भारत रंग महोत्सव का सफल समापन


||भारत रंग महोत्सव का सफल समापन||


राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और संस्कृति विभाग के संयुक्त प्रयासो से आयोजित 21वां भारत रंग महोत्सव का सफल समापन बांग्ला नाटक ‘‘नासिका पुराण’’ की प्रस्तुति के साथ हो गया है। छः फरवरी से 12 फरवरी तक छः नाअको खेला गया। इनमें नेपाल, श्रीलंका व बंगलादेश की नाट्य संस्थाऐं भी भारत रंग महोत्सव में सम्मिलित हुई। अर्थात तीन विदेशी और तीन भारतीय भाषाओं के नाटक यहां खेले गये। अन्तिम प्रस्तुति को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।


भारत रंग महोत्सव के अन्तिम दिन कोलकता से आये मिनर्वा रिपेटरी थियटर के कलाकारो ने बांग्ला भाषी नाटक नासिका पुराण की जीवन्त प्रस्तुति दी है। प्यार-मुहब्बत और कल्पनाओं से सराबोर इस नाट्य प्रस्तुति ने दर्शको को अन्तिम तक बांधे रखा। 



नासिका पुराण नाटक का कथानक कुछ ऐसा है कि एक मुसीबतजदा व बड़ी नाक का स्वामी होने के बावजूद सिरानो समानांतर रूप से संवेदनशील और बुद्धि-सम्पन्न व्यक्ति है। 17वीं सदी का अनैतिक जीवन जीने और मुख्यतः यौन सुख में दिचस्पी रखने वाला वह स्वेच्छाचारी लेखक एक धुर्त-पाखण्डी द्वन्द्व योद्धा भी है। कवि और लड़ाका सिरानो मित्रता के लिए अपने प्रेम- सुन्दर रोजन का बलिदान कर देता है। उसके उत्कृष्ट काव्य और सुन्दरता से गढे कथानक के कारण, पाठको आर दर्शकों के लिए यह नाटक आनंद का खजाना है। रूमानियत, अतिनाटकीयता और मिलावट से संयोजित बद्धि का सहज पुट नाटक की बनावट में आत्मसात् होता है। एडमण्ड रोस्टैण्ड द्वारा लिखा गया यह अविस्मरणीय काव्यात्मक नाटक है जिसे पहली बार 1897 में फ्रांस में मंचित किया गया था। सो उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के दौरान बहुत कम ही नाटक ऐसी प्रचुर सफलता प्राप्त कर पाए। मगर यह नाटक और सहित्य दोनों ही अर्थों में एक शास्त्रीय रचना को संजोये हुए है। इसलिए इसका आकर्षण भी समय के साथ-साथ बढता जा रहा है। दो घण्टे से अधिक समय तक खेले जाने वाले इस नाटक ने दर्शको को बांधे रखा है।


निर्देशक
बिप्लव बंद्योपाध्याय बंगाली रंगमंच के जाने-माने निर्देशक और अभिनेता हैं। वे राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय ख्यातीलब्ध निर्देशक व अभिनेता हैं।


नाट्य संस्था एक परिचय 
मिनर्वा रेपर्टरी की शुरुआत, मिनर्वा नाटय संस्कृति चर्चा केन्द्र के नियमित प्रदर्शन-विभाग के रूप में जुलाई 2010 को हुई। यह कोलकाता और उससे बाहर, और कभी-कभार अन्य राज्यों में भी जनता के लिए नाटकों का मंचन करती है। मिनर्वा रेपर्टरी का पुस्तकालय पश्चिम बंगाल के सर्वश्रेष्ठ रंग-पुस्तकालयों में से एक है। ये समूह उभरते कलाकारों के प्रशिक्षण और प्रेरणा के लिए विविध कार्यशालाओं का संचालन करता है। समूह की गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण भाग है, थिएटर जनरल का प्रकाशन। जिसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रंग-कलाकारों और विश्लेषकों के लेख आमंत्रित किए जाते हैं।



पात्र एवं पार्श्व परिचय
शशधर वर्मा बुद्धदेव दास, कनकेन्द्र क्षेत्रबर्मा शांतुन गाँगुली, रंजाबती निवेदिता भट्टाचार्जी, रघुनंदन मिश्रा अनिर्बन सरकार, उर्मिला शिप्रा डे अमात्य अबधीश पृथ्वीराज चैधुरी बिजयेन्द्र शुवम साहा नर्तकी सायंती घटक नर्तकी, नन अनन्या बिस्वास नर्तकी सुलग्ना चक्रबर्ती नर्तकी नन दीपन्विता सरकार नर्तकी मातोंगी सुपर्णा दास महानंदा, मंगला अरिमिता रॉय ग्रामीण, नर्तकी देबजानी रॉय 


पुण्डरीक प्रदीप मजूमदार ग्रामीण लड़का, दशरथ सिंघा तथागत चक्रबर्ती कोको बर्मा स्वागतम हल्दर मॉरी तापसी मण्डल, पाचक कौशिक चटर्जी चोर, कवि रॉबिन बिस्वास वृद्ध, सिपाही सुरजित चक्रबर्ती सिपाही, कवि सौम्य भट्टाचार्जी ग्रामीण, सिपाही देबारुण चक्रबर्ती सिपाही तन्मय मण्डल नाश्ते वाला लड़का, सिपाही अविजित बसु पुरोहित गोलोकनाथ चतुर्वेदी पार्थसारथि सरकार 


प्रकाश-अभिकल्पना पृथ्वीश राणा प्रकाश-संचालन शुवॉकर डे दृश्यबंध-अभिकल्पना विश्वनाथ डे संगीत दिशारी चक्रवर्ती संगीत-संचालन अधीर गांगुली वेशभूषा मधुमिता धाम नृत्य-संरचना प्रसन्ना, मितुल, रोनी देह-गतियाँ देब कुमार पॉल रूपसज्जा मोहम्मद अली सहायक-रूपसज्जा संजय पॉल दृश्याँश अभ्र दासगुप्ता छायाँकन अभिजित दासगुप्ता सहायक प्रस्तुति-नियंत्रक अनिर्बन सरकार प्रस्तुति-नियंत्रक पार्थ सारथि सरकार विशेष आभार ब्रात्य बसु।