उत्तरकाशी:विकास के पर्यायवाची थे रवांई के" लाल " बर्फिया लाल जुवांठा

उत्तरकाशी:विकास के पर्यायवाची थे रवांई के" लाल " बर्फिया लाल जुवांठा



(पुण्य तिथि विशेष)


वह दिन याद आता है जब कमल गंगा के मध्य बसे रामा सिराई व कमल सिराई के मुख्य केंद्र बिंदु पुरोला में हजारों की संख्या में लोगों के सर ही सर दिखाई दे रहे थे। दिन था 23 नवम्बर 2001 का।इसी दिन अपने रवांई के लाल पूर्व पर्वतीय विकास मंत्री बर्फिया लाल जुवांठा हमेशा के लिए अकस्मात चिर निंद्रा में लीन हो गए थे।


स्वर्गीय जुवांठा एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ ही एक बेहद मृदुभाषी व मिलन सार ब्यक्ति थे।उनका जन्म जनवरी 1943 को तत्कालीन टिहरी रियासत की राजगढ़ी तहसील के कुमोला गांव में एक निर्धन परिवार में हुआ था।इनके पिता का नाम गुलामू था।परिवार में सबसे छोटे जुवांठा सबके चहेते थे।इनकी पढ़ाई का जिम्मा बड़े भाई कमल दास ने उठाया।इनकी प्राथमिक शिक्षा कुमोला, जूनियर पुरोला हाईस्कूल उत्तरकाशी से करने के बाद इन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए प्रताप इण्टर कॉलेज टिहरी में दाखिला लिया।जहाँ ए ठक्कर बाबा छात्रा वास में रहे।लेकिन स्वस्थय खराब होने के कारण पढ़ाई छोड़ घर आ गए।


स्वास्थ्य ठीक होने के बाद स्वर्गीय जुवांठा ने जिव्या दसगी में अध्यापन कार्य शुरू किया बाद में प्राथमिक विद्यालय जखोल में सेवा दी।जूनियर हाईस्कूल आराकोट में अध्यापन कार्य करने के साथ ही इन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा भी उतीर्ण की।जिसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद चले गए जहां से उन्होंने भूगोल विषय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।जुवांठा पहली बार 1968 मे कांग्रेस से जुड़े।1970 में पहली बार जनता पार्टी विधायक चुने गए।


जबकि 1989 में विधायक बनने के बाद तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार में मुलायम सिंह यादव ने जुवांठा को पर्वतीय विकास मंत्री बनाकर पहाड़ो के विकास की जिम्मेदारी सौंपी।अपनी ईमानदार छवि व कर्तव्यनिष्ठ कार्यप्रणाली के चलते जुवांठा ने अपने 14 माह के अल्पकाल में केवल उत्तरकाशी जिले में ही 39 मोटरमार्ग,5 मोटरपुल,29 हाईस्कूल,19 इण्टर कॉलेज व तीन महाविद्यालय स्थापित किये।इसके अलावा पहाड़ के सभी जिलों में सड़क, अस्पताल, स्कूल ,पेयजल जैसे मूलभूत आवश्यकताओं को विकास की गति प्रदान करी।


स्व जुवांठा जितने बुद्धिमान थे उससे कई गुना सरल व सीधे सादे स्वभाव के थे।जीवनभर कुर्ता पायजमा व हवाई चप्पलों में रहने वाले जुवांठा अधिकतर स्थानीय भाषा में ही बोलते थे।