उत्तराखंड हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में

||उत्तराखंड हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में||



उपली रमोली का हिंदी मीडियम का छात्र, कोदा झंगोरा खा कर बड़े हुए वीरेंद्र रावत ने अपने दम पर दुनिया में नाम कमाया. इच्छा शक्ति सबसे बड़ी चीज है। किसी भी फील्ड में हो।




झील के उस पार अर्थात प्रताप नगर जो 2005 से काला पानी हुआ था , वहाँ से एक गरीब लड़का गुजरात निकलता है। देखते ही देखते उसके प्रोजेक्ट पर पंख लग जाते हैं। उनका कांसेप्ट ,और लोग भी अपनाते हैं। गुजरात राज्य उनके आडिया पर 500 सरकारी ग्रीन स्कूल बना रहा है। इन आडियाकार का नाम है वीरेंद्र रावत। जो एजुकेशन के फील्ड में अपने काम की बदौलत काफी शोहरत बटोर चुके हैं।


उन्होंने न केवल ग्रीन स्कूल कांसेप्ट ईजाद किया बल्कि आज देश के 100 से ज्यादा ग्रीन स्कूल उनके दिशा निर्देशन में संचालित हो रहे हैं।


आज सोमवार को वीरेंद्र रावत ने हॉवर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका में
इंडिया कांफ्रेंस 2020 में शिक्षा के माध्यम से इंडिया में क्लाइमेंट चेंज के आना को कम करने में विस्वास का नेतृत्व कर सकते हैं कि नहीं। विषय पर बोल रहे थे। उपली रमोली का हिंदी मीडियम के
छात्र जिसने कोदा झंगोरा खाकर अपना जीवन बढ़ाया। वह आज दुनिया की पहले नम्बर की यूनिवर्सिटी में अपने विचार रख रहा है यह बडी बात है। गर्व की बात है।


मूलरूप से टिहरी गढ़वाल में प्रतापनगर ब्लॉक की पट्टी उपली रमोली के हेरवाल गांव में श्री मुकुंद सिंह रावत व श्रीमती बच्चा देवी रावत के घर जन्मी छह संतानों में सबसे बड़े वीरेंद्र रावत की प्रारंभिक शिक्षा दीप गांव में हुई। उन्होंने राजकीय इंटर कालेज तोलीसैण, टिहरी से 12वीं करने के बाद स्वामी राम तीर्थ गढ़वाल विवि टिहरी से स्नातक की पढ़ाई पूरी की।


1994 में वह नौकरी के सिलसिले में अहमदाबाद चले गए, जहां उन्होंने 1200 रुपये वेतन पर नौकरी की। रावत पर उत्तराखंड की हरितिमा का गहरा असर था। यहाँ सघन जंगल उनकी यादों में थे।
बचपन में जंगलो से लकड़ी लाना, जंगल पर निर्भर रहना वह उनकी बचपन का पार्ट था। यही एक आडिया था कि उन्होंने वर्ष 2010 में अहमदाबाद में पहले ग्रीन स्कूल की स्थापना की।


गुजरात के मुख्यमंत्री रहे श्री नरेंद्र मोदी को जब इस ग्रीन स्कूल के बारे में पता चला तो उन्होंने खुद जाकर इसका निरीक्षण किया। वीरेंद्र को तत्काल प्रदेश में इस तरह के ग्रीन स्कूल के प्रोत्साहन के लिए सलाहकार नियुक्त कर लिया। देहरादून में एक मुलाकात में रावत जी ने बताया कि, बहुत सारी गप लगाने से गुसाईं जी काम नहीं चलता। गुजरात में रात दिन इस फील्ड में मेहनत की गई। बच्चे तैयार हुए। तभी लोगों की नज़र पड़ी।


आज वीरेंद्र रावत सीबीएसई के 10 से अधिक संबद्ध ग्रीन स्कूलों के संचालक होने के साथ ही 100 से अधिक ग्रीन स्कूलों की देखरेख का जिम्मा संभाल रहे हैं। भारत में ग्रीन एजूकेशन के क्षेत्र में दिशा निर्देशक के तौर पर वह 100 सबसे सफल निर्देशकों में गिने जाते हैं।


वीरेंद्र पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें बोस्टन यूनिवर्सिटी अमेरिका ने अपने आठवें वार्षिक एमए ग्रीन स्कूल समिट के लिए आमंत्रित किया और सम्मानित किया।


क्या है ग्रीन स्कूल कांसेप्ट । ग्रीन स्कूल कांसेप्ट पृथ्वी, जल, हवा, आग व आकाश पर आधारित है। इन स्कूलों में एंट्री करते ही प्राकृतिक सुंदरता का अहसास होता है। वीरेंद्र ने इस कांसेप्ट के तहत स्कूलों के लिए अलग से सिलेबस डिजाइन किया।


वह न केवल बोर्ड का सिलेबस पढ़ते हैं बल्कि उन्हें पर्यावरण मित्र और उससे कमाई का रास्ता भी सिखाया जाता है। इसके लिए स्कूलों में वह कार्बन आधारित आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं।


बारिश का 100 प्रतिशत पानी ही सभी प्रक्रियाओं में इस्तेमाल किया जाता है। वेस्ट से खाद बनाने और पेपर रिसाइक्लिंग से लेकर प्लास्टिक रिसाइक्लिंग तक का पूरा काम पढ़ाई के दौरान ही बच्चे को सिखाया जाता है।


वर्ष 2014 में डिजिटल लर्निंग मैनेजमेंट ने उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़े गेम चेंजरों की सूची में पहले स्थान पर रखा। वीरेंद्र रावत दुनिया में 300 से अधिक ग्रीन स्कूल संचालित करने वाली संस्था ‘ग्रीन स्कूल एलायंस ग्लोबल बेस्ट यूएसए’ के कॉर्डिनेटर हैं।


इसके अलावा बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट, सीयू शाह यूनिवर्सिटी, गुजरात, एनवायरमेंट एंड ग्रीन टेक्नोलॉजी बोर्ड गुजरात, टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी अहमदाबाद, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर एनवायरमेंट एजूकेशन यूएसए, एनवायरमेंट एजूकेशन कमेटी, सीबीएसई के सदस्य होने के साथ ही यंग मास्टर प्रोग्राम ऑन सस्टेन एबिलिटी, यूनेस्को के प्रमाणित प्रशिक्षक भी हैं।


2015 में आयोजित हुए वाइब्रेंट गुजरात में वीरेंद्र सिंह रावत ने ग्रीन स्कूल प्रोजेक्ट को पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत की।


ग्रीन उद्यमियों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। छात्रों में उद्यमिता विकास होने के साथ ही पढ़ाई के दौरान वह पर्यावरण भी बचाते हैं और कमाई भी सीखते हैं। शादी समारोहों में केवल ग्रीन गिफ्ट का ही प्रचलन भी तेजी से बढ़ गया है।


गुजरात में 2020 तक 500 सरकारी स्कूल ग्रीन स्कूल बनेंगे।
इसके लिए वर्ल्ड बैंक फंड देता है। लेकिन इसके जनक
वीरेन्द्र रावत से भी सरकारी संस्थान मदद लेते हैं।


वीरेंद्र जी के माँ पिता का देहांत हो गया है। हेरवाल गाँव में उनकी यादें हैं। जिस घर में वह बड़े हुए उसे उन्होंने छेत्र के लिए अस्पताल बना दिया है। वहाँ एक डॉक्टर, नर्स रहती हैं। आसपास के लोग
अस्पताल में जाते हैं। वीरेंद्र जी कुछ अपनी जेब से लगाते हैं। कुछ उन्होंने अपने नई दिल्ली के संपर्क से अस्पताल के लिए पैसे जुटाये।
वह कहीं भी रहे , वह अस्पताल की सुध लेते हैं। वह अहमदाबाद से
प्रतापनगर आते रहते हैं।