महिला दिवस: स्वावलम्बन के लिए प्रोत्साहन

||महिला दिवस: स्वावलम्बन के लिए प्रोत्साहन||


अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर देहरादून स्थित प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत निराश और नकारात्मक सोच पर महिला वक्ताओं ने जमकर प्रहार किया। इस अवसर पर प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत 10 युवतियों को स्वरोजगार से जोड़ने बावत कार्यक्रम की संयोजिका व अधिवक्ता स्नेहा ने आर्थिक और वैचारिक रूप से फैलाशिप प्रदान की है।


बता दें कि यह वे युवतिया हैं जो या तो बालमजदूर रही है या निर्धनता के कारण अपनी प्रतिभाओं को मसोसकर रखा हुआ था। उन्हें सबल बनाने के लिए स्नेहा ने कमर कस दी है और भविष्य में भी प्रोत्साहन कार्यक्रम के मार्फत युवतियो व महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की विशेष योजना आयोजित करेगी। 



इधर महिलाओं को इस इक्कीसवीं सदी में परिवर्तन की दिशा में आगे बढना चाहिए और नकारात्मक सोच को तो अलविदा कह देना चाहिए। बजाय वर्तमान मे ही जीना चाहिए। यह बात देहरादून की नेहरू कालोनी स्थित खचाखच भरे चिल्लीज रेस्तरां के सभागार में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा॰ तान्या चतुर्वेदी ने कही है। उन्होंने कहा कि महिलाऐं समाज का आधा हिस्सा है। इसलिए समय आ चुका है कि महिलाओं को स्व-निर्णय की ओर तेजी से बढना होगा। इस दौरान आकाशवाणी की उद्घोषिका भारती आनन्द ने एक भावनात्मक कविता का पाठ किया की ‘‘मत मानो देवी मुझको बस जीने का अधिकार दो, बेटी हूँ मैं तेरी माँ, इतना मुझको पहचान लो’’। वे आगे अपनी कविता के माध्यम से बता रही है कि ‘‘तेरा ही तो अंश हूं मै, फिर मुझसे क्या दूरी है, इतना तो बतला दे मां, क्या तेरी मजबूरी है’’।


कार्यक्रम को संबोधित करती हुई डीएवी पब्लिक स्कूल की प्राचार्य सारिका बिम्बे ने कहा कि हमें अब निर्भरता जैसी आदतों से बाज आना चाहिए। यह मनगढत परंपरा है जो अस्वभाविक थी। इसलिए अगर बच्चों के बारे में सोचे तो स्व-निर्णयानुसार सोचे, सकारात्मक सोचें। यही बराबरी का एक और तरिका भी है। कहा कि आम तौर पर महिलाऐं सोचती है फिर अपने निर्णय से हटकर पति के निर्णय पर खुश हो जाती है। पति को भी लगता है कि ऐसा उसी ने ही सोचना है। इस दकियानूसी सोच से बाहर आने की आवश्यकता है।


कार्यक्रम में पंहुचे साहिबाबाद के वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट, लेखक और संपादक उमेश अरोड़ा ने कहा कि सोच को परिवर्तन की दिशा में बदलना होगा। उन्होंने देशभर की ऐसी महिलाओ का उदाहरण प्रस्तुत किया जो कभी घर-घर अचार बेचने का काम करती थी। मगर आज वे 250 करोड़ का कारोबार सालाना करती है। कहा कि चेतना हो और खुद की सोच को बड़ा करना होगा। संकोच को बाय-बाय करना होगा। उन्होने महिलाओं से संवाद करते हुए कहा कि जब सोचेंगे और बड़ा सोचेंगे तो सफलता की सीढियां आपके कदम चूमेगी। इस अवसर पर उत्तराखंड महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रतिनिधि श्रीमती विमला, कृष्ण कुमार नारंग, हरित राणा, सचिन नारंग, कु॰ अंशिका आदि ने अपने विचार व्यक्त किये हैं।



प्रोत्साहन सिर्फ जीवन और जीविका के लिए
प्रोत्साहन एक विशेष कार्यक्रम है जो निरन्तर चलेगा। महिलाओं व युवतियों की क्षमताओं में उनकी दक्षताओं का उन्हे भान करवाना। परिवर्तनकारी सोच पैदा करना। अपने विचारों और कार्यशैली में साधारण परिवर्तन द्वारा बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करना। यह कार्यक्रम शुद्धरूप से कमजोर वर्ग और उन लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया है जो अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रारंभ में इस कार्यक्रम के तहत कुछ महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण से गुजरने के लिए चुना गया है। उनकी रुचि, प्रतिभा और क्षमता के अनुसार उन्हे प्रशिक्षित किया जायेगा, ताकि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके।
(स्नेहा, प्रोत्साहन कार्यक्रम की मुख्य संयोजिका और वरिष्ठ अधिवक्ता)