||'देशभक्त' का नाम था जोगेन्द्र नाथ मंडल||
बंगाल के बरीसल जिले के मइसकड़ी गांव में जन्मा एक युवक जो 1937 में जिला काउन्सिल और फिर इसी वर्ष बंगाल लेजिस्लेटिव काउन्सिल का सदस्य चुना गया । 1939 तक कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीब आया मगर, उसे एहसास हुआ कि कांग्रेस के एजेंडे में उसके लिए ज्यादा कुछ नहीं है । इसके बाद वो मुस्लिम लीग से जुड़ गया और देखते ही देखते मुस्लिम लीग के खास सदस्यों में से एक हो गया ।
3 जून 1947 की घोषणा के बाद असम के सयलहेट क्षेत्र को जनमत संग्रह से यह तय करना था कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या भारत का । उस इलाकें में हिंदू मुस्लिम की संख्या बराबर थी । जिन्ना ने इस इलाके में इनको पूरी रसद के साथ भेजा, उसने अपनी जाति बिरादरी वालों का मत पाकिस्तान के पक्ष में झुका दिया जिसके बाद सयलहेट पाकिस्तान का हिस्सा बना आज वो बांग्लादेश में हैं ।
इस 'देशभक्त' का नाम था जोगेन्द्र नाथ मंडल, अभी चचा ने कुछ दिन पहले इनका जिक्र किया था संसद में । ये जिन्ना और सावरकर की टू नेशन थ्योरी के बडे पैरोकार और दलित मुस्लिम काल्पनिक भाईचारे के एकछत्र स्वयंभू नेता थे । इन्होने गांधी और नेहरू का विरोध इस लिये किया कि वे भारत विभाजन के खिलाफ थे, । बंगाल विभाजन पर इन्होने शरतचंद्र बोस के खिलाफ बहुत बड़ा प्रापेगेन्डा चलाया, ये विभाजन विरोधियों के खिलाफ *टू नेशन थ्योरी * के बड़े नेता स्थापित होना चाहते थे, इनके इसी गुण के कारण इन्हें मुस्लिम लीग के मुख्यमंत्री, हुसैन सुहरावर्दी के मंत्रिमंडल में मंत्री पद भी मिला।
ये मुस्लिम लीग की ओर से हर उस कांग्रेसी के खिलाफ खडे हो जाते थे, जो विभाजन का विरोध करता था। इनकी इसी काबिलियत ने इनको जिन्ना की आंख का तारा बना दिया । 1946 में जब पूर्वी बंगाल में सांप्रदायिक दंगे फैले तो इन्होने दंगों को रोकने के बजाय एक नया ऐंगल दिया और पूरे पूर्वी बंगाल की यात्रा कर दलितों का आह्वान किया कि वे विभाजन के हिमायती मुसलमानों का विरोध न करें, बल्कि मुस्लिम लीग के साथ खडे हों, वही उनकी रक्षा करेगी ।
1946 में ब्रिटिशराज में अंतरिम सरकार बनी तो मुस्लिम लीग ने जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम भेजा । मंडल मुहम्मद अली जिन्ना के काफी करीबी थे ।
1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान बना, मंडल विश्वविजयी पाकिस्तान का सपना आंखों में ले कर पाकिस्तान चले गये । जिन्ना ने उनको कराची में बसा दिया । पाकिस्तान की नई संविधान सभा बनी जिन्ना की मेहरबानी से मंडल संविधान सभा के स्थाई हिन्दू सदस्य और अस्थाई अध्यक्ष बनाये गये, सरकार में उनको पाकिस्तान के पहले कानून एवं श्रम मंत्री के ओहदे पर नवाजा गया । साथ में राष्ट्रमंडल और कश्मीर मामलों की भी जिम्मेदारी दी गयी
इधर पाकिस्तान का संविधान बनता रहा, कट्टरपंथी हावी होते गये , जिन्ना की दुर्गति के दिन शुरू हो गये, जिन्ना पलंग पर पड़े पड़े अपने कुकर्म गिन गिन कर बापू और नेहरू से माफी मांगते हुए बड़बड़ाता रहा, उधर कट्टरपंथियों ने मंडल के पर कतर कतर कर उसे संपाति जैसा गरूड बना दिया ।
जले और कतरे हुए परों को देख कर हमेशा साम्प्रदायिक दंगों में मुस्लिम लीग के साथ खडे होने वाले मंडल को ,इज्जत बचाने के लिये अब हिन्दू हित दिखाई देने लगा, बंगाल विभाजन से लेकर पाकिस्तान बनने तक कत्ल किये गये हिन्दू अब जाके दिखाई देने लगे और अपनी जान पर मंडराते कट्टरपंथी मुल्ला जब सपने में भी आने लगे तो, पाकिस्तान में हिन्दू हित न होने का खुलासा कर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को अपना इस्तीफा सौंप कर 8 अक्टूबर, 1950 को रातों रात बोरिया बिस्तर लेके भारत आ गये ।
तब तक भारत में पाकिस्तान छोड कर भारत आने वालों के लिये इज्जत से जीने का कानून बन चुका था, इसी कानून ने पाकिस्तान के कानून मंत्री की जान बचाई और मंडल ने पाया कि जान बची तो लाखों पाये और फिर गुमनामी में 5 अक्टूबर, 1968 को उसी बंगाल (पश्चिम बंगाल) में चल बसा, जिसके टुकडे करने में पूरी जवानी लगा दी थी ।
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गांधी, नेहरू और अम्बेडकर आज भी दुनिया में इसीलिये शान से पढ़े और पढाये जाते हैं कुछ तो बात होगी ना !!