तू बजाया बासुरी

यह उतराखण्ड में यमुना नदी के आर-पार बसे समुदाय जौनसार, रवांई और जौनपुरी भाषा के लोक गीत है। जिसे पाठको तक पंहुचाने के लिए गीत और भावार्थ सहित हिन्दी रूपान्तर किया गया है।


||तू बजाया बासुरी||


धारान्दी फुलों दुदले घासोन्दी रे गाने, धारान्दी फुलों ........2
ओ तेई लाई मौडा टुडुऐ धनोडे रे छाने ऐ,
ओ नई लाई मौडा टुडुऐ धनोडे रे छाने........2
ओ वातो लान्दा भानसिंगा साचीऐं रे साचे 
ई लेखा खाई बाकरी ऐबे खाणी माच्छी.......2
ई मोडे रे मोडाऐ खेलो रे मोडाऐ, मोडे रे मोडाऐ खेलो रे मोडाए .....2
ओ आपु बैठा टुडुऐ बुँरासों रे डायें, ओ आपु बैठा टुडुऐ बुँरासों रे शांऐ .....2
ओर सारो राखो धनीवडो गावेलीव रे छाएं, ओ सारो राखों  ...........2.
मोडे रे मोडाईऐ खेलो रे मोडाऐ, ओ मोडे रे मोडाइऐ खेलो रे मोडाए  .....2


हिन्दी रूपान्तर
ऊंचे धारा पहाड़ो में तूनू मैने जाना -2
तू बजाया बासुरी मै काटूगी घासा, ऊंचे धारा पहाड़ो -2
खुद बैठा छायां में हम निभाऐं काजा, ऊंचे धारा पहाड़ो -2
बुरांश फूल और उसकी संग संग निभऐं, ऊंचे धारा पहाड़ो -2
तेरी बातुनी के संग कर दिया सारा काज, ऊंचे धारा पहाड़ो -2
नाची नाची की तूने बदल दी काया, ऊंचे धारा पहाड़ो -2


भावार्थ
इस लोक गीत को जौनसार-बावर जनजातिय क्षेत्र में जैंता नृत्य कहते है। गीत का सारांश पशुचारको की दिनचर्या है। पशुचारक जब अपने पशुओं के संग जंगल जाते हैं तो यह गीत महिला व पुरूष के हास-परिहास पर आधारित है। एक व्यक्ति जो इन सबमें बहुत ही स्र्माट, चालाक होता है, वह सभी से अपेक्षा करता है कि उसके बदले का काम वे कर दे, वह मौज करें, हंसी मजाक करे, मंनोरंजन करें व कुछ समय अपनी महिला मित्रो के संग समय गंवायें। इस तरह से यह गीत बहुत ही मनोरजंक है। जिसे हर त्यौहार में जैंता नृत्य के रूप में गाया जाता है। इस नृत्य में लोग सर्वाधिक मनोरजन करते हैं।