कठिन वक़्त का सहज रचनाकार- कपिलेश भोज


||कठिन वक़्त का सहज रचनाकार- कपिलेश भोज||


साहित्य जगत की प्रतिष्ठित पञिका 'वर्तमान साहित्य' और 'कारवां' के संपादक रहे, कपिलेश भोज अध्यापक, राजनैतिक चिंतक, सामाजिक कार्यकर्ता और इन सबसे अलग कवि एवं कथाकार हैं। समाज में व्याप्त असमानता, गरीबी, शोषण और अंधविश्वास के खिलाफ हर समय मुखर एवं प्रखर कपिलेश अच्छे को अच्छा तो बुरे को बुरा कहने में कोई देरी और संकोच नहीं करते हैं। जीवन में आयी विषमताओं को सहजता से 'परे हट' कहने का वे हर समय साहस रखते हैं। साफ और स्पष्ट नजरिया रखने वाले कपिलेश सामान्य बातचीत में भी हमेशा संयमित एवं संजीदा रहते हैं। कपिलेश भोज जी की प्रकाशित 3 किताबों के बहाने उन पर दो-चार बातें हो जाएं-


'यह जो वक़्त है'-
साहित्य जगत में चर्चित रहा 'यह जो वक्त है' कपिलेश भोज का प्रथम प्रकाशित कविता संग्रह है। इस कविता संग्रह के 4 खण्डों में समय-समय पर प्रकाशित उनकी 54 कविताएं हैं। पहले खण्ड 'चीखती हैं नदियां' में कुल जमा 16 कविताएं हैं। इनमें ज्यादातर कविताएं प्रकृति के विविध मिजाजों की ओर मुखातिब हैं। पहाड़, चिडिया, पेड-पौधे, हरियाली, पतझड़, नदी, शरद आदि के माध्यम से ये कविताएं अाम आदमी की जिंदगी में ताक-झांक करती हैं। दूसरी भाग में 'कोई किसी को नहीं पुकारता यों ही' में 9 कविताएं शामिल हैं। मानवीय मन की रंग-बिरंगी उडान को लिए इस हिस्से की कविताएं अपनी मधुर लय-ताल के साथ गीतात्मक हो गयी हैं। तीसरे खण्ड में 'रोशनी को पाने से पहले' में 15 कविताएं मौजूद हैं। यहां कपिलेश की कविताएं सामाजिक आडम्बरों पर प्रहार करती हुई आम आदमी के जीवन संघर्षों को कई आयामों में उद्घाटित करती हैं। कविता संग्रह के चौथे हिस्से में 'किताबें लिए चल रहे हैं नौजवान' की 14 कविताएं कवि के भविष्य के प्रति ऊर्जावान दृढ़ संकल्पों को लिए हुए हैं।


सामाजिक ताने-बाने पर सीधे एवं सलीके से लिखी कविताओं का यह संग्रह मानसिक विलास एवं विलाप से दूर सादगी की विशिष्ट महक लिए हुए है, जो कि पाठकीय आनन्द को हर पन्ने पर बनाये रखता है। वास्तव में कपिलेश भोज का कविता संग्रह 'यह जो वक्त है' की कविताएं समाज के नये दौर की ओर बढ़ते कदमों की आहटें हैं। यह कविता संग्रह पाठकों को एक खुशनुमा मुकाम पर पहुंचाता है।


'ताकि बसंत में खिल सकें फूल'-
इस कविता संग्रह में कपिलेश की 56 कविताएं आम आदमी के मन का कोलाहल और जीवन की थकान को विश्राम देती हैं। गिरीश तिवाड़ी 'गिरदा' को सर्मपित इस किताब की प्रत्येक कविता को जीवन में मिले मित्र, स्थान और संस्था के नाम किया है। यह कविताएं बताती हैं कि कोई व्यक्ति और स्थान कैसे किसी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को बनाने में असरदार हो जाते हैं।


जननायक डाॅ. शमशेर सिंह बिष्ट
मित्र कपिलेश भोज ने इस पुस्तक के बहाने उत्तराखंड के विगत 50 सालों ( आधी शताब्दी) के समय-अंतराल को कुरेद कर उसकी नब्ज़ पर हाथ रखा है। शमशेर बिष्ट के जीवन के उतार-चढ़ावों को पढ़ते हुए पाठक का उत्तराखंड में 70 के दशक के युवाओं की मन: स्थिति से सामना होता है। इस नाते उस समय के युवाओं की समाज की बेहतरी के लिए जीवनीय छठपटाहट इस किताब में है। सामाजिक चेतना के सर्वोदयी खोल से बाहर निकलता हुआ तबका पहाड़ी युवा उत्तराखंड के जल, जंगल और जमीऩ के मुद्दों पर मुखर हो रहा था। गांधी, मार्क्स, बिनोवा, लोहिया और जेपी की विचारधारा को अपने जीवनीय आचरण में लाने को उत्सुक था। वह आदर्शों की गठरी को अपने में लाद नहीं रहा था वरन उसे जीवनीय व्यवहार में लाने की कोशिश में भी संजीदा था।


उत्तराखंड हिमालय की सोमेश्वर घाटी के बेबाक कपिलेश भोज ने देर से ही सही, बेहतरीन साहित्यिक सौगात हिन्दी साहित्य जगत को प्रदान की है। परन्तु कपिलेश भोज की उत्कृष्ट रचनाधर्मिता से अभी बहुत सारा आना बाकी है।