||रोको ना मुझे||
भरी सी गागर मैं शब्दों कीवाणी को मेरी विराम ना दोउमड़ता सागर में प्रेम कागति को मेरी उड़ान तो दोबहने दो मुझे मलय समीर सासुगंध को मेरी महसूस करोबहुत यहां तेरे चाहने वालेकह दो ना ,कुछ इनाम तो दो।उड़ती घटा में अम्बर कीकुछ मीठी बूंदें मेरे अंदर भीबरस सकूं मैं कर दूं तर मैऐसा कोई आंगनकुछ मेहमान तो दो ।
शैलेन्द्र भंडारी " दीनबंधु"
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