रेडियो ने मुझे एक पहचान दी, आवाज दी


||रेडियो ने मुझे एक पहचान दी, आवाज दी||



अन्तराष्टीय रेडियो दिवस 13 फरवरी को मेरे अनन्य मित्र अनिलदत शर्मा जो आवाज का धनी, सुन्दर, और भारतीय समाचार सेवा के उच्चाधिकारी है ने यह आलेख लिखा है जिसे यहां 14 फरवरी को प्रकाशित किया जा रहा है।



आज विश्व रेडियो दिवस है। आप सबको बधाई। ये जो शब्द है न रेडियो....एक दौर था जब ये परिवारों को, रिश्तों को और अहसासों को बांधे रखता था। लेकिन ये भी एक सच है कि आधुनिक मीडिया ने रेडियो को थोड़ा कमतर कर दिया है। हां, एफएम के आविष्कार ने रेडियो को जरूर पुनर्जिवित कर दिया है।


खैर आज इस खास दिन पर रेडियो में अपना अनुभव साझा करना चाहता हूं। रेडियो में नौकरी करने से पहले मैंने रेडियो सिर्फ बचपन में अपने नानाजी स्वर्गीय श्री सीता राम जोशी जी को सुनते देखा था। मुझे आज भी याद है, गांव में घर के चैबारे में बैठ कर वह कान पर रेडियो लगा कर आकाशवाणी के नजीबाबाद केंद्र को सुनते थे। तब मैंने सोचा नहीं था कि एक दिन में इसी रेडियो में नौकारी करूंगा।


जनसंचार में पढ़ाई के बाद मैंने 2008 से 2012 तक पिं्रट और इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में पत्रकारिता की, लेकिन सरकारी नौकरी की तलाश में पढ़ाई पर जोर दिया। इस बीच 2013 में एसएससी ने प्रसार भारती यानी रेडियो और दूरदर्शन के लिए प्रसारण अधिकारी और कार्यक्रम अधिकारी की भर्ती निकाली। चूंकि बेरोजगारी हावी थी तो बिना ये सोचे कि इस विभाग में क्या काम होता होगा, मैंने फार्म भर दी। परीक्षा दी और मैं उसमें पास हो गया।


तैनाती मिली अरूणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में बतौर आकाशवाणी में प्रसारण अधिकारी की। नौकरी मिल चुकी थी। दिल खुश था। लेकिन रेडियो में करना क्या है ये अभी तक पता नहीं था। ज्वाइन करने के बाद पहली बार रेडियो स्टेशन देखा। देखा कि कैसे उद्घोषक जिसे आमतौर पर आरजे कहा जाता है वह रेडियो पर कैसे बोलता है और कैसे तरंगों के माध्यम से लोगों के घर पहुंचता है। लेकिन मेरा काम ये नहीं था।


प्रसारण अधिकारी यानी ड्यूटी आॅफिसर आमतौर पर शिफ्ट का इंचार्ज होता है। यानी उसे माॅनिटरिंग करनी होती है कि रेडियो पर जो जा रहा है वह प्रसार भारती के मैनडेट के अनुसार है या नहीं। कुछ गलत प्रसारित हुआ तो उसकी रिपोर्ट लिखनी होती है।


खैर, पहली बार जब मैंने माइक पर बोला तो वो कार्यक्रम अधिकारी श्री तांजेंग के कार्यक्रम के लिए माइक टेस्टिंग थी। टेस्टिंग के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मेरी आवाज आच्छी है और शब्दों का उच्चारण भी साफ है। इस के आधार पर वह मुझे साक्षात्कार के कार्यक्रम देने लगे। पहली बार आधिकारिक तौर से मेरी आवाज तरंगों के माध्यम से लोगों तक पहुंचने लगी।


रेडियो के लिए कार्यक्रम करते करते मैंने अरूणाचल जैसे संस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य को जाना और पहचाना। रेडियो की नौकरी ने मुझे पूरे अरूणाचल राज्य के दर्शन करवाए। लोग मेरी आवाज और कार्यक्रमों को पहचानने लगे। कार्यक्रम करते करते मैंने अपनी आवाज पर बहुत काम किया ताकि मेरी आवाज में और निखार आ सके। इस तरह मैं रेडियो को जीने लगा। जिस दिन रेडियो पर आवाज नहीं जाती थी मुझे खाली खाली सा लगता था। इस बीच 2017 जून को मेरा तबादला अपने शहर देहरादून आकाशवाणी में हो गया। मैं उत्साहित था क्योंकि एक तो ये मेरा अपना शहर था जहां मैं पला बढ़ा, मेरी शिक्षा दीक्षा हुई। उससे ज्यादा देहरादून का ये रेडियो केंद्र एकदम नया था जहां करने के लिए बहुत कुछ था। दिल में जोश और जूनुन के साथ में मैंने यहां काम करना शुरू कर दिया।


देहरादून आकाशवाणी केंद्र पर रेडियो की जानीमानी हस्ती श्री विभूति भूषण भट्ट केंद्र अध्यक्ष और कार्यक्रम प्रमुख थे। उन्होंने कई कार्यक्रमों में मुझे अपनी आवाज देने का मौका दिया। मेरी आवाज में इस केंद्र से स्पाॅट, विज्ञापन और कई साक्षात्कार जाने लगे। यहां मेरा ये मिथ एक बार फिर से टूटा की रेडियो कौन सुनता है। मेरी आवाज को श्रोताओं ने पहचाना और अपना भरपूर प्यार दिया। श्रोता आकाशवाणी में आकर मुझसे मिलने आते, मिठाई लाते और रेडियो उनकी जिंन्दगी में क्या मायने रखता है वो साझा करते। यकीन मानिए आपकी आवाज अगर श्रोताओं को आपसे मिलने के लिए केंद्र पर आपसे मिलने के लिए उत्सुक कर दे तो ये आपकी कामयाबी और रेडियो की सार्थकता को बयां करता है।


मेरे कार्यक्रम हैल्लो फरमाइश ने मुझे एक नई पहचान दी। लोगों से फोन पर बात कर के मैंने बहुत कुछ नया सीखा। उनके मन का टटोला। उनकी जिंन्दगी को करीब से जाना। इस कार्यक्रम ने जीवन के कई नए आयामों से परिचित करवाया। मेरे ‘हैल्लो फरमाइश में आपका स्वागत है’ बोलते ही श्रोता मुझे पहचान जाते थे। मैंने कई कार्यक्रम आकाशवाणी देहारादून से दिए जिनमें ‘आज के मेहमान’, ‘आप की बात’, ‘वटवृक्ष’, ‘करेंट अफेयर्स’, ‘हैल्लो फरमाइश’, ‘गुड मार्निंग’ दून सहित कई स्पेशल कार्यक्रम शामिल हैं। मैंने इसी केंद्र से कुछ समय समाचार वाचन भी किया जिसका अनुभव भी अद्वित्य रहा। रेडियो के प्रति लगााव के कारण ही मैंने 2019 में भारतीय सूचना सेवा में चयनित होने के बाद मैंने रेडियो में जाने में ही दिलचस्पी दिखाई। मैं रेडियो की दुनिया से दूर नहीं जाना चाहता था, क्योंकि मैंने रेडियो में नौकरी नहीं की, मैंने इसे जीया है।


रेडियो ने मुझे एक पहचान दी, मुझे आवाज दी, परवाज दिया..... रेडियो के मेरे पास कई किस्से है जो फिर कभी सुनाउंगा।