क्यूंकि वे मजदूर हैं
रमेश कुड़ियाल वरिष्ठ पत्रकार है। इसके अलावा वे समाजसेवा के साथ-साथ साहित्यकार है। वर्तमान वे अमर उजाला बनारस संस्करण में Senior su-editor के पद पर कार्यरत है। प्रस्तुत है उनकी कविता।

 

||क्यूंकि वे मजदूर हैं||

 



जो कभी खबर नहीं बनते थे

वह तस्वीरों के साथ

छाए हैं इन दिनों अखबारों और टीवी में

क्योंकि वे मजदूर हैं

 

उनके बेबस, लाचार और 

उदास चेहरे बेचने की होड़ है

मुठ्ठी भर राशन के लिए

लाइनों में खड़े लोग

जीवन की नई लड़ाई लड़ रहे हैं

क्योंकि वे मजदूर हैं

 

जिन सपनों के साथ

बसों और ट्रेनों में सवार होकर गए थे महानगरों की ओर

अब पैदल ही लौट रहे हैं

उन्हीं सड़कों और पटरियों से

पैदल - पैदल

क्योंकि वे मजदूर हैं

 

सिर पर टूटे सपनों की गठरी

पांवों में गहरे छाले

पसीने से नहाए हुए

वह हाथ जो कभी करता रहा निर्माण

आज बढ़ाता है हाथ

एक टुकड़े रोटी के लिए

क्योंकि वह मजदूर है

 

 

उसकी पथराई आंखें 

हो रही है कैमरों में कैद

इन दिनों

बाजार में बिक रहे हैं

उदास, बेबस चेहरे

क्योंकि वह मजदूर हैं

 


☑  रमेश कुड़ियाल

14 मई 2020