कितना बोरिंग होता है 'सयाना' होना


||कितना बोरिंग होता है 'सयाना' होना||


कल की बात ही लगती है जब रानीखेत रोडवेज बस स्टेशन में कर्णप्रयाग जाने वाली बस में चढ़ते हुए मैंने कहा 'अच्छा फिर' और तुमने कहा 'ठीक है, पहुंचते ही लैटर लिखना'। वैसे ये बात मई, 1979 की किसी तारीख की सुबह-सुबह की है। सालों में गिने तो 39 साल पहले की बात है। उसके बाद एक साल तक तो फटाफट आपस में खूब चिठ्ठियां चली। फिर सिलसिला ऐसे रुका कि चिठ्ठियों के चलन के खत्म होने तक भी हम चिट्ठी-पत्री से गोल ही रहे। बस, बातें यादों में होती रही। जल्दी ही पता लगा तुम पुलिस इंस्पेक्टर बन गए हो। कालेज के बाक्सर जो ठहरे, तुम।


कालेज के बाद से तुमसे मिलना सन् 2014 में 35 साल बाद देहरादून में हो पाया था। पर 35 साल की इस दूरी ने हमें एक-दूसरे से 'तुम' से 'आप' बना दिया था। तुम पुलिस अफसर और मैं समाज वैज्ञानिक। जो हम थे वो तो समय के प्रवाह में कहीं बह कर खो गया है। अब तुम मेरे लिए 'सती जी' मैं तुम्हारे लिए 'कुकसाल जी' हो गए।


जीवन में बड़ा, परिपक्व, सयाना, बुजुर्ग, समझदार और प्रतिष्ठित होना कितना बोरिंग होता है, तुम समझ रहे हो ना।


मालरोड स्थित 'रानीखेत कालेज' के लिए तुम अपने गांव 'कालनू' और मैं 'चौबटिया गार्डन' से पैदल चलते हुए 'झूलादेवी' के सामने के मुंडेर पर मिलते थे। आनंद, किशोरी, चिरंजीवी भी हमें वहीं पर मिलते थे। कालेज जाने-आने के लगभग पैदल 20 किमी में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि हम साथ न रहे हों। तुम धीर-गंभीर मैं थोड़ा हंसमुख, तुम अनुशासित, मैं स्व:शासित पर दोस्ती पक्की। तुम सिगरेट नहीं पीते थे पर, दोस्तों की 'गोल्डन' सिगरेट पर तुम भी खूब कश लगा लेते थे। चलो, तुम्हारे साथ की कालेजी दोस्ती पर फिर कभी।


जाते हुए 2018 के साल में तुम पुलिस की बड़ी अफसरी से विदा ले रहे हो। 'रहे हो' इसलिए कि 31 दिसंबर है और तुमने फोन पर अभी बताया कि रात भर डूयूटी पर तैनात रहना है। हम जैसे सिवेलियनों पर नजर रखने के लिए जिन्हें हर समय हद में रहने के लिए कहना पड़ता है।


तुमने बताया कि तुम अब अपने गांव 'कालनू' में ही रहोगे। गांव के युवाओं को अपने अनुभव और हुनर से जीवन की सही पाठशाला बताते हुए। यार, जीवन का सबसे बेहतरीन और आनंददायी काम तो अब तुम करने जा रहे हो। अब तुम अपने कुमांयुनी गांव 'कालनू' से आना मैं अपने गढ़वाली गांव 'चामी' से फिर 'झूलादेवी' की तरह पहाड़ के किसी अन्य 'देव स्थल' पर मिलेंगे। वैसे ही जैसे 40 साल पहले कालेज जाते हुए 'झूलादेवी' के सामने के मुंडेर पर मिलते थे।