उत्तराखण्ड: गंगा की जन्मस्थली



||उत्तराखण्ड: गंगा की जन्मस्थली||



स्वर्ग से अवतरित हुई मां गंगा ने जब पृथ्वीलोक का प्रथम स्पर्श किया, तो वह स्थान भी स्वर्ग हो गया। धरती का यह नया स्वर्ग उत्तराखण्ड कहलाया। देवतात्माओं की यह भूमि कालांतर में ऋषि-मुनियों की तपस्थली बनी। इसीलिए देवभूमि और तपोभूमि का यह भाव इसके कण-कण में विद्यमान है।


उत्तराखण्ड के हिमनदों से जन्म लेती जलधारायें गंगा के प्राण हैं। यह जलशिरायें उत्तराखण्ड की धरती को समृद्ध रूप देती हैं। उत्तराखण्ड में गंगा की सात धाराओं को कई अन्य छोटी-छोटी नदियां/ गाड़-गदेरों का सानिध्य स्थान-स्थान पर मिला और देवप्रयाग में मिली गंगा को सम्पूर्णता। यद्यपि जलधाराओं के मिलन का क्रम आगे भी जारी रहा। हरिद्वार में कुम्भ के अमृत ने इसे जीवनदायिनी के साथ-साथ मोक्षदायिनी भी बना दिया।


गंगा : जीवनदायिनी


जीवनदायिनी गंगा, कल-कल निनाद करती जीव जगत के कल्याण हेतु आज भी सतत् प्रवाहित हो रही है। इस धरती को शस्य-श्यामला बनाकर असंख्य जीवों का भरण-पोषण करने तथा ऊर्जा प्रदान करने वाली यह सलिल-गंगा माँ है। धन्य है यह धरती जहां गंगा अवतरित हुई। हिमालय के हिमनदों से रिस-रिस कर जो जलधाराएं नदी का रूप लेकर अनेक तीर्थों को धन्य करती हुई आगे बढ़ती हैं, वे अतिपूजनीय हैं। गंगा सहित इन नदियों में जीवनदायिनी तत्त्व समाहित हैं। हमारी संस्कृति का प्रवाह नदियों की धाराओं के साथ ही निरन्तर रहा है। नदियों ने ही हमारे तटीय नगरों को समृद्धि प्रदान की है। विश्व के प्राचीन नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए हैं। यदि इन्हें तीर्थ की महिमा मिली है, तो इसका श्रेय नदियों को ही है। गंगा के कारण बनारस, हरिद्वार, ऋषिकेश आदि स्थान महत्वपूर्ण हो गए हैं। प्रयागराज (इलाहाबाद) का महत्व भी गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम के कारण ही है। मन्दाकिनी ने चित्रकूट को महत्ता दी तो नर्मदा नदी जबलपुर, ओंकारेश्वर, होशंगाबाद जैसे शहरों की प्रसिद्धि का कारण बनी। नदियों की महत्ता के कारण ही इनके तटों पर अनेक आध्यात्मिक स्थलों की स्थापना हुई, जिनमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य की अनेकानेक साधनाओं की निरन्तरता ने मूर्त रूप लिया है। नदी हमें चेतना से जोड़ती है। मानवीय जीवन में नदियां धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की साधिका रही हैं। नदियां धरती की प्राणशिराएं हैं। नि:संदेह नदी नहीं होती तो धरती इतनी आकर्षक, इतनी उर्वरा हो ही नहीं सकती थी।



स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा रचित 'विश्व धरोहर गंगा'