दुगुना हो जायेगा।


बिते दिनों अस्थाई राजधानी देहरादून में सूक्ष्म एवं अति लघु जल विद्युत प्रोद्योगिकी विषय पर एक कार्यशाला हुई। इस दौरान विशेषज्ञों का मानना था कि सूक्ष्म एवं अति लघु जल विद्युत परियोजना पहाड़ से पलायन रोकने में अहम भूमिका निभा सकती है। इसके साथ ही प्रदेश का बिजली संकट भी कम हो सकता है। और तो और इस तरह की छोटी पन बिजली परियोजनाओं से पर्यावरण को कोई नुकसान भी नहीं होगा और स्थानीय लोगों को रोजगार भी प्राप्त होगा। यूनिडो भारत सरकार के सलाहकार डॉ. एनपी सिंह का कहना है कि नहरों से विद्युत उत्पादन करने की विभिन्न देशों में जो मौजूदा तकनीकी है, उत्तराखंड में इसकी अपार संभावनाएं हैं। इधर अपर सचिव वैकल्पिक ऊर्जा टीकम सिंह पंवार बताते हैं कि राज्य सरकार ग्राम पंचायतों में पन बिजली की सूक्ष्म परियोजनाऐं विकसित कर रही है। जिसके लिए पंचायत स्तर पर राज्य के ऊर्जा निगम, जल विद्युत निगम और उरेडा से विशेष सहयोग लिया जा रहा है। इस तरह से नहरो और बहते पानी का इस्तेमाल बिलजी बनाने के लिए किया जायेगा। और इन योजनाओं से ग्राम पंचायत की आर्थिकी भी सुधरेगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पहाड़ से पलायन भी रुकेगा। 


यहां जानकारो का यह भी तर्क है कि उतराखण्ड हिमालय में सौर ऊर्जा को भी विद्युत उत्पादन के लिए विकसित किया जा सकता है। उनका सुझाव है कि यदि पहाड़ में सौर ऊर्जा व बहते पानी एवं नहरो को विद्युत के लिए इस्तेमाल किया जाये तो राज्य में आपदा की घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है। इसलिए कि मौजूदा जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण से पहाड़ में आपदा की घटनाऐं सर्वाधिक बढी है।


उत्तराखंड में सोलर एनर्जी की संभावनाएं
फिरंगियों के जमाने में जब फिरंगी मेहमान सर्दीयों में पहाड़ पर आते थे तो वे इस पहाड़ के मुरीद इसलिए भी हुए थे कि यहां की धूप बहुत ही स्वाथ्यवर्द्धक है। इसलिए उन दिनों लोगो ने पहाड़ को ''घामतापे पर्यटन'' का केन्द्र कहा था। जैसे जैसे तकनीकी का विकास हुआ तो इसी पहाड़ में साधन सम्पन्न लोगो ने व्यक्तिगत तौर पर सौर ऊर्जा को विधुत के रूप में इस्तेमाल किया। मौजूदा समय में राज्य के एक दर्जन गांव ऐसे हैं जहां पर विद्युत के लिए सौर ऊर्जा का व्यवस्थित इस्तेमाल होता है। दूसरी तरफ राज्य के ऊंचाई पर स्थित सैकड़ो गांव आज भी विद्युत के लिए तरस रहे है। इन गांवों में विद्युत लाईने इसलिए नहीं जा पा रही है कि गांवो की सीमाओं पर संरक्षित वनों का होना विद्युत लाईन बिछाने में कानूनन अड़चन पैदा कर रही है। इसलिए ऐसे गांवो को सौर ऊर्जा से अच्छादित किया जाना लाजमी कहा जायेगा।


काबिलेगौर हो कि यहां केंद्र के संयुक्त सचिव तरुण कपूर ने बताया कि सोलर एनर्जी को लेकर उत्तराखंड में अपार संभावनाएं हैं। वे बताते हैं कि पहले सोलर एनर्जी से केवल दो मेगावाट तक की बिजली का उत्पादन किया जा सकता था, जबकि अब 1700 मेगावाट तक के सोलर प्लांट लगाए जा सकते हैं। इसलिए सोलर एनर्जी को इस प्रदेश में प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र सरकार पूरी तरह तैयार है। उन्होंने जानकारी दी कि सरकारी भवनों पर सोलर प्लांट लगाने की स्थिति में केंद्र सरकार 90 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है। इसके अलावा निजी भवनों के लिए 60 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जा रही है। उन्होंने अन्य उपकरणों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। लोगों का मानना है कि वर्तमान में ऊर्जा की जरूरते बढ रही है इसलिए सरकार को ऊर्जा संरक्षण पर भी जोर देना चाहिये। अच्छा हो कि वर्तमान के मौसम परिवर्तन के दौर में हर व्यक्ति को दैनिक जीवन में वैकल्पिक ऊर्जा विकल्पों को अपनाने के साथ साथ ऊर्जा बचत करने के तौर तरीके भी सीखने होंगे। पूर्व शहरी विकास मंत्री प्रीतम सिंह पंवार का मानना है कि कम से कम नगर निगम और नगर पालिकाओं में स्ट्रीट लाइटें व एलईडी सौर ऊर्जा वाली ही लगानी चाहिए, नए भवनों पर भी सोलर एनर्जी लगनी चाहिए। इसलिए मौजूदा दौर में बिल्डिंग बायलॉज में परिवर्तन की नितान्त आवश्यकताऐं हैं। वैसे भी राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून को सोलर सिटी के रूप में चयन किया गया है।


वैकल्पिक ऊर्जा की ओर सरकारी कदम 
बता दें कि वर्ष 2013 में उतराखण्ड सरकार ने सभी सरकारी और अर्द्धसरकारी भवनों में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अधिक से अधिक करने के निर्देश दिये थे। इसके लिए बाकायदा एक गाईड लाईन भी तय कर दी गई थी। शासन की ओर से तत्काल जारी शासनादेश के अनुसार राज्य के सभी सरकारी, अर्द्धसरकारी, अस्पताल, नर्सिंग होम, होटल, गेस्ट हाउस तथा 500 वर्ग गज से अधिक साइज के निजी भवनों को गर्म पानी के लिए सोलर वाटर हीटर संयंत्र लगाना अनिवार्य किया गया था। साथ ही सीएफ एल, एलईडी बल्ब और लाइटों का उपयोग भी अनिवार्य किया गया था। साथ ही यह भी हिदायत दी गई कि जिन संस्थाओं द्वारा निर्धारित अवधि तक अधिसूचना के अनुसार उक्त संयंत्र नहीं लगाए जाएंगे, ऊर्जा निगम उन संस्थाओं का बिजली कनेक्शन काट सकता है। मगर 2013 से लेकर अब तक छः वर्षो में सरकार के इस फरमान ने काई खास असर नहीं दिखाया है। कह सकते हैं कि कुल में से लगभग 10 प्रतिशत ही सौर ऊर्जा का यह कार्य हो पाया है, जो कोई खास उदाहरण नहीं बन पाया है। इधर सरकार ने सोलर बिजली की नई दरें भी तय कर दी है। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग ने सोलर बिजली की नई दरों में अधिकतम दर 8.75 रुपये प्रति यूनिट तय की है। ऊर्जा निगम टेंडर के जरिये सोलर बिजली खरीद सकता है। न्यूनतम रेट डालने वाले से ऊर्जा निगम बिजली खरीदेगा। खास बात यह है कि अब कोई भी व्यक्ति अपने छत पर सोलर प्लांट लगाकर उक्त दर पर बिजली ऊर्जा निगम को बेच सकता है।

अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का इस्तेमाल हो। इसके लिए उत्तर प्रदेश, केरल, मेघालय, हिमाचल, उतराखण्ड, नागालैंड जैसे प्रदेश योजनाऐं बना रहे है। इन प्रदेशो ने प्रयोग के तौर पर सभी सरकारी व गैर सरकारी ढांचो में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना अनिवार्य कर दिया है। इस बात की पुष्टी अपर सचिव सिंचाई किशननाथ, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार के सलाहकार बीके भट्ट, उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास अभिरकरण (उरेडा) के मुख्य परियोजना अधिकारी एके त्यागी, आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर अरुण कुमार, उरेडा, यूनिडो, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार के विशेषज्ञों ने की है।