यमुनाघाटी के प्रगतिशील किसान युद्ववीर सिंह

||यमुनाघाटी के प्रगतिशील किसान युद्ववीर सिंह||


जीवन के 80 बसन्त देख चुके युद्धवीर सिंह रावत ग्रामीणों को बागवानी के गुर सिखाते हैं। उन्हें इस काम में संतोष मिलता है वे चाहते हैं कि जो हुनर उन्होंने हासिल किया है वह अधिक से अधिक किसानों में फैले।
यही कारण है कि वे न सिर्फ गांव की चैपाल में किसानों के बीच बागवानी व कृषि की जानकारी बांटते हैं बल्कि कई गांवों का दौरा कर वहां के किसानों को विभिन्न फलों व गैर मौसमी सब्जियों के उत्पादन के बारे में भी बताते हैं। आसपास के किसान भी अपनी बागवानी सम्बन्धी किसी समस्या के लिए सरकारी कारिन्दों के बजाए युद्धवीर सिंह के पास जाना पसन्द करते हैं क्योंकि उन्हें खेती का ज्यादा व्यवहारिक ज्ञान है।


बागवानी के लिए उनका जुनून ऐसा है कि उन्हें इसके लिए दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं। उनका मानना है कि वे अपना सबसे बड़ा पुरस्कार किसानों तक कृषि व बागवानी की उत्तम तकनीक पहुंचाने को मानते हैं। उनके ज्ञान से यदि एक किसान भी लाभान्वित होता है तो उन्हें बेहद संतुष्टी मिलती है। 


आज भी युद्धवीर सिंह हल्द्वानी, रानीखेत, देहरादून सहित प्रदेश व अन्य राज्यों में कृषि उत्थान कार्यक्रम की जानकारी लेने पहुंुच जाते हंै। युद्धवीर सिंह का जन्म पुरोला (उत्तरकाशी) के खलाड़ी गांव में एक गरीब परिवार में हुआ। कक्षा 8 तक शिक्षा प्राप्त रावत के मन में बचपन से ही कृषि व पशुपालन क्षेत्र में कुछ कर गुजरने का जज्बा था, ऐसे समय सहयोगी बनी हार्क संस्था और फिर जीवन में रूकने का नाम न लेकर सेब, कीवी, आडू आदि विभिन्न प्रजाति के उन्नत फलों के बगीचे लगा कर जहां स्वयं रोजगार अर्जित किया वहीं क्षेत्र के अन्य किसानों के लिये भी उदाहरण पेश किया। मटर, टमाटर, फ्रेचबीन आदि नगदी फसलें स्वयं व क्षेत्र के सैकडों किसानों को प्रेरित कर इसकी खेती की ओर लोगों का रूझान बढ़ाया। आज यहां  की सब्जियों के खरीददारों में मदर डेरी दिल्ली सहित देश की जानीमानी कृषि मंडियां हैं। 


रावत ने दुग्ध उत्पाद के क्षेत्र में भी लोगों को हरियाणा,पानीपत,करनाल आदि से उत्तम नस्ल की दुधारू गायों की खरीद में मदद की तथा स्वयं भी डेरी खोल कर लोगों को सरकारी नौकरी का रास्ता ताकने के बजाय कृषि व दुग्ध उत्पादन से आर्थिकी मजबूत करने का उदाहरण पेश किया। रावत में हर वक्त कृषि व बागवानी क्षेत्र में नये-नये प्रयोग करने की विशेष ललक है। उनकी मेहनत उनके बगिचों में देखी जा सकती है। उनके बाग में अच्छी प्रजाति के अनार के फलों से लगधक सैकडों पेड़ देखे जा सकते है। चार वर्ष पूर्व युद्धवीर सिंह ने पुराने सेब के पेड़ काटकर उनकी जगह पांच सौ पेड़ वाला अनार का बगीचा लगाया जो अब पूर्ण रूप से तैयार है और हर वर्ष अनार की फसल बाजार में बिकने लगी है। इस उम्र में भी रावत हर वक्त नये-नये प्रयोग व वैज्ञानिक तकनिकी का प्रयोग कर नगदी फसलें, साग सब्जी व अनेकों प्रजाति के फल की बागवानी करने में लगे रहते हैं।


उनका मानना है कि जब तक लोगों के खेत चकबंदी के माध्यम से एक जगह नहीं हो जाते तब तक उन्हें बागवानी व कृषि का पूरा लाभ नहीं मिल सकता इसलिए अब वे चकबंदी के लिए ग्रामीणों को प्रेरित करने में जुटे हैं।


Sincerely - Hamare Nayak