जीवन

जीवन




जीवन है क्या? एक जलता दिया।
जिसने जैसा समझा, वैसे ही जिया।।
कभी प्रिय सहेली ,
कभी  अनबुझ पहेली । 
कभी सुख की ठंडी छांव ,
कभी दुख की तपती दोपहरी ।
कभी अपना, कभी बेगाना हुआ,
मुस्कुराया, और कभी रो दिया।
बडी अजब है दास्तान इसकी,
किसी को मिला, किसी ने खो दिया।
जिसने जैसा समझा, वैसे ही जिया।।
जीवन एक अवसर है,
सपनों को सच करने का।
उम्मीदों का दामन पकड.
उंची उडान भरने का।
किन्तु संघर्ष भी साथ-साथ चलता है,
यूं समझों की हवा में दीप जलता है।
जो जलता रहा, 
उसने जग रोशन किया।
जिसने जैसा समझा, वैसे ही जिया।।
जीवन तो दुनिया में आना और जाना है,
मिलने जुलने का अच्छा बहाना है।
कुछ कहते ,रंगीन है मेला,
कुछ के लिए ये बना झमेला।
कोई अमृत पान करे, 
और किसी ने विष पिया।
जिसने जैसा समझा, वैसे ही जिया।।


यह कविता काॅपीराइट के अंतर्गत आती है, कृपया प्रकाशन से पूर्व लेखिका की संस्तुति अनिवार्य है।