किस्से कहानियों में रह गया भकार
||किस्से कहानियों में रह गया भकार||


मिट्टी और गोबर से लीपा, लकड़ी के फट्टों से बना ये- 'भकार' है। भकार जिसके अंदर मोटा अनाज रखा जाता था। इसमें तकरीबन 200 से 300 किलो अनाज आ जाता था। गाँव में अनाज का भंडारण, भकार में ही किया जाता था। साथ ही भकार कमरे के पार्टीशन का काम भी करता था। पहाड़ के घरों के अंदर का एस्थेटिक्स भकार से भी बनता था। हमारे घर में दो भाकर थे,एक में धान और दूसरे में मंडुवा रखा रहता था। बाद के दिनों में गेहूं रखा जाता था। अब एक ही बचा है उसमें भी पुराने कपड़े रखे हैं।

 

एक फसल के बाद दूसरी फसल होने तक इसमें अनाज रहता था। भकार का खाली होना अच्छा नहीं माना जाता था। एक तरह से वह विपन्नता का प्रतीक था। इसलिए फूलदेई लोकपर्व के दिन भी जो कामना की जाती है उसमें कहा जाता -'फूलदेई छम्मा देई, दैंणी द्वार भरे भकार' अनाज से भकार भरे रहें। गाँव में ज्यादा खाने वाले या पेट निकले इंसान को कहते थे कि 'उसका पेट भकार सा है'। भकार, विशालता और संपन्नता दोनों का प्रतीक था।

 

भकार में जब अनाज कम होता था तो वो हमारी छुपने की जगह बन जाता था। अक्सर भकार के अंदर छुप जाते थे। उसके चलते अम्मा और ईजा से मार भी खाते थे।छोटे में ईजा अनाज निकालने के लिए हमें भकार के अंदर भी डाल देती थीं। नीचे तक उनका हाथ पहुंचना संभव नहीं था। वह हमारे लिए एक रोमांचकारी पल होता था।

 

अब भकार की जगह बोरे, ड्रम आदि बहुत सी चीजें आ गई हैं। अब न अनाज है और न कोई भंडारण करता है। बाजार ने आओ, ले जाओ और खाओ की संस्कृति को बढ़ावा दिया तो मेरा गाँव और घर भी उसकी ज़द में आ गए।