विकास में बाधक ‘‘नमक लोटा’’

||विकास में बाधक ''नमक लोटा''||


भारत को गाँव का देश कहा जाता है। विडम्बना भी गांवो मे ही है। वोट बैंक भी राजनेताओ को गांवो में ही मिलते हैं बनस्पत शहर के। पर मांगे शीघ्र शहरो की मानी जाती है और ग्रामीणो की मांगे लम्बित रहती है। इसका कारण बहुत हो सकते है। मगर जो कारण अब सामने आ रहे हैं वे चैंकाने वाले है। राजनेता आम चुनाव में जीत हासिल करने के लिए ऐड़ी-चोंटी का जोर लगा रहे हैं। इस अन्तराल में जो नाटक वे करने वाले है उसकी खबर किसी को भी नही लगती है। नाटक रसीला नहीं वरन् तीखा है। जिसका तिखापन आम नागरिक को ढोना पड़ता है। 


गौरतलब हो कि पिछले पंचायत चुनाव में उत्तराखण्ड राज्य के पुरोला विकास खण्ड की एक क्षेत्रपंचायत सीट से एक युवा क्षेत्रपंचायत पद पर कैसे जीतकर आया वह बड़ा ही हास्यस्पद है। नाम ना छपवाने बावत वह कहता है कि चुनाव जीतना बड़ा आसान है। जानने पर बताया गया कि उस शख्स ने पहले तो अपने क्षेत्र में शराब पीने वालो को खूब शराब परोसी। जैसे-जैसे मतदान की तिथी नजदिक आने लगी वैसे-वैसे वह पैंतरा बदलने लग गया कि क्षेत्रवाद, जातिवाद, रिश्ता-नातावाद और बाद में कुल वोटो के लिए मुर्गो की व्यवस्था की गयी यानि प्रति वोट एक मुर्गा और मुर्गे की पोटी निकालकर उसके अन्दर रू॰ 500 का नोट घुसा करके बांटा। यही नही चुनाव के ठीक एक हफ्ते पहले अपने क्षेत्र, जाति, रिश्तादारो के साथ रात्री के 12 बजे एक अनोखा करारनामा किया गया जिसमें बताया गया कि सभी लोगा एक बड़े लोटे में अपने-अपने हाथो से एक-एक मुट्ठ नमक डालेंगे और नमक डालते समय यह कसमें खायेंगे कि यदि उन्होने अपना वोट कहीं बाहर दिया तो उनकी जिन्दगी इस नमक की तरह गलती रहेगी। इस संवादादाता ने जब उस शख्स से आगे उसके क्षेत्र के विकास के संबन्ध में उनके विजन और मिशन के बारे में जानना चाहा तो वह दो टूक शब्दो में कह देता है कि विकास के बारे में क्या सोचना। जितना भी चुनाव में खर्च हुआ वह तो निकालना ही है। एक सवाल के जबाव में वह कहता है कि भाई सभी को खुश करना पड़ता है।


इसी तरह पंचायत चुनाव के ठीक एक साल बाद यानि 2008 मे विधानसभा के चुनाव आये। इस संवाददाता को पौड़ी के थलीसैंण, नैनीताल की रामनगर, पिथौरागढ की डीडीहाट, उत्तरकाशी की यमनोत्री गंगोत्री व पुरोला, देहरादून की चकराता विधानसभाओं में जाने का मौका मिला। चुनाव प्रचार अपनी चरम सीमा पर था। विभिन्न दलो और प्रत्याशियों के कार्यकर्ता ''मतो'' को अपने-अपने पक्ष में करने के लिए रात-दिन एक किये हुए थे। लगभग ऐसे 300 कार्यकर्ताओं से मुलाकात हुई जो किसी और की बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे। बहरहाल कफनौल के जवाहर सिंह से बड़ी मुश्किल से वार्ता हो पायी। जानने पर पता चला कि उन्हे लोगो के मतो का कोई भरोसा नहीं है इसलिए वे लोगो के साथ ''नमक लोटा का करारनामा'' कर रहे हैं। कहा कि ऐसे करने से वोट पक्के हो जाते है। साथ ही यह भी कहा कि पिछले साल उनके प्रतिद्वन्दी ने ऐसा ही किया है। इस वर्ष तो वह भारी मात्रा में कर रहा है। क्या उनका प्रत्याशी जीत पायेगा? जबाव में कहा कि यह तो एकदम तय नहीं है मगर जितने कुनबो में अधिकांश ''नमक लोटा'' होगा उतना ही अमुक प्रत्याश्ी के मतो में बढोतरी होगी।


चकराता विधानसभा में तो एक नया ही चुनाव प्रचार सामने आता है वहां पार्टीयों की कोई औकात नहीं है। वहां व्यक्ति का महत्व है। वैसे भी चकराता में सभी पार्टीया अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारते हैं। वे सभी जमानत जब्त करके वापस आते है। पर जो चुनाव का घमासान दो स्थानीय प्रत्याशियों में देखने को मिलता है वह भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। चमत्कार कोई जादू-टोना नही सिर्फ व सिर्फ इकरारनाम ही है। वादे कम और कसमें ज्यादा। इसके इतर ''नमक लोटा'' का भी खास प्रचलन सामने आया। बेवजह के खर्चे, लेन-देन अन्य जगह के ही जैसा है। लेकिन इसके कोई पुख्ता प्रमाण आप नहीं ले सकते है। लेंगे भी कैसे वह तो कुनबो और क्षेत्रवार या रिश्तेवार होता है जो बहुत ही सुरक्षित रहता है। 


''नमक लोटा'' का प्रचलन तो दूर-दराज के क्षेत्रों में परम्परागत है। यह परम्परा तब महत्व रखती थी जब लोगो के पास ना तो कोई स्टाम्प, ना कोई फोटो और ना कोई विडियो फुटेज की व्यवस्था थी ऐसे वक्त यही ''नमक लोटा'' सबसे विश्वसनीय और पक्का करारनामा माना जाता था। परन्तु वर्तमान में राजनेताओं ने इस परम्परा को वोट बावत अपने पक्ष में करने के लिए पुनः इजाद की है। यह परम्परा अब तो राज्य के लगभग 16 हजार गांवो में पैर पसार चुकी है। चकराता क्षेत्र के समोग गांव के दिवान सिंह वर्मा बताते हैं कि ''नमक लोटा'' का प्रचलन अब गांवो में ज्यादा नहीं है। फिलवक्त यह प्रचलन चुनाव के दौरान गांवो के छुटभैया नेता अपने गांवो से अपने प्रत्याशी के पक्ष में मतो को इक्ट्ठा करने के लिए अख्तियार करता है और उनके पास सिवा इसके यही सरल तरिका है। फिर क्या जीता हुआ प्रत्याशी अपने इस कार्यकर्ता पर इतना मेहरवान हो जाता है कि वह आम जनता को पांच साल तक भूल जाता है। वह आगे कहता है कि जब अमुक छुटभैया नेता जनप्रतिनिधी के कामों को विगत दिनो में क्रियान्वित नहीं करता अर्थात योजनाओ को पलीता ही लगता रहता है तो ''नमक लोटा'' के अलावा उनके पास और कोई रास्ते नहीं है। यही वजह है कि इस कारण भी विकास के रास्ते अवरोधक बने हुए है या यूं कहे कि विकास के नाम पर छुटभैया नेता और संबधित कर्मचारियो की मौज बनी रहती है इधर जनता ''नमक लोटा'' करके अपने को छला हुआ महसूस करते हैं। वे आगे बताते है कि जो एक बार ''वोट के लिए नमक लोटा'' कर लेता है वह दुबारा कभी नहीं करता क्योंकि उसे मालूम पड़ जाता है कि ''नमक लोटा'' करने के बाद तो किसी और की दुकान चमकती है। इतना जरूर है कि अगले वर्ष वे लोग ''नमक लोटा'' के चुंगल में आते हैं जिन्होने पिछले वर्ष नमक लोटा नहीं किया। इस तरह यह चक्र चलता ही रहता है। कहा कि विकास में यह परम्परा सर्वाधिक बाधक बनती जा रही है। यमकेश्वर ब्लाॅक के धारकोट गांव के सोहन सिंह बताते हैं कि उनकी विधान सभा में ''नमक लोटा'' एवं लेन-देन जैसे दोनो हथकण्डे अपनाये जाते है। इसलिए राज्य के पौडी़ कमिश्नरी का यह क्षेत्र सबसे पिछड़ा हुआ है। जबकि राजधानी से यह क्षेत्र नजदीक है। विकास से कोसो दूर है। यहां के प्रतिनिधी सिर्फ व सिर्फ चुनाव के दौरान ही गांव आते है। जो लोग गांव में रहते है वे एक तरफ सड़क, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए मोहताज हैं तो दूसरी तरफ वन कानूनो को ढो रहे है। राजाजी नेशनल पार्क से लगा यमकेश्वार ब्लाॅक का किमसार क्षेत्र सदैव पार्क के कानूनो की मार झेलता है। मगर चुनाव के दौरान भी यह मांग अनाब-सनाब करारनामें की शिकार हो जाती है। बागेश्वर जनपद के कत्यूरघाटी में सामाजिक कार्य करने वाले किशन राणा का मानना है कि ''नमक लोटे जैसे करारनामा'' इतना खतरनाक है कि जिस कुनबे में नमक लेटा हुआ होगा वह कुनबा मांग पूरी ना होने पर अपना विरोध तक नही दर्ज कर सकता। क्योंकर कि वह लोक लाज के कारण से शर्मशार हो चुका होता है। कहा कि यह ''नमक लोटा'' इतने गुप्त में होता है कि जिसका खुलासा होने पर वह कुनबा समाज में बदनाम हो जाता है। इस कारण गांव विकास से पिछड़ते ही जा रहे है और कागज के पन्नो को भरकर विकास की कहानी लिखी जा रही है जो अब तक किसी ने नहीं पढी और ना ही देखी। कहा कि सरकार को मतदान के लिए और पारदर्शी व सुगम व्यवस्था बनानी होगी। साथ ही विकास का मूल्यांकन जमीनी हो ना की कागजी। 


यमनोत्री के विधायक केदार सिंह रावत कहते हैं कि यह स्वस्थ परम्परा नही है। इसके बलबूते यदि मतदान करवाया जाता है तो इक्कसवीं सदी में लोकतंत्र के नाम पर यह एक तरह का कंलक है। कहा कि जनप्रतिनिधी को एकाउण्टविल्टी होनी चाहिए कि जो योजना वे क्षेत्र में क्रियान्वित करने के लिए अपने कार्यकर्ता के सहारे स्वीकृत कर रहा है उसका जनप्रतिनिधी स्वयं मूल्यांकन करे। यदि ऐसा नही हो रहा है तो ''नमक लोटा'' की परिस्थितियां बनेगी ही। चकराता के पूर्व विधायक मुन्ना सिंह चैहान का कहना है कि ''नमक लोटा जैसा करारनामा'' समाज में तब था जब मापने को कोई पुख्ता इन्तजाम नहीं था। सो यह एक पुरानी परम्परा है जिसका अब कोई महत्व नही रह गया है। कहा कि इस समय में ''नमक लोटा'' वे लोग करवा रहे होंगे जो मानसिक रूप से कमजोर हैं, अशिक्षित है, लोगो को जिनसे विश्वास खत्म हो चुका है तथा जनता के काम कम और चुनाव जीतना ज्यादा जिनकी फितरत है। उन्होने कहा कि यदि कोई प्रतिनिधी ''नमक लोटा'' के कारण चुनाव जीतकर आ जाता है तो वह उस क्षेत्र का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।


उल्लेखनीय हो कि इस सबके बीच की सबसे बड़ी विडम्बना हमें जो देखने को मिल रही है वह ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव पर कभी भी और कहीं भी कोई अमल ना होना। ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव क्षेत्र पंचायत समिति में रद्दी की टोकरी में डाला जाता है और क्षेत्र पंचायत समिति का प्रस्ताव जिला पंचायत समिति में रद्दी की टोकरी में ठंूस दिया जाता है। अर्थात विधायक, सांसद व सत्ताधारी पार्टी के छुटभैया नेताओं की सिफारिश के द्वारा तय किये गये कार्यो को तब्बजो दी जा रही है। क्योंकि इन्होने ही तो चुनाव के वक्त ''नमक लोटा या अन्य कोई हथकण्डा'' जीताने के लिए अपनाया होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि ग्राम विकास में हो रहे कार्यो और ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव में बहुत विरोधाभाष स्पष्ट नजर आ रहा है। उदाहरण स्वरूप यदि गांव में ग्राम सभा ने यह प्रस्ताव पारित किया कि विधायक नीधी या सांसद नीधी से अश्व मार्ग बनाया जायेगा तो इसी अश्वमार्ग को गांव का कोई भी सत्ताधारी पार्टी का व्यक्ति सीधे प्रस्ताव को ग्राम प्रधान से बदलवा करके, अमुक जनप्रतिनिधी से संस्तुति करवा करके, संबंधित विभाग को कमीशन दे करके अश्वमार्ग की जगह मोटर मार्ग बनवा देता है जिसकी गांव में आवश्यकता ही नहीं है। इस तरह की बन्दरबांट से आम नागरिकों को बहुत नुकसान हो रहा है।