||जौनसार की विभिन्न खतों में चालदा महाराज की प्रवास यात्रा||
चालदा महाराज की प्रवास यात्रा प्रारंभ से ही दो क्षेत्रों में विभक्त की गई है। एक क्षेत्र हिमाचल प्रदेश का सिरमौर, शिमला, सराजी, फतेह पर्वत, सिंगतुर- हडूर, उत्तरकाशी देवघार, बावर, कडमाण सहित जौनसार बावर के एक बडे हिस्से मे चालदा महाराज का प्रवास होता है । यहां पर यह व्यवस्था है कि 12वर्षो तक चालदा महाराज टोसं नदी के पार हिमाचल के क्षेत्र में प्रवास पर रहते हैं और 12 वर्ष बाद टोंस नदी के इधर यानी जौनसार बावर क्षेत्र में महाराज प्रवास पर रहते हैं। स्थानीय बोली में इसे देवता की बरांष कहते हैं।
चालदा महाराज का दूसरा प्रवास क्षेत्र जिसे निचला जौनसार कहते हैं । चालदा महाराज के प्रवास का क्षेत्र पहले 24 खते एवं हिमाचल प्रदेश के नहान तक प्रवास होता था । अब केवल 22 खतों मे ही महाराज का प्रवास होता है।
चार भाई महासू में सबसे बड़े बाशिक,बोठा, पवासी एवं सबसे कनिष्क चालदा महाराज है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है बोठा महाराज यानी एक ही स्थान पर बैठकर संचालन करने वाले देवता। जबकि चालदा महाराज प्रवास पर यानी चलायमान रहते हैं।
निचले जौनसार में चालदा महाराज का प्रवास कब से प्रारंभ हुआ इसकी कोई अधिकृत तिथि प्राप्त नही है परंतु लोकगीत एवं जन श्रुतियो के आधार पर कहते हैं कि बैराट गढ किले में क्रूर राजा सामुशाह के आंतक को समाप्त करने के लिए संभवतः 13 वी से 17 वी सदी के मध्य हनोल से थैना मे बोठा - चालदा महाराज प्रकट हुए। इसके पश्चात ही निचले जौनसार में चालदा महाराज के प्रवास यात्रा का क्रम प्रारंभ हुआ। परंतु पूर्व में लिखित प्रवास कार्यक्रम उपलब्ध न होने के कारण 106 वर्ष का यात्रा क्रम निम्नवत है -
27 जनवरी 1914 थैना से लखवाड के लिए प्रस्थान।
1940 में खत शैली के दोहा गांव में महाराज प्रवास पर रहे ।
1943 में खत कोरु के ग्राम कचटा से रंगीयो मे एक रात के लिए (बागड़ी) देवता का प्रवास रहा !
1943 में रंगीयो से ग्राम कोटा खत तपलाड में देवता का प्रवास हुआ 2 वर्ष यहां रहने के पश्चात
1945 में ग्राम कोटा खत तपलाड से दोष निवारण के लिए धुमि स्याणा ने देवता का प्रवास ग्राम थैला में करवाया।
19 दिसंबर 1953 को ग्राम थैना से पिपाया खत फरटाड एक रात (बागड़ी) ।
20 दिसंबर 1953 को पिपाया से लखवाड आगमन ।
11 मई 1956 को लखवाड से ग्राम बडनू आगमन एक रात्रि (बागड़ी )
12 मई 1956 को बड़नू से जिसोऊ लिए प्रस्थान ।
1957 में जिसोऊ से कचटा खत कोरु (30 वर्ष कचटा मे महाराज प्रवास पर रहे ।
1987 मे कचटा से थैना प्रवास पर गए (17 साल तक थैना मे प्रवास पर रहे) ।
22 नवंबर 2004 थैना से पिपाया खत फरटाड (एक रात बागड़ी के लिए)
23 नवंबर 2004 पिपाया से लखवाड ( 7 वर्ष लखवाड़ प्रवास रहे )।
22 मई 2011 को लखवाड से बडनू खत शीली गोथान (एक रात बागड़ी के लिए )।
23 मई 2011 बड़नू से जिसोऊ घराना के लिए प्रस्थान ।
(3 वर्ष तक जिसोऊ प्रवास पर रहे )।
10 मई 2014 को जिसोऊ से ग्राम चंन्दोऊ खत अठगाव के लिए प्रस्थान (2 साल तक चन्दोऊ प्रवास पर रहे)।
9 जून 2016 चंन्दोऊ खत अठगांव से देवता ने नाराया खत बमटाड के लिए प्रस्थान किया !(नराया मे 2 साल तक प्रवास किया! )
16 जून 2018 को नाराया से एक रात बागड़ी के लिए बिमोऊ खत उपलगांव में देवता का प्रवास रहा।
17 जून 2018 को विमोऊ से रंगीयो के लिए प्रस्थान किया (बागड़ी) एक रात रंगीयो में।
18 जून 2018 को रंगिया से देवता ने कोटा तपलाड के लिए प्रस्थान किया ।
18 जून 2018 से वर्तमान में चलदा महाराज कोटा तपलाड मैं प्रवास पर है ।
समिति द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार 3 वर्ष कोटा तपलाड में रहने के पश्चात
देवता घंणता (खत बणगावं) 1 वर्ष, दोहा (खत सैली) 1 वर्ष, इसके पश्चात खत कोरु के कचटा में 5 वर्ष प्रवास पर रहेंगे आगे प्रभु की इच्छा ।
लेखक - संपादक, विचारक साहित्य-संस्कृतिकर्मी व सृजनशील व्यक्तित्व है। मौजूदा समय में अध्यक्ष विधानसभा उत्तराखण्ड के सूचनाअधिकारी है व गढ वैराट समाचार पत्र के संपादक है।लेखक देहरादून के जौनसार बावतर जनजातिय क्षेत्र के ऐतिहासिक तथ्यो को खंगाल रहे है। यहां प्रस्तुत है उनकी सीरीज का यह आलेख।