रोको ना मुझे


||रोको ना मुझे||



 


भरी सी गागर मैं शब्दों की

वाणी को मेरी विराम ना दो

उमड़ता सागर में प्रेम का

गति को मेरी उड़ान तो दो

बहने दो मुझे मलय समीर सा

सुगंध को मेरी महसूस करो

बहुत यहां तेरे चाहने वाले

कह दो ना ,कुछ इनाम तो दो।

उड़ती घटा में अम्बर की

कुछ मीठी बूंदें मेरे अंदर भी

बरस सकूं मैं कर दूं तर मै

ऐसा कोई आंगन

कुछ मेहमान तो दो ।


 



शैलेन्द्र भंडारी " दीनबंधु"

कृपया प्रकाशन से पूर्व लेखक की अनुमति लेनि अनिवार्य है। (संपादक)