"जिंदगी"


शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ-साथ कवि अजीमप्रेम जी फाउण्डेशन के शिक्षा उन्नयन कार्यक्रम से जुड़े है और अल्मोड़ा में रहते हैं।

 

"जिंदगी"


 

ठहर सी गयी जिंदगी

घर है, परिवार है, दोस्त है,

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

प्यार है, सम्मान है, विश्वास है

फिर भी

लगता है ठहर सी गयी जिन्दगी

फ़ोन है, ऑनलाइन है, इंटरनेट है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

दिन है, रात है,सुबहेशाम है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

खाना है, पीना है, सोना है

फिर भी लगता है

ठहर गयी जिंदगी

वाद है, विवाद है, संवाद है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

ऑफिस है, काम है, दाम है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

बातें है, यादें है, सपनें है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

भाव है, अभाव है, प्रभाव है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

सोचना है, करना है, परिणाम है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

प्रकृति, वायु मंडल, ब्रह्मांड है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

गरीब, अमीर, बेसहारा है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

मन है, तन है, अमन है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

किसान है, मजदूर है, व्यापारी है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

भय लोभ, और प्रलोभन है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी।

बहुत कम है, बहुत कुछ है, कुछ भी नही है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

स्कूल है, कॉलेज है, विश्वविद्यालय है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी

पशु,पक्षी,जीव जगत प्राणी है

फिर भी लगता

ठहर सी गयी जिंदगी

कुछ छूट गया, कुछ भूल गया, कुछ आने वाला है

फिर भी लगता है

ठहर सी गयी जिंदगी ||