क्या हमको ऐसे ही विकल्प की तलाश थी जो देश को खोखला कर दे?

क्या हमको ऐसे ही विकल्प की तलाश थी जो देश को खोखला कर दे?



क्या आपको पता चला कि वैश्विक महामारी कोरोना के बीच सरकार ने देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को लूटने की नई स्कीम का खाका खींच लिया है जिसके तहत आरबीआइ से कर्ज लेने के नियम में संशोधन कर उस दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया गया है। अभी 20 अप्रैल, 2020 को केंद्र सरकार ने आरबीआइ से कर्ज लेने के नियम में एक बार फिर बदलाव करते हुए अब रकम निकालने की सीमा को बढ़ाकर 2 लाख करोड़ कर दिया है। पहले यह सीमा 75 हज़ार करोड़ हुआ करती थी। 

 


अपनी समस्त अक्षमताओं और नोटबंदी, अनियोजित जीएसटी सरीखी नाकाम आर्थिक नीतियों के कारण सरकार हर मोर्चे पर फेल होती जा रही है। देश का जीडीपी निरंतर गिर रहा है, डॉलर के मुकाबले रुपया भी खस्ताहाल है, उद्योग-धंधे ठप पड़ चुके हैं, बैंक दिवालिया होने की कगार पर हैं। ऐसे में सरकार के द्वारा आरबीआइ से अधिक से अधिक रकम निकालने का यह कदम देश को आर्थिक मंदी के महागर्त में पहुंचा देगा यह तय है। सोचिए जब आरबीआइ के पास ही पैसे नहीं होंगे तो देश की आर्थिक दिशा और दशा क्या होगी?

 

आख़िर सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से अधिक से अधिक रकम क्यों निकालना चाहती है? क्या यह मान लिया जाए कि देश में पहली बार वित्तीय आपातकाल की घोषणा होने वाली है और सरकार का यह क़दम उसकी आहट है?

 

आरबीआइ हमेशा से सरकार को केवल सरप्लस फंड ही देता आया है, पहली बार मोदी जी के कार्यकाल के दौरान सरकार द्वारा इससे अधिक रकम निकालने जैसा काम किया जा रहा है और इसी के तहत आरबीआइ से अधिक से अधिक रकम प्राप्त करने के लिए नियमों में संशोधन किया गया है। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि इससे पहले सरकार रिजर्व बैंक से कर्ज के रूप में केवल 75 हजार करोड़ ले सकती थी लेकिन मौजूदा सरकार ने 1 अप्रैल, 2020 को इसे संशोधित करते हुए रकम निकालने की सीमा को बढ़ाकर 1 लाख 20 हजार करोड़ कर दिया और अब 20 अप्रैल, 2020 को उसे फिर से बढ़ाकर 2 लाख करोड़ कर दिया है।

 

इससे पहले भी वर्ष 2019 में रिज़र्व बैंक ने मोदी सरकार को 24.8 अरब डॉलर यानी लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपए लाभांश और सरप्लस पूंजी के तौर पर ट्रांसफर कर दिया था और इस प्रकार उसने 2018 और 2019 की अपनी सारी कमाई सरकार को दे दी थी।

 

आरबीआइ के तत्कालीन उप गवर्नर विरल आचार्य ने तभी सरकार को चेताते हुए कहा था कि 'सरकार ने आरबीआइ में नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप बढ़ाया तो इसके बहुत बुरे नतीजे होंगे।'

 

उन्होंने अपने एक भाषण में यह भी कहा था कि 'जो सरकारें अपने केंद्रीय बैंकों की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करतीं, उन्हें देर-सबेर वित्तीय बाज़ारों के ग़ुस्से का सामना करना ही पड़ता है।'

 

अब जबकि सरकार ने आरबीआइ से अधिक से अधिक रकम निकालने की नई स्कीम तैयार कर ली है तो क्या अब यह मान लिया जाए कि देश के केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता समाप्त हो चुकी है? अगर वाक़ई  ऐसा है तो जल्द ही देश में पहली बार वित्तीय आपातकाल की घोषणा होना तय दिख रहा है।

 

यह लेखक के निजी विचार है। लेखक युवा साहित्यकार है।