ये नहीं प्यारे कोई मामूली बंदा

|| ये नहीं प्यारे कोई मामूली बंदा||


बड़कोट का बाबूराम
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बड़कोट से बाहर उत्तरकाशी में जो भी आवारगी में घूमना हुआ उसमें सबसे ज्यादा बाबूराम मेरे साथ रहा। मैं बाबू को एटीएम बोलता था। बाबू का जनसंपर्क बहुत बेहतरीन है। वो छण भर में किसी को भी दोस्त बना लेता है। टिप-टाॅप रहना और बार-बार सर-मुंह धोना बाबू की आदत थी।




बाबू नासमझी के हास्य से लवरेज मस्त मौला इंसान है। वो सिधा है लेकिन सरल नहीं, थोड़ा कान से कम सुनता है इसलिए होंठों के थिरकने से अंदाजा लगा लेता है की कौन उसे गाली दे रहा है। राजनितिक मिशन हो या कोई लंबी यात्रा बाबू ने कभी साथ चलने से मना नहीं किया है वो मेरा लक्की याड़ी है।



बाबू की शादी के दौरान मेरे नेतृत्व में दोस्तों ने जब खूब तांडव मचाया तो, बाबू के पिता हम सब पर खासा नाराज हुऐ, दोस्तों का अपमान देख बाबू ने शादी का सेहरा उतारा और दोस्तों की तरफ खड़ा हो गया। बड़ी मुश्किल से बाबू को शांत कर शादी के लिए तैयार किया। अंततः दोस्तों की दुआएं काम आईं, बाबू की पत्नी को सरकारी नौकरी और सुखी दांपत्य जीवन में चार बालिकाओं एवं एक पुत्र की प्राप्ति हुई।


क्रिकेट से बेइंतिहा नफरत के बावजूद मुझे सिर्फ बाबूराम को क्रिकेट खेलते हुऐ देखना सबसे ज्यादा पसंद था। वो धोनी की तरह धुआंधार बैट्समैन तथा तेज रफ्तार का बाॅलर था। उत्तरकाशी जनपद की यमुनाघाटी में बाबू क्रिकेट की वजह से सबसे लोकप्रिय था।


मेरे छात्र संघ चुनाव के दौरान एक रात जब हम आईटीआई रोड़ पर पोस्टर चिपका रहे थे वह गंभीर होकर मुझ से बोला,
"बिज्जू तु कालेज नेता बनेगा तो मेरे लिए क्या करेगा? मैंने पलट कर बोला बाबू तु बता, तु क्या चाहता है?
बाबू थोड़ा शांत हुआ फिर बोला, "मेरा एक सपना है क्या तु उसे पूरा करेगा?
मैं घबरा गया क्योंकि मैं कोई विधायक सांसद का चुनाव तो लड़ नहीं रहा था जो किसी के सपने पूरे कर सकूं। फिर भी अपने यार पर भरोसा रख मांग सुनने से पहले ही हाँ कह दिया।
बाबूराम ने बताया वो गढ़वाल यूनिवर्सिटी के वार्षिक क्रिकेट टूर्नामेंट में खेलना चाहता है। अब दिक्कत ये थी की बाबू का तब 12th पास नहीं था, लेकिन मैंने भी आश्वासन देकर हाँ कर दिया।


छात्र संघ चुनाव निपट गये, सब दोस्तों के सहयोग से मैं बेहतरीन ढंग से चुनाव भी जीत गया, चार-पांच महीने बाद बाबू ने एक दिन मेरी क्लास लगा दी और मुझे मेरा वचन याद दिलाया, फिर क्या था बाबूराम के दिशा निर्देश पर बड़कोट महाविद्यालय की एक क्रिकेट की टीम बनी, वो श्रीनगर गयी और उसने वहाँ मैच खेला भी और जीता भी। नियम कानून को दरकिनार कर बाबूराम उर्फ प्रेम प्रकाश का श्रीनगर गढ़वाल यूनिवर्सिटी के क्रिकेट टूर्नामेंट में शानदार एवं उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा।