अजैविक पदार्थो के उपयोग से बिगड़ता पर्यावरण

||अजैविक पदार्थो के उपयोग से बिगड़ता पर्यावरण||



डालियो का दगड़्या संगठन, एचएनबी गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल व विश्व युवक केंद्र दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में ‘‘पर्वतीत विकास, समुदाय आधारित विकास, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विषय पर देहरादून स्थित द्रोण होटल में दो दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहन सिंह रावत गांववासी ने दीप प्रज्वलित कर किया है।


कार्यशाला को संबिधित करते हुए श्री गांववासी ने कहा कि आज बिगड़ते पर्यावरण का ख्याल रखने की आवश्यकता है। इसके लिए हमे स्वयं से अनुशरण करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ उपभोक्तावादी बन गए है जबकि हमे संरक्षणवादी बनना चाहिए। इसकी शुरुआत आज घर और स्कूल से करने की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि हम ऐसा प्रयास क्यो नही करते कि प्रकृति के अनुसार और आवश्यकता अनुसार ही चीजो का इस्तेमाल करे। इस तरह से जलवायु परिवर्तन पर काबू पाया जा सकता है।


इस अवसर पर कार्यशाला में विभिन्न विषयों के शोधार्थी और एमएसडब्ल्यू के छात्र मौजूद थे। कार्यशाला को संबोधित करते हुए वाइल्डलाइफ विज्ञानी डॉ० प्रणव पॉल ने जंगली जीवो के रहन-सहन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जंगल मे जैवविविधता का होना अति आवश्यक है, यदि प्रकृति में जैवविविधता समाप्त हो जाएगी तो उसके विपरीत असर जन जीवन पर ही पड़ेगा। प्रकृति की सुंदरता और जीवन्तता जैवविविधता के ही संरक्षण पर टिकी है। इसलिए प्राकृतिक संसाधनो का उपयोग इसी बहुविविधता से करना होगा। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में कहा कि जब से मनुष्य ने अपनी आवश्यकताए असीमित की है तब से प्राकृतिक संसाधनों का बेजा दोहन हुआ है, जिसका असर जलवायु परिवर्तन के रूप में बढ़ रहा है। अभी समय है कि हम अपनी निजी आवश्यकताओं पर काबू करें, साथ ही प्रकृति के विपरीत कोई ऐसा काम न करे जिससे पर्यावरण खतरे में पड़ जाये।


एचएनबी गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल के प्राचार्य रहे प्रो० जेपी पचैरी ने कहा कि दुनिया के कई देश अब ऐसी योजनाएं बना रहे है जिससे प्रकृति का दोहन व सरंक्षण का कार्य समतुल्य होसके। मगर अपने देश मे जितनी भी विकासीय योजनाएं बन रही है वह सभी प्रकृति के विपरीत बन रही है। उनका भी सुझाव है कि हमे स्वयं में परिवर्तन लाने होंगे, जैसे सार्वजनिक यातायात को तब्बजो देनी होगी, ऊर्जा का उपयोग आश्यकता के अनुरूप ही करना होगा, जल सरंक्षण के कार्य प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य करने होंगे। उन्होंने उदाहरण दिया कि स्वीडन में नहाने व पीने का पानी एक ही है। वहाँ के लोग जिस पानी से नहाते है उसी पानी को पीते भी है। यानी जल सरंक्षण के उपादान। मगर हम लोग प्रकृति प्रदत्त चीजो का सिर्फ दोहन ही करते है, जिस कारण जलवायु परिवर्तन के खतरे बढ़ते ही जा रहे है।


कार्यशाला को संबोधित करते हुए एचएनबी गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० मोहन पंवार ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के सरंक्षण बावत लोगो को जैविक खेती की ओर लौटना होगा, उन्होंने कहा कि डालियों का दगड़्या संगठन ने टिहरी प्रताप नगर, जाखणीधार ब्लाक में ओर्गेनो की खेती को बढ़ावा दिया है, और्गेनो पिज्जा में पड़ता है। वहाँ के लोग इस खेती से प्रति परिवार लाख रूपए सालाना कमा रहे है। इसका परिणाम यह रहा कि इस फसल को कोई भी जंगली जानवर नही खाता है। कारण इसके लोगो को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिल गया और जंगलों का भी कोई नुकसान नही हो रहा है। उनका सुझाव है कि प्रकृति के सरंक्षण बावत जो भी तरीके हों वे हमें अधिक से अधिक उपयोग में लाने होंगे, इस प्रकार जलवायु परिवर्तन पर काबू पाया जा सकता है।


विश्व युवक केंद्र दिल्ली से आये राजीव निर्मल ने कहा कि प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें, प्लास्टिक आज एक ऐसी वस्तु है जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषण के खतरे बढ़ते ही जा रहे है। उन्होंने कहा कि हम लोग जैविक खेती को बढ़ावा दे। अर्थात रासायनिक पदार्थो के उपयोग से ही जलवायु परिवर्तन के खतरे हमारे सिर मंडरा रहे है।
कार्यशाला में बीज बम के प्रमुख द्वारिका प्रसाद सेमवाल, हिमालय बचाओ अभियान के समीर रतूड़ी, गंगा आरती समिति श्रीनगर के प्रेम बल्लभ नैथानी, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ० मालती हलदर ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यशाला का संचालन एचएनबी गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल के पर्वतीय शोध केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ० अरविंद दरमोड ने किया।


कार्यशाला में विभिन्न विश्व विद्यालयों के शोधार्थी, राज्यभर से आये विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओ ने हिस्सा लिया है। बताया गया कि दो दिवसीय इस कार्यशाला में ठोस कार्ययोजना बनाई जाएगी, जिससे जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम किया जा सके। यह कार्य योजना सरकार को भी सौंपी जाएगी।