पुस्तकों का मायाजाल, और मेरे दोस्त


|| पुस्तकों का मायाजाल, और मेरे दोस्त|| 

 

पुस्तकों की सेल्फ़ पर नजर दौड़ाई तो कुछ पुस्तकों पर नजर पड़ी। मेरे लिये यह बहुत सुखद है कि इन पुस्तकों के लेखकों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। इन्हें पहले पढ़ चुका हूं। आज प्रसंगवश संक्षिप्त में इन पुस्तकों और लेखकों के बारे में-



 

दिनेश कर्नाटक शिक्षक हैं। नैनीताल जिले के रानीबाग में रहते हैं। हिन्दी के युवा रचनाकारों में महत्वपूर्ण नाम हैं। विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में सतत लेखन। अभी तक उनके कहानी संग्रह- 'काली कुमाऊं का शेरदा एवं अन्य कहानिया', 'पहाड़ में सन्नाटा', 'आते रहना', 'मैकाले का जिन्न तथा अन्य कहानियां' प्रकाशित हुई हैं। एक उपन्यास 'फिर वही सवाल' काफी चर्चित रहा है। 'दक्षिण भारत में सोलह दिन' उनका यात्रा वृतांत है। उनका उपन्यास 'फिर वही सवाल' एक ऐसे युवक की कहानी है जो शहर और गांव के द्वंद्व के बीच है। यह असल में अपनी जमीन से कटने के कष्ट और अपने बेहतर भविष्य के लिये शहर में संभावनाएं तलाशने की जद्दोजहद है। दिनेश कर्नाटक ने बहुत खूबसूरती से समाज की उन विडंबनाओं को रखा है, जो शहर और गांव के फ़ासले को दूर-पास करते रहते हैं। आंचलिकता की सुगंध इसकी कुमाउनी भाषा का पुट पूरा करता है।



 

महेश चन्द्र पुनेठा पिथौरागढ़ में रहते हैं। आप भी शिक्षक हैं। कविता और संपादन आपकी मुख्य विधा है। देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सतत लेखन। महेश पुनेठा ने पढने की संस्कृति पर विशेष काम किया है। पिथौरागढ़ में युवाओं की पहल 'आरंभ' ने जिस तरह साहित्य और संस्कृतिबोध को आगे बढ़ाया है उसके पीछे महेश पुनेठा हैं। बच्चों की 'दीवार पत्रिका' जैसे अभिनव प्रयोग किये हैं। शिक्षा पर नये नजरिये के साथ 'शैक्षिक दखल' पत्रिका निकालते हैं। उनका चर्चित कविता संग्रह 'भय अतल में' है। स्वर एकादश एवं कवि द्वादश में कविताएं संकलित। उनकी कविता 'भय अतल में'-



 

अपनी बड़ी बहन के बगल में सहमा-सहमा बैठा मासूम बच्चा

जैसे छोटी सी पूसी

ताकता टुकुर-टुकुर मेरी ओर

ढूंढ रहा किसी अपने परिचित चेहरे को



पहला दिन है आज स्कूल का

मालूम है मुझे

बोलूंगा अगर कड़कती आवाज में

और फिर निकल न पायेगा



मालूम है मुझे

मेरा दांत पीसना

कठोर मुख मुद्रा बनाना

या छड़ी दिखाना एक जिज्ञासु को

मजबूर कर देगा

मनमसोस कर बैठे रहने को

घोंट देगा गला जिज्ञासाओं का

भर देगा कुंठाओं से



यातना शिविर की तरह

लगने लगेगा उसे स्कूल

उसके पेट में जरूर दर्द होने लगेगा

स्कूल को आते समय

पर भूल जाता हूं मैं

यह सारी बातें

अवतरित हो जाता है दुखहरण मास्टर भीतर तक



खड़ा होता हूं जब

पांच अलग-अलग कक्षाओं के

सत्तर-अस्सी बच्चों के सामने।



 

शैलेय मूल रूप से अल्मोड़ा जनपद के जैंती के रहने वाले हैं। महाविद्यालय में अध्यापन करते हैं। युवा पीढ़ी के चर्चित साहित्यकारों में। अभी तक आपके तीन कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुका है। इनमें 'या', 'रहीं कहीं से', 'यहां बर्फ गिर रही है' प्रमुख हैं। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सतत लेखन। शैलेय लंबे समय तक मजदूर आंदोलनों के साथ जुड़े रहे। कुष्ठ निवारण, संस्कृति कर्म, पत्रकारिता भी की। उनकी कहानी और कविताओं में जनपक्षधरता का भाव गहरे तक है। कई सम्मानों से सम्मानित। यहां उनके कविता संग्रह 'तो' से एक कविता

'आदमी'-



आपको उसके

उसको आपके

खान-पान

रहन-सहन

सोच-समझ

जाति-धर्म

यहां तक कि

एक-दूसरे के नाम तक से

बू आती है



थाक!

आप दोनों थूक देते हैं



बलगमों में पल रहे विषाणु

आप दोनों के जुकाम को

और भी अधिक संक्रामक बना देते हैं

घर-बाहर सब तरफ

छींक ही छींक---थूक ही थूक---

मैं

कोई मक्खी-मच्छर-कीड़ा-मकोड़ा

मगरमच्छ नहीं

कि दलदल में रह सकूं



आदमी

हमेशा सफाई पसंद होता है



फिर चाहे वह किसी का भी

खान-पान

रहन-सहन

जाति-धर्म

सोच-समझ

यहां तक कि

नाम पर चढ़ा हुआ मुलम्मा ही क्यों न हो!



 

नवीन नैथानी हिन्दी कथा साहित्य का जाना-पहचाना नाम है। मूल रूप से भोगपुर, देहरादून के रहने वाले हैं । भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक हैं। देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में दो दर्जन से अधिक कहानियां प्रकाशित। उनका चर्चित कहानी-संग्रह 'सौरी की कहानियां' विशेष रूप से सराही गई। इस संग्रह में कुल तेरह कहानियां हैं। नवीन नैथानी ने लोक आख्यानों एवं किंवदंतियों को समकालीन कहानी मे समाहित किया है। उन्होंने आंचलिक लोक कथाओं को जिस तरह समकालीन कहानी के साथ जोड़ा है वह अद्भुत है।



 

डाॅ अमिता प्रकाश राजकीय बालिका इंटर कालेज द्वाराहाट में पढ़ाती हैं। बच्चों में रचनात्मकता के विकास के लिये विशेष रूप से लगी रहती हैं। द्वाराहाट में साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय। अलग-अलग विधाओं में लिख रही हैं। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। अब तक आठ शोध-पत्र प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में शोध-पत्र प्रस्तुत। कहानी संग्रह 'रंगों की तलाश' और 'पहाड़ में बादल' तथा शोध ग्रन्थ 'पंकज बिष्ट: आधुनिक भाव-बोध के कथाकार' प्रकाशित। डाॅ अमिता प्रकाश की अधिकांश स्त्रियां, वस्तुतः अब उतनी असहाय एवं विवश नहीं रह गई हैं। उनके प्रति समाज में जो कुछ भी गलत हो रहा है, उसके विरुद्ध खड़े होने की उनमें भरपूर सामर्थ्य एवं ऊर्जा है।