गज्जु, गजा का थौल और लाॅकडाऊन


||गज्जु, गजा का थौल और लाॅकडाऊन||

 

बात तब की है जब गज्जु को 12वीं में फेल होने के बाद होटेलियर बने 3 साल हुए थे। वह दिल्ली के एक होटेल में काम करता था तथा बचपन के अपने वह सारे शौक पूरे कर रहा था, जिनके बारे में वह कभी सोचा भर करता था। उसने जल्दी ही बहुत सारे पैसे कमा लिये थे, बहुत जगह घूम ली थी, और अपनी बहुत सारी मनपंसद चीजें खरीद ली थी। यानि की उसकी जिंदगी फिलहाल मौज में कट रही थी। अभी उसके पास इतने पैसे हो गये थे कि वह दिल्ली जैसे शहर में अपना फ्लैट ले सकता था। लेकिन पहाड़ प्रेमी होने के कारण वह यह साेच कर पैसे बचाता रहा कि आने वाले समय में वह गाँव में रहेगा और कोई बढ़िया सा बिजनेस करेगा। गज्जु वैसे तो हर 3 महीने में गाँव आता था लेकिन अपने पंसदीदा बैसाख के महीने होने वाले थौलों के लिये वह खास उत्साहित रहता था।



 

इस बार भी वह बैसाख की 4 गते गाँव पहुँच गया था, और पाँच गते पोखरी के थौल घूमने के बाद 12 गते को होने वाले गजा के थौल का इंतजार कर रहा था। अब का गजा का थौल उसके लिये इसलिये भी खास था, क्योंकि उसकी कुंटुब की बौजी ने उससे वादा किया था कि वह इस बार अपनी भुल्ली से उसकी मुलाकात करवायेगी, जिससे गज्जु की बौजी ने उसकी एक दो बार फोन पर बात भी करवाई थी।

 

गजा के थौल का दिन आ गया था, उस दिन गज्जु ने अपने दोस्त बिज्जु की बाइक में तेल भरवाया। दिल्ली के एक माॅल से खरीदे ब्रांडेड कपड़ों की एक जोड़ी उसने बिज्जु को दी और एक खुद पहन कर बिज्जु के साथ गजा की ओर चल दिया। गजा पहुँचते ही गज्जु की जिकुड़ी में धक्ध्याट और आँख्यों मा रगर्याट होने लगा। वह बाइक के शीशे को देख, बालों पर कंघी कर और खुद को अच्छे से संवारकर थौल में बौजी और स्याली को ढूँढने लगा। जब काफी देर हो गई और बौजी व स्याली कहीं दिखाई न दी, तो गज्जु कुछ मायूस हो गया। उसने कई बार बौजी के मोबाइल पर घंटी भी मारी। लेकिन प्रतिक्रिया में कुछ उत्तर न मिला। तभी उसके दोस्त बिज्जु ने उसे बताया कि बौजी को चौमिन भौत पंसद है। क्या पता वह ऊपर वाले मार्केट में श्याम सिंह की दुकान में चौमिन खा रहे हों।

 

ये सोचकर दोनों श्याम सिंह की दुकान में चल दिये। बिज्जु का अंदाजा सही निकला। बौजी और स्याली दोनों चौमिन खा रहे थे।

 

जब तक वे दोनों चौमिन खाकर बाहर आते उससे पहले ही बौजी को बिन बताए गज्जु ने उनके चौमिन के पैसे कटा दिये। जब बौजी और स्याली चौमिन खाकर पैसे देने को हुई तो श्याम सिंह ने दुकान किनारे खड़े गज्जु की तरफ इशारा कर दिया।



 

उस दिन गज्जु ने बौजी और स्याली की जिकुड़ी को ऐस्क्रीम खिला खिलाकर तर कर दिया था। स्याली को इम्प्रेस करने के चक्कर में बौजी की नजर जिस चीज पर भी पड़ती गज्जु वो चीज बौजी के हाथ में धर देता। और इसके बदले में बौजी भी बीच में बीच अपनी भुल्ली को गज्जु की तरफ धकिया कर ठसाक लगाने में गज्जु को पूरा मौका दे देती।

 

अब शाम हो चुकी थी गज्जु ने बौजी को कहा कि वह स्याली से अकेले में बात करना चाहता है, तो बौजी ने भुल्ली को जिसका नाम मंजू था, को अकेला छोड़, गज्जु को बात करने का मौका दे दिया। लेकिन जब तक गज्जु को उससे बात किये दो मिनट ही हुए थे तभी मंजू की अपने भाई पर नजर पड़ गई.. भाई को देखते ही वो तो भाग गई लेकिन गज्जु उसके भाई और दोस्तों के हत्थे चढ़ गया, उसके भाई और दोस्तों ने बिना कुछ पूछे ही गज्जु का कुटान शुरू कर दिया।



 

लेकिन तभी मंजू ने समझदारी का काम ये कर दिया की वह बिना देरी किये अपनी दीदी को बुला ले आई। लेकिन तब तक गज्जु को अच्छे से सूत दिया गया था।



गज्जु को अब तक स्याली मंजू खूब पंसद आ चुकी थी उसने सोच लिया था कुटान हो या किसी को कूटना पड़े, शादी तो वो मंजू से ही करेगा। एक साल तक लगातार बौजी की कृपा से मंजू से बात करने के बाद 12 गते बैसाख को उसने मंजू से शादी भी कर ली।



 

गज्जू शादी से पहले मंजू को गाय स्वरूप मानता था । क्योंकि वह बहुत कम बोलती थी, शर्मीली बहुत थी।उसकी हर बात मानती थी । लेकिन एक महीने बाद ही उसने अपना बिकराल रूप धारण कर लिया । वह गाय से शेरनी बन चुकी थी। गज्जू को उसने स्पष्ट कह दिया कि वह उसके साथ दिल्ली जायेगी। गाँव में तो बिल्कुल नहीं रहेगी। और अगर उसकी बात न मानी गई तो अंजाम कुछ भी हो सकता है ।

 

गज्जू को मजबूरन उसे दिल्ली ले जाना पड़ा। उसका गाँव में रहने का और बिजनेस करने का सपना भी एकदम से टूट गया। वह जिस दिन मंजू से मिला था वह उसकी जिंदगी का बैसाख का आखिरी थौल था। हर तीन महीने गाँव जाने वाला गज्जु अब पिछले तीन सालों से गाँव नहीं जा पाया था। पत्नी मंजू के कहने पर उसने एक प्लाॅट देहरादून और एक हरिद्वार में ले तो लिया था लेकिन उसका गाँव का मकान अब ज़मीन पर आ गया था ।

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आज पिछले 45 दिनों से लगातार लाॅकडाउन होने के कारण गज्जु और उसका परिवार दिल्ली में बाहर नहीं निकल पाये हैं। अभी सरकार के प्रयासों से उन्हें गाँव आने का भी मौका मिला है लेकिन गाँव में एक कमरा तक न होने के कारण वे गाँव नहीं आ पा रहे हैं।

 

पिछले दिनों वाइन शाॅप खुलने से गज्जु को तो कुछ राहत है, वह कुछ ही घंटाें के अंतराल में पैग लगाकर रंगमत हो जाता है। लेकिन उसकी पत्नी मंजू के बुरे हाल हैं । अंदर ही अंदर रह कर उसका खूब कपाल तजने लगा है।

 

और कभी कभी ये सोचकर उस पर पित्थ भी उठने लगते हैं कि न जाने मोदी जी फिर से कब कह दें कि " मित्रों लाॅकडाऊन इतनी तारीख तक और बढ़ाया जाता है।



(काल्पनिक)