टिकाऊ विकास में अवधारणा की कमी

||टिकाऊ विकास में अवधारणा की कमी||



विश्वासी और टिकाऊ विकास की अवधारणा कम होती जा रही है, इसलिए लोक सहभागिता के कामो को तरहजीह देने की मूल आवश्यकता है। यही बात इस देश का मीडिया लम्बे समय से कहता आ रहा है। दरअसल पत्रकार प्रेरित पर्यावरणीय व परिवर्तनीय आवश्यकताओ को मध्यनजर रखते हुए विकास के लिए फिर से कमर कसनी होगी। जिसका स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यह बात देहरादून के हिन्दी भवन में हुई पत्रकारवार्ता के दौरान भारत सरकार के पूर्व सचिव डा॰ कमल टावरी ने कही।


हे॰न॰ब॰ गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल के मानव विज्ञान विभाग, गंगा आरती समिति श्रीनगर गढवाल, डालियों क दगड़या संगठन एवं पर्वतीय विकास शोध केन्द्र के तत्वाधान में ''पत्रकार प्रेरित पर्यावरणीय परिवर्तन'' विषय पर देहरादून के हिन्दी भवन में हुई पत्रकार वार्ता में भारत सरकार के पूर्व सचिव डा॰ कमल टावरी ने कहा कि अब समय आ गया है कि पर्यावरण की कीमत जो मीडिया के माध्यम से जननायको को बताई जा रही है उसे क्रियान्वयन की प्रबल आवश्यकता है।


उन्होने पत्रकारो को संबोधित करते हुए कहा कि सरकारों के पास अकूत संसाधन है, बशर्ते उन्हे रोजगारपरक बनाने में सरकारें विफल होती जा रही है। जिस कारण पर्यावरण का क्षरण हो रहा है। जहां बर्फ गिरती थी वहां आजकल शुष्क मौसम हो रहा है। जिसका प्रतिकूल असर मानव सभ्यता पर हो रहा है। स्वरोजगार के लिए उन्होने कई उदाहरण प्रस्तुत किये। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य ही है जहां एशिया की सबसे बड़ी डेरी फार्म है। यदि डेरी उद्योग को सरकारें स्वरोजगारपरक बनायें तो यहां की सरकार को दूध के लिए दूसरे राज्यो पर निर्भर नहीं रहना पडेगा। ऐसे कई उदाहरण है कि जो पर्यावरण संतुलन के काम भी करेंगे और रोजगार को बढावा भी देंगे। पत्रकार वार्ता में इन्टरनेशनल रिसर्च इन्सीट्यूट जर्मनी की निदेशक इमी॰ वी॰ मारला ने कहा कि टिकाऊ विकास की अवधारण अभी अधूरी है। भारत के परिप्रेक्ष्य में उन्होने बताया कि भारत देश में त्वरित विकास की लालसा के कारण अविश्वास और बढता जा रहा है। इसलिए सरकारो को जनता के लिए विश्वासी और दूरदर्शी कार्यक्रम बनाने होंगे। 


हे॰न॰ब॰ गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल के भूगोल विभाग के डीन प्रो॰ मोहन पंवार ने पत्रकारो को संबोधित करते हुए कहा कि विकास में संतुलित पर्यावरण की लगातार कमी खलती जा रही है, जो भविष्य के लिए खतरे पैदा कर सकता है। लोक ज्ञान और मीडिया के द्वारा प्रचारित जन विकास के मुद्दो पर अब काम करने की नितान्त आवश्यकता है। इसलिए कह सकते हैं कि मीडिया प्रेरित और पर्यावरणीय परिवर्तन की दिशा में विकास आधारित काम करने की प्रबल आवश्यकता है। 


हे॰न॰ब॰ गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल के मानव विज्ञान विभाग के डीन प्रो॰ विद्या सिंह चैहान ने कहा कि लोक ज्ञान की अनदेखी करना विकास में बाधक बनता जा रहा है। अच्छा हो कि अध्ययनो और निष्कर्षो पर सोचें और विकास की कहानी लिख डालें। पर्वतीय विकास शोध केन्द्र हे॰न॰ब॰ गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल के नोडल अधिकारी डा॰ अरविन्द दरमोड़ा मानते हैं कि मीडिया प्रेरक और लोक प्रसारित सुझावो पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह अभियान गांव गांव जायेगा। ताकि भविष्य में विकास पर लोगो का विश्वास जाग्रत हो सके। प्रेसवार्ता को गांगा आरती समिति श्रीनगर के प्रमुख प्रेम बल्लभ नैथानी, वरिष्ठ व्यवसायी एसपी शर्मा, भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता तेजराम सेमवालआदि ने संबोधित किया।