देहरादून में मनाया आजाद हिन्द फौज के शहीद केसरी चन्द का 75वाँ शहादत दिवस


||देहरादून में मनाया आजाद हिन्द फौज के शहीद केसरी चन्द का 75वाँ शहादत दिवस||





स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर शहीद केसरी चंद के बलिदान दिवस पर गांधी पार्क में जौनसार महासभा के अध्यक्ष मुन्ना राणा, अर्चना राणा तथा वीर शहीद केसरी चन्द युवा समिति के संरक्षक एवं जौनसार बावर सामाजिक संगठन लोक पंचायत के वरिष्ठ सदस्य के.एस. चौहान, गंभीर चौहान एवं विजय राम शर्मा ने माल्यार्पण, दीप प्रज्वलित कर एवं फूल-माला चढ़ाकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।



 

वीर शहीद केसरी चन्द युवा समिति के सरंक्षक मुन्ना राणा ने कहा कि देश गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था, ऐसे समय में जौनसार बावर का नवयुवक देश को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से सुभाष चंद्र बोस की सेना आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए, जिसका ब्रिटिश सरकार विरोध करती है, परिणाम स्वरूप 24 वर्ष 6 माह की आयु में इस वीर सपूत को 3 मई 1945 को फांसी पर लटका दिया गया।

 

वीर शहीद केसरी चंद युवा समिति के संरक्षक एवं लोक पंचायत के सदस्य के. एस. चौहान ने कहा कि जौनसार बावर के क्यावा गांव में केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर 1920 को हुआ, पिता का नाम पंडित शिवदत्त एवं माता का नाम रायबरेली था केसरी चंद सबसे छोटे पुत्र थे इनकी माता का स्वर्गवास जन्म के 6 माह पश्चात ही हो गया था परिणाम स्वरूप पिता ने हीं केसरी चंद को बड़े लाड प्यार से पढ़ाया। प्रारंभिक शिक्षा विकास नगर में हुई। तत्पश्चात डीएवी कालेज देहरादून में अध्यनरत रहे, शहीद केसरी चन्द को खेल में प्रारंभ से ही अच्छी रुचि थी।

 

10 अप्रैल 1941 को रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कोर में भर्ती हो गए 1941 को फिरोजपुर में वायसराय कमीशन ऑफिस का कोर्स किया 19 अक्टूबर 1941 को इन्हें मलाया के युद्ध के मोर्चे में भेज दिया गया, 27 दिसंबर 1941 को इस साहासी नवयुवक को सूबेदार के पद पर पदोन्नत कर दिया गया ।

 

15 फरवरी सन 1942 को जापानी फौज द्वारा इन्हें बंदी बना लिया गया आजाद हिंद फौज की ओर से लड़ते हुए इंफाल के मोर्चे पर इन्हें ब्रिटिश फौज ने पकड़ लिया और दिल्ली के जिला जेल में रखा गया इन्हें आर्मी एक्ट की धारा 41 के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता की धारा 121 की व्यवस्था के विरुद्ध ब्रिटिश सरकार के खिलाफ युद्ध करने के आरोप में दिनांक 12 दिसंबर 1944 व 10 जनवरी 1945 को लाल किले में जनरल कोर्ट मार्शल में ट्रायल किया गया, 3 फरवरी 1945 को जनरल सी .जे. आचिनलेक ने इनको मृत्युदंड की सजा देने की पुष्टि की।

 

24 वर्ष 6 माह की आयु में इस महान देशभक्त को 3 मई 1945 को प्रातः दिल्ली के जिला जेल में फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया और देश के स्वतंत्र संग्राम में जौनसार बावर उत्तराखंड का नाम अमर कर दिया।

वीर शहीद केसरी किसी चंद समिति के सदस्य गंभीर चौहान एवं विजय राम शर्मा ने कहा कि चकराता के समीप राम ताल गार्डन में प्रत्येक वर्ष 3 मई को इस शहीद की स्मृति में एक मेले का आयोजन किया जाता है जहा हजारों लोग शहीद की प्रतिमा के सम्मुख अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं ।

 

इस बार संपूर्ण विश्व में कोरोना वायरस की महामारी के कारण शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन नहीं किया जा रहा है 1986 में प्रारंभ हुआ यह मेला इतिहास में पहली बार 2020 में उनके बलिदान के 75 वर्ष पूर्ण होने पर मेले का आयोजन नही हो सका।